वो महिला, जिसने स्टीफन हॉकिंग की ज़िंदगी के ‘ब्लैक होल’ में भर दी रोशनी


wife of Stephen Hawking Jane Wilde

 

क्या आप जेन वाइल्ड के नाम से परिचित हैं? आज यानी 29 मार्च को उनका जन्मदिन है. स्टीफन हॉकिंग को तो जानते ही होंगे. साल भर पहले उनका 76 साल की उम्र में निधन हो गया और अभी 14 मार्च को बरसी थी.

न्यूटन, गैलीलियो, आइंसटाइन आदि महान वैज्ञानिकों की विरासत को संभालने वाले महान वैज्ञानिक. जिन्होंने अंतरिक्ष के रहस्यों से पर्दा हटाने में बेमिसाल योगदान दिया. ठोस वैज्ञानिक सिद्धांतों से ज़िंदगी को समझने के सरल तरीकों को सामने रखा. जिन्होंने उन सवालों को हल करने की सफल कोशिश की, जो किसी भी जागरुक इंसान के दिमाग में आते हैं.

ऐसा उन्होंने तब किया, जब वे न बोल सकते थे और न चल-फिर सकते थे. दुरुस्त दिमाग के अलावा दो अंगुलियों के अलावा शरीर के बाहरी अंग काम ही नहीं करते थे. इस हाल में वे कैसे विलक्षण सिद्धांतों को खोज पाए! जबकि डॉक्टरों ने उनकी दो साल में मौत का ऐलान किया था और वे उस ऐलान के बाद दशकों जीकर दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे.

बेशक, स्टीफन हॉकिंग अद्भुत प्रतिभा के धनी थे. लेकिन उनकी ये प्रतिभा निखरने के हालात उनके पास नहीं थे. हॉकिंग की ज़िंदगी में जेन वाइल्ड मरणासन्न व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन के रूप में आईं. उस वक्त, जब उनकी लाइलाज बीमारी मोटर न्यूरॉन का पता चल चुका था. ये भी पता चल चुका था कि वे सिर्फ दो साल जी सकेंगे. उस वक्त, जब हॉकिंग दुनिया से निराश हो चुके थे. ऐसे में खूबसूरत जेन ने उनको ज़िंदगी में लौटने का जज्बा पैदा किया. इसी हाल में हॉकिंग को स्वीकारा और उनकी जीवनसाथी बनकर ज़िंदगी जीने का वह गुर दिया, जिसको वे ताउम्र दिमाग में सहेजे रहे.

ये अजीब बात है कि स्टीफन हॉकिंग को दुनिया जितना ज्यादा जानती है, उतना ही कम उनकी पत्नी जेन वाइल्ड को जान पाई. उस वक्त में भी उनकी बात को शायद कोई नहीं सुन पाया, जब जेन ने बताना चाहा. उनके अनसुने दर्द को स्टीफन पर बनी फिल्म ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ में भी नहीं उकेरा गया, बल्कि स्टीफन की महानता के आवरण में सब ढक दिया गया. महज प्रेम कहानी और उस संबंध के टूटने की ऐसी आवाज सुनाई गई, जिस पर ताली तो बजाई जा सकती है, लेकिन हूक न उठे.

ज़िंदगी पर बनी फिल्म ने छुपाई हकीकत

हॉकिंग के निधन के समय जेन उनकी ज़िंदगी से जुदा हो चुकी थीं, फिर भी उन्होंने उस वक्त मीडिया से कोई बात नहीं की. उससे पहले 2014 में उन्होंने ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ की रिलीज के समय मन की बेचैनी को रखने की कोशिश जरूर की थी.

जेन हॉकिंग ने कहा कि फिल्म ने युगल जीवन और परिवार के बहुत से तथ्यों पर पर्दा डाल दिया. लंदन में हेनले लिटरेरी फेस्टिवल में कहा, कभी फिल्मों पर विश्वास मत कीजिए.

