मिशन 2019: किस रणनीति के साथ उतरेंगे बीजेपी और कांग्रेस
2018 में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधान सभा चुनाव इस अर्थ में अपनी खास महत्ता के लिए याद रखे जाएंगे, कि उनके परिणामों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही 2019 के आम चुनाव के लिए कहीं ज्यादा स्फूर्त तरीके से कमर कस लेने के लिए प्रेरित कर दिया है. एक के पास उसके सकारात्मक कारण हैं और दूसरे के पास नकारात्मक. कांग्रेस उत्साह में है और बीजेपी ‘मत चूको चौहान’ वाली मुद्रा में.
दोनों ही दलों के रणनीतिकार अपनी-अपनी तरह से रणनीति बनाने और उसे यथार्थवादी तरीके से ज़मीन पर उतारने के काम में जुटे हुए हैं. कांग्रेस के रणनीतिकार और रणनीतियां जरा सुस्त चाल वाली शैली में होती हैं, पर उन्हें कमतर आंकना नासमझी ही होगी. बीजेपी के रणनीतिकार और रणनीतियां तेज, विराट और मैदान फतह कर डालने के जोश से भरी दिखाई देती हैं, परंतु 2014 से सबक लेते हुए, जनता का उन पर ज्यादा भरोसा करना,नासमझी दिखाने जैसा हो सकता है.
नरेंद्र मोदी के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण होगा. 2014 में उनके पास कांग्रेस की गिरती साख पर प्रहार करने और नारों की बुलंदी से ही रण जीत लेने का आसान मौका बन गया था. इस बार ऐसा नहीं होगा. मोदी सरकार के पांच सालों के कार्यकाल और उपलब्धियों पर यह चुनाव जनमत संग्रह जैसा ही होने वाला है. 2014 का चुनाव उन्होंने सवालों की ताकत से जीता था, पर 2019 का चुनाव जीतने के लिए उनके जवाबों की शक्ति दांव पर लगेगी. यों जवाब देने वाली भूमिका को भी सवाल करने वाली भूमिका में तब्दील कर देने का हुनर उन्हें आता है. वे इस खेल के चतुर खिलाड़ी हैं. ज़रूरत होगी कि वे अपने को जवाब देने वाले खेल के लिए भी तैयार करके आलराउंडर बनें.
राहुल गांधी, बीजेपी द्वारा गढ़ी गई पप्पू वाली छवि को फाड़कर बाहर आ चुके हैं और अब धारदार सवाल करने और आत्मविश्वास के साथ आरोप लगाने की कला में महारत हासिल करते नज़र आने लगे हैं. ‘चौकीदार चोर है’ के मुहावरे को उन्होंने खासा लोकप्रिय बना दिया है. यूपीए गठबंधन में नए दल जुड़ रहे हैं. ममता बनर्जी का यह कहना कि वे बीजेपी को केंद्र से हटाने के लिए साम्यवादी दलों से भी समझौता करने को तैयार है, विशेष मायने रखता है.
चुनाव की पृष्ठभूमि
मोदी की चमक फीकी पड़ रही है. उनके 45 दलों वाले गठबंधन के सहयोगी उन्हें अलविदा कहने लगे हैं. यहां तक कि उनकी अपनी पार्टी बीजेपी के सांसद भी उनसे अलग हो रहे हैं. सुषमा स्वराज और उमा भारती ने अगला चुनाव न लड़ने का ऐलान कर मोदी के साथ एक तरह से अपनी असहमति ही जता ही दी है. नोटबंदी, जीएसटी, सरकारी बैंकों की लूट और हिंसक वातावरण ने विरोधी माहौल बना दिया है.
मोदी सरकार ने योजनाओं के प्रचार के बहाने, अपना प्रचार करने पर सरकारी खजाने से केवल साढ़े चार साल के अरसे में ही, जनता से वसूले गए करों से प्राप्त धन में से 5246 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं. यह खुलासा उनके सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने खुद ही लोकसभा में किया है. इसके बरक्स यूपीए सरकार ने इसी मद में दस साल के अरसे में 5040 करोड़ रुपये खर्च किए थे, यानी मोदी सरकार के खर्च से आधे से भी कम. मोदी सरकार ने जो कर्ज़ लिए हैं, उनके लिए उसे हर दिन 1450 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाना पड़ रहा है. इसकी तुलना में सब्सिडी पर किया जा रहा खर्च मात्र 600 करोड़ रुपये रोजाना है. देशवासियों को तेल की अकल्पनीय कीमत चुकानी पड़ रही है. पेट्रोल की टैक्स विहीन कीमत मात्र 34 रुपया प्रति लीटर है. यानी उस पर कीमत से दो गुना ज्यादा तो कर ही लगे हुए हैं. किसानों के उत्