पिछले पांच वर्षों में बद से बदतर हुए किसानों के हालात


agriculture sector need some special provisions in budget

 

नरेंद्र मोदी सबके लिए अच्छे दिनों के वादे के साथ सत्ता में आए थे. आकंड़े बता रहे हैं कि 1998-1999 के बाद बीते पांच वर्षों में कृषि की विकास दर सबसे बदतर रही है. जिस कृषि पर इस देश की कम से कम 47 प्रतिशत श्रमशक्ति पूरी तरह निर्भर है यानी करीब 60 करोड़ लोग. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीईओ) 2018-19 के आय के अनुमान बता रहे हैं कि तीसरी तिमाही में कृषि आय में वृद्धि की दर 14 वर्षो में सबसे कम रही है.

कृषि के क्षेत्र में 2018-19 में विकास दर 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो कि 2017-18 की तुलना में 2.3 प्रतिशत कम है. 2017-18 में यह विकास दर पांच प्रतिशत थी.

यह एक वर्ष की तुलना में दूसरे वर्ष की गिरावट तक सीमित नहीं. आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 20 वर्षों में बीते करीब पांच वर्ष कृषि में विकास दर, किसानों की आय में वृद्धि, फसलों के मूल्य में गिरावट और कृषि निर्यात की दृष्टि से सबसे बदतर रहा है.

1998-1999 से लेकर 2003-2004 तक कृषि की विकास दर 2.9 प्रतिशत थी. 2004-5 से 2008-09 तक यह विकास दर 3.1 प्रतिशत रही. 2009-10 से 2013-14 तक यह विकास दर 4.3 प्रतिशत रही. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के बाद 2014-15 से 2018-19 तक यह विकास दर 2.9 प्रतिशत है. आंकड़े साफ बता रहे हैं कि पिछले पांच वर्षों में कृषि के विकास दर में 2009-10 की तुलना में करीब 40 प्रतिशत की गिरावट आई है.

अब जरा कृषि आय में वृ्द्धि के आकंड़ों को देखें. किसानों की आय दोगुनी करने का वादा बीजेपी ने किया था. प्रधानमंत्री और कृषिमंत्री बार-बार किसानों की आय दो गुनी करने की बात करते रहे हैं. कई बार तो उन्होंने यह भी दिखाने की कोशिश की है कि किसानों की आय बढ़ी है. जबकि सच्चाई यह है कि किसानों की आय निरंतर गिरती गई है.

कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी विभिन्न सांख्यिकी संस्थानों के सर्वे के आधार पर बताते हैं कि किसानों की वार्षिक वास्तविक आय में बृद्धि की दर 2009-10 में 3.6 प्रतिशत थी, जो 2013-14 से 2017-18 में गिरकर 2.5 प्रतिशत हो गई.2018-19 में और तेजी से गिरावट आई. इस वर्ष गिरावट पिछले 14 वर्षों में सबसे अधिक है.

इन तथ्यों की रोशनी में अब जरा किसानों की आय दो गुनी करने के तथ्य पर विचार करें. किसानों की आय 2022-23 तक दोगुनी करने के लिए बनी विशेषज्ञ कमेटी के अध्यक्ष अशोक दालवाई का कहना है कि किसानों की आय दो गुनी करने के लिए जरूरी है कृषि की विकास दर कम से कम 10.4 प्रतिशत प्रति वर्ष हो और आधार वर्ष 2015-16 माना जाए. कहां आय दोगुनी करने के लिए प्रतिवर्ष 10.4 प्रति विकास दर की आवश्यकता है और कहां मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के शासन में कृषि की विकास दर साल-दर-साल गिरती जा रही है.

2018-19 के लिए अनुमान 2.7 प्रतिशत हैं और पिछले पांच वर्षों की औसत विकास दर 2.9 प्रतिशत है जबकि इसके पहले के यूपीए के शासन के पांच वर्षों शासन के दौरान यह विकास दर 4.3 प्रतिशत थी. कृषि से जुड़े सारे तथ्य साफ बता रहे हैं कि किसानों की आय दोगुनी करने का वाद सिर्फ उन्हें दिवास्वप्न दिखाना है एक जुमलेबाजी है. जबकि जमीनी हक़ीक़त उल्टी दिशा में जा रही है.