बताया जाता है कि यह फिल्म जेन हॉकिंग की ‘ट्रैवलिंग टू इनफिनिटी- माय लाइफ विद स्टीफन’ पर आधारित थी. फिल्म के लिहाज से कई ऐसे बदलाव कर दिए गए, जो नहीं होने चाहिए. इससे वास्तविकता खो गई. दर्जनों यात्राओं के समय एक गंभीर रूप से विकलांग सदस्य के साथ एक परिवार के लिए पैकिंग, आना-जाना, ड्राइविंग, सामान्य दिनचर्या के हिसाब से देखभाल, ये किसी को महसूस नहीं हो सका.

जेन का कहना जायज भी लगता है कि एक महानता को अमर करने के लिए जैसे गलत धारणाओं से सजा शोपीस रख दिया गया हो. ये बात इसलिए सही लगती है कि ऐसा न होता तो लोग जेन वाइल्ड को जान रहे होते, उनका भी सम्मान स्टीफन हॉकिंग जैसा ही होता.

फिल्म से जुदा हकीकत

फिल्म की कहानी में झोल है, तो असल किस्सा क्या है? वह ये, जब असाध्य मोटर न्यूरॉन रोग एम्यिोट्रॉफिक लैटरल स्क्लेअरोसिस (एएलएस) की सूचना ने स्टीफन को हिलाकर रख दिया. मौत को काफी नजदीक देखकर वे बेचैन हो गए. उन्हें यहां तक महसूस होने लगा कि जब तक पीएचडी की उपाधि मिलेगी, ज़िंदा भी नहीं रहेंगे, जीते जी डिग्री मिल भी गई तो लुंज-पुंज जिस्म के साथ किस काम की?

इससे पहले की बात है, 1962 में गंभीर प्रकृति की जेन वाइल्ड का परिचय उनकी दोस्त डायना किंग ने कराया, हालांकि जेन पहले से जानती थीं, क्योंकि दोनों छोटी क्लास में साथ पढ़ चुके थे. इस मौके पर दोनों एक-दूसरे से आकर्षित हुए. बात आई-गई हो गई. फिर एक पार्टी में उनकी मुलाकात फिर हुई और स्टीफन की बर्थ डे पार्टी में भी गईं. बाद में जेन जब अपने कॅरियर के लिए पढ़ाई-लिखाई करने में लगीं थीं, तभी डायना ने स्टीफन की बीमारी के बारे में बताया.

इस समय स्टीफन को नहीं समझ में आ रहा था कि आगे क्या होगा. वे उबरने की कोशिश भी कर रहे थे. उसी समय फरिश्ते सरीखी जेन उनकी ज़िंदगी में आईं. रेलवे स्टेशन पर मुलाकात के बाद साथ सफर किया और साथ डिनर करके पिक्चर देखी, डेट पर जाने का प्रोग्राम भी बनाया. इसके बाद जेन सेक्रेट्री नौकरी करती रहीं और कई महीने नहीं मिलीं.

कैंब्रिज में मई उत्सव में जाने के लिए स्टीफन जब उन्हें लेने पहुंचे तो जेन उनकी शारीरिक हालत देखकर परेशान हो उठीं. उन्हें दुख होता था कि शायद ये संबंध लंबे समय तक न चले. वहीं जेन के आने से स्टीफन की ज़िंदगी में बहार आ गई. जेन उन्हें ये समझाने में सफल रहीं कि “भविष्य जैसी कोई चीज नहीं होती है, आप अपने वर्तमान को बेहतर से जीने की कोशिश कीजिए. एक दिन जब आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पता चलेगा कि आपने जो ज़िंदगी गुजारी है वह निहायत खूबसूरत थी.”

