हताश बीजेपी को झारखंड में मोदी मैजिक का सहारा


kolebira jharkhand by election

 

झारखंड के कोलेबिरा विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी के सामने कठिन चुनौती है. पार्टी पहले ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में हुए पांच उपचुनावों में से चार उपचुनावों में पराजय का सामना कर चुकी है. कोलेबिरा में जहां एक ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), एनोस एक्का की झारखंड पार्टी के साथ है, तो कांग्रेस का उम्मीदवार भी मैदान में है. हाल के वर्षों की तरह इस बार भी बीजेपी पूरी तरह मोदी मैजिक के भरोसे है.

लिट्टीपाड़ा और गोमिया से लेकर सिल्ली तक में हुए उपचुनावों में यह बात साबित हो चुकी कि उपचुनावों में उपचुनावों में मोदी मैजिक काम नहीं कर रहा है. उसका पुराना सहयोगी आजसू भी उससे दूरी बना चुका है. बीजेपी में गुटबाजी चरम पर होने की खबरें हैं.

झारखंड के चौदह संसदीय क्षेत्रों में से एक खूंटी (सुरक्षित) संसदीय क्षेत्र के तहत छह विधानसभा क्षेत्र हैं. कोलेबिरा उन्हीं में से एक है. वैसे तो सिमडेगा जिले की इस विधानसभा में भाजपा को कभी सफलता नहीं मिल पाई. लेकिन उसके वोट में मामूली बढ़त जरूर देखी गई है.

इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व में माओवादी कमाडंर मनोज नगेसिया मैदान में उतारा था. इसके बावजूद एनोस एक्का ने 17,143 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में एक्का को 48,978 वोट मिले थे. जबकि मनोज नगेसिया को 31835 वोट मिले थे. लेकिन बाद में अज्ञात हमलावरों ने मनोज नगेसिय़ा की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसकी वजह यह बताई गई कि माओवादियों को नगेसिया का बीजेपी के साथ होना गंवारा नहीं था.

कोलेबिरा में बीजेपी की कमजोरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि के एक दिन पहले बमुश्किल उसे अपना उम्मीदवार मिला. वसंत सोरेंग को झारखंड पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व विधायक एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का के खिलाफ मैदान में उतारा गया है. वह खड़िया आदिवासी समुदाय से हैं और कोलेबिरा खड़िया आदिवासी बहुल इलाका है. लिहाजा बीजेपी का सारा दारोमदार इसी जनजाति पर टिका है.

कड़िया मुंडा इस इलाके के कद्दावर नेता हैं. वह सात बार खूंटी से सांसद रह चुके हैं. इसके बावजूद कोलेबिरा में बीजेपी आज तक जम नहीं पाई है. अब तो मुख्यमंत्री रघुवर दास और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के बीच तल्खी भी साफ दिखने लगी है. यही गुटबाजी कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भी साफ दिख रही है.

कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव एनोस एक्का की सदस्यता समाप्त होने की वजह से हो रहा है. वह एक हत्या के मामले में अदालत से सजायाफ्ता हैं और इस समय जेल में हैं. सन् 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें पहली बार सफलता मिली थी. तब उनकी पार्टी का नाम झारखंड क्रांति पार्टी हुआ करता था. इसके बाद सन् 2009 और सन् 2014 में वह झारखंड पार्टी से जीते.

मौजूदा उपचुनाव में झारखंड पार्टी की प्रत्याशी मेनन एक्का पूर्व विधायक और पार्टी सुप्रीमो एनोस एक्का की पत्नी हैं. उनका बीजेपी के वसंत सोरेंग और कांग्रेस के विकसल कोंगाड़ी के साथ मुकाबला है. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की अगुआई वाली पार्टी, झारखंड विकास मोर्चा के नेता प्रदीप यादव की मानें तो उनकी पार्टी कांग्रेस का साथ देगी. इसलिए कि झारखंड पार्टी विपक्षी गठबंधन में नहीं है.

कुल एक लाख 80 हजार से अधिक मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 20 दिसंबर को उपचुवाव होना है. लेकिन झारखंड पार्टी को छोड़ दें तो बाकी पार्टियों का झंडा-बैनर भी हर जगह दिखाई नहीं देता है. झारखंड पार्टी बीते एक महीना से पूरी ताकत के साथ चुनाव प्रचार में जुटी हुई है. स्थानीय लोगों की मानें तो झारखंड पार्टी घर-घर दस्तक दे चुकी है.कांग्रेस भी राज्य का विकास और राज्य सरकार की नाकामियां गिनाकर चुनावी बाजी अपने पक्ष में करने की जुगत में है.

कोलेबिरा में बिजली संकट से न केवल आम जनजीवन प्रभावित है, बल्कि औद्योगिक विकास में भी बाधक है. झारखंड राज्य बनने के बाद से लंबे समय तक भाजपा का शासन रहा और सन् 2005 से एक्का लगातार विधायक हैं. लेकिन यह क्षेत्र विकास से दूर है. सिंचाई की व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं है. और रोजगार की हालत भी बदतर है.

शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का भी घोर अभाव है. रोजगार के अभाव में युवा पलायन करने को मजबूर हैं. नक्सलियों का समानांतर राज चल रहा है. राज्य सरकार उनके सामने लाचार दिखती है.
बीजेपी के स्थानीय नेता विपक्षी एकता का टूट जाना अपनी पार्टी के लिए शुभ संकेत मान रहे हैं. उधर कांग्रेस के लिए भी एकता का टूट जाना किसी सदमे से कम नहीं है. हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है इस उपचुनाव का आगामी लोकसभा चुनावों पर कोई असर नहीं होगा और विपक्षी एकता बरकरार रहेगी.

चूंकि यह विधानसभा क्षेत्र माओवाद प्रभावित है इसलिए इस उपचुनाव को कहीं ना कहीं माओवादी भी प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. ऐसे में माओवादियों का रुख भी इस उपचुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.


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