पी साईनाथ जैसे कृषि और किसान मामलों के विशेषज्ञ पत्रकारों ने तथ्यों के साथ यह साबित किया है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बीमा कंपनियों का जेब भर रही हैं. कुल 18 बीमा कंपनियाँ पीएमएफबीवाई के तहत हैं जिनमें से छह कंपनियाँ सरकारी हैं और 12 निजी क्षेत्र की है. सरकार ने 2015-16 में किसानों से 5,490 करोड़ रुपये प्रीमियम वसूला था जो कि 2016-17 में बढ़कर 22,550 करोड़ रुपये हो गया और 2017-18 में यह और बढ़कर 24,350 करोड़ रुपये हो गया. अकेले खरीफ फसल में ही वर्ष 2015-16 के दौरान 16,600 करोड़ रुपये प्रीमियम के रूप में वसूले गए थे जो कि 2016-17 में बढ़कर 19,510 करोड़ रुपये हो गए या प्रति किसान 41 हजार रुपये से बढ़कर 57 हजार हो गए. जबकि निपटाए गए दावे का मूल्य 10,284 करोड़ रुपये या 98 प्रतिशत से घटकर 9629 करोड़ रुपये या 61 प्रतिशत पर आ गया.

स्पष्ट तौर पर इस योजना का वास्तविक लाभ बीमा कंपनियों को मिल रहा है. करदाताओं के पैसे जिससे किसानों का भला होना चाहिए था, बीमा कंपनियों की जेब में जा रहे हैं.

नरेंद्र मोदी के शासन के करीब इन पांच वर्षों में अधिकांश मुख्य फसलों पर लाभ में एक तिहाई की गिरवाट आई. कृषि निर्यात 42 विलियन डॉलर ( 2013-14) से गिरकर 2017-18 में 38 बिलियन डॉलर रह गया. लेकिन कृषि का आयात 16 विलियन डॉलर (2013-14) से बढ़कर 24 विलियन डॉलर (2017-18) हो गया.

जहां तक कर्जमाफी का प्रश्न है पिछले 50 महीनों में करीब 4 लाख करोड़ के कर्जों की माफ़ी सरकार ने कॉरपोरेट घरानों की है, लेकिन किसानों का कुल कर्ज ही करीब 70 हज़ार करोड़ है, उसे माफ करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार पैसे का रोना-रोती रही.

कृषि और किसान की बदतर होते हालात मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की पराजय के कारण बने थे. देश के अन्य हिस्सों में किसानों का असंतोष बढ़ता जा रहा था. जो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी थी. किसानों को इसी असंतोष और आक्रोश को ढंकने के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6000 रूपए देने की घोषणा अंतरिम बजट में की गई. यह प्रति महीने एक किसान परिवार के लिए 500 रुपये और प्रतिदिन 17 रुपये होता है. कर्ज में बुरी तरह डूबे और साल-दर-साल गिरती आय वाले किसानों को प्रतिदिन 17 रूपया मुहैया करना मेहनतकश अन्नदाताओं का सम्मान नहीं अपमान है.

किसानों की स्थिति पिछले पाचं वर्षों में बद से बदतर होती गई है, जिसकी अभिव्यक्ति असंतोष एवं आक्रोश के रूप में सड़कों पर भी होने लगी थी. इस असंतोष और आक्रोश को 17 रुपये प्रतिदिन देकर रोकने की कोशिश मोदी सरकार ने करने की कोशिश की है. लेकिन किसानों के कठिन हालात इससे बदलने वाले नहीं है. इसकी वजह से ही अब यु्द्धोन्माद और नफरत की नैया पर सवार होकर ही मोदी अपनी वापसी का सपना देख सकते हैं.

(रामू सिद्धार्थ फारवर्ड प्रेस (हिंदी) के संपादक हैं.)


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