स्टीफन की ज़िंदगी संवारने को बनाया लक्ष्य

जेन ने महसूस किया कि स्टीफन के जीने की तमन्ना खत्म हो चुकी है, लिहाजा दोनों एक हो जाएं तो बहुत कुछ अच्छा हो सकता है. स्टीफन की देखभाल को अपने जीवन का मकसद बना लिया. उन्होंने बीमारी के बारे में काफी जानने की कोशिश की, फिर ये सोचकर तसल्ली कर ली कि ज्यादा जानकारी से मानसिक तनाव बढ़ ही जाएगा, ज़िंदगी के बारे में ज्यादा सोचने से कोई फायदा नहीं, क्योंकि हष्ट-पुष्ट इंसान के भी ज़िंदा रहने की क्या गारंटी है.

आखिर दोनों के बीच रिश्ता परवान चढऩे लगा. स्टीफन ने मौका पाकर जेन के पिता से जॉर्ज वाइल्ड से हाथ मांग लिया. रिश्ता पक्का हो जाने के बाद स्टीफन के पिता फ्रेंक हॉकिंग ने जेन को आगाह किया कि स्टीफन की शारीरिक स्थिति अच्छी नहीं है, हो सकता है कि ज्यादा लंबे समय तक न रहे इसलिए जल्द मातृव सुख के बारे में सोचना. तमाम कठिनाइयों के साथ जेन ने शादी के रिश्ते को गंभीरता से लिया. ये भी सोचा कि परमाणु हथियारों के इस युग में न जाने कब संसार खत्म हो जाए, ऐसे में लंबे जीवन के बारे में क्या सोचना, बस खुशी-खुशी जीना चाहिए.

मेहनत और कुलशता की मिसाल

जेन के कॉलेज वेस्टफील्ड में अंडर ग्रेजुएट को शादी की अनुमति नहीं थी, लेकिन उन्होंने शादी की अनुमति इस आधार पर भागदौड़ करके ली कि हॉकिंग का जीवन लंबा नहीं है और स्नातक होने तक इंतजार नहीं किया जा सकता.

नतीजे में उन्हें कैंपस के बाहर रहना पड़ा. पैसे की जरूरत के लिए जेन ने हाथ में प्लास्टर चढ़ा होने पर भी दूसरे हाथ से स्टीफन के फेलोशिप की एप्लीकेशन को लिखा.

बीमार पति के साथ जेन को रहने के लिए मकान की समस्या से भी जूझना पड़ा. उन्होंने मेहनत और कुशलता की मिसाल पेश कर दी. शादी के बाद सप्ताहभर के घरेलू कामों की व्यवस्था करके लंदन में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पति हॉकिंग की पीएचडी को टाइप भी करती रहीं. शुक्रवार से सोमवार तक कैंब्रिज में रहती थीं और पढ़ाई के लिए लंदन में किराए पर.

दांव पर लगा दिया करियर

स्टीफन को 1966 में पीएचडी की डिग्री मिली तो दूसरी ओर जेन ने अच्छे अंकों से परीक्षा पास की, उच्च श्रेणी नहीं आई. उन्होंने भी पीएचडी करने का विचार किया और ऐसा विषय चुना जिसमें ज्यादा भागदौड़ न करना पड़े.

लंदन में दाखिला भी लिया, लेकिन गर्भवती हो जाने और स्टीफन की हालत और खराब होने से पीएचडी स्थगित कर दी. 28 मई 1967 को बेटे रॉबर्ट का जन्म हुआ. डॉक्टरों ने स्टीफन की दो साल की ज़िंदगी का जो एलान किया था, वह अवधि भी उसी समय समाप्त हो रही थी.

बेटे की खुशी से स्टीफन के जीने की लालसा और ताकत बढ़ गई और डॉक्टर हैरान हो रहे थे. रिसर्च भी रंग लाने लगी, स्टीफन की ख्याति बढ़ने लगी. दो साल के अंदर उनका शरीर व्हीलचेयर पर आ चुका था. उधर जेन अपनी थीसिस पूरी करने के लिए संघर्ष कर रही थीं. वर्ष 1970 में वे फिर गर्भवती हो गईं और फिर बेटी लूसी का जन्म हुआ. दो छोटे बच्चे और बीमार पति की देखभाल, इस मुश्किल में जेन को पढ़ाई करना होती थी.

बच्चों की मां ही नहीं, बाप भी बनीं जेन

वर्ष 1974 तक स्टीफन खाना, सोना, बिस्तर पर जाना आदि सभी काम खुद कर सकते थे, लेकिन बाद में यह काम मुश्किल हो गए. कुछ समय तक तो उनकी पत्नी जेन कपड़े बदलने समेत सभी काम करती थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ जेन के लिए अब स्टीफन के सब काम करना कठिन हो गया. लिहाजा उन्होंने स्टीफन के एक शोध सहायक को घर पर ही रख लिया.

उसका काम था स्टीफन को शारीरिक मदद देना. स्टीफन अपने बच्चों के साथ खेल नहीं सकते थे, इसलिए जेन ही उस वक्त पिता की भूमिका निभाती थीं. उन्होंने ही बच्चों को क्रिकेट खेलना सिखाया. जेन कहती थीं कि दूसरी महिलाओं के पति अगर घर के काम में हाथ नहीं बंटाते तो उन्हें गुस्सा आता है, लेकिन मुझे नहीं आता, क्योंकि मैं हकीकत जानती हूं.

अनदेखी ने पहुंचाई दिल को ठेस

हालात ऐसे हो गए कि जेन का व्यक्तित्व खो सा गया. वहीं स्टीफन की ख्याति आसमान छूने लगी. जेन को महसूस होने लगा कि इतने कष्ट, परिश्रम के बावजूद पति की सफलता के आगे नजरंदाज किया जा रहा है.

पत्रकारों ने भी जेन को कोई अहमियत नहीं दी. बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर यही एहसास कराया कि बुद्धि में वे स्टीफन के आगे कुछ नहीं.

जेन ने खुद ऐसा एक मौके पर कहा, “मेरे विचार जानने में किसी को दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि पति के विचारों की तुलना में मेरे विचार महत्वपूर्ण नहीं थे. पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने अनदेखी की. ऐसा लगा, जैसे मेरी कोई हस्ती ही नहीं रह गई, जबकि पुस्तक के लिखने की प्रेरणा मैंने ही स्टीफन को दी, लेकिन पुस्तक लोकप्रिय होते ही मेरी हालत दयनीय हो गई.”

एकाध जगह जेन के बारे में पूछे जाने पर स्टीफन ने जेन की सराहना की, लेकिन अपनी सफलता में कभी हिस्सेदार नहीं बनाया. ऊंचाई पर पहुंचने पर सभी साधन मुहैया हो गए तो जेन दूर छिंटक गईं.

किताब की भूमिका में स्टीफन ने स्वीकारा सच

जीवन के 25 साल साथ गुजारने के बाद स्टीफन ने नर्स इलाइन का साथ पकड़ा, जो तीन साल में ही छूट गया और जेन ने हमजोली रहे दोस्त जोनाथन को बाकी ज़िंदगी का हमसफर बना लिया.

जगजाहिर किए बगैर दोनों एक दूसरे से अलग हो गए. काफी बाद में पता चलने पर लोग हैरान हुए और अफवाह ये भी रही कि शायद धार्मिक विचारों में भिन्नता के कारण दोनों अलग हुए. हालांकि बाद में जेन ने कहा कि ऐसा सोचना लोगों का भ्रम है.

दोनों के बीच तलाकनामे को 1995 में अंतिम रूप मिला. स्टीफन ने ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ की भूमिका लिखते समय स्वीकार किया कि उनकी पत्नी जेन और बच्चों रॉबर्ट, लूसी व टिम की मदद, सहयोग और प्रेरणा के बलबूते ही साधारण जीवन जीया और ऊंचा करियर बनाया, उनके बगैर ये संभव नहीं था.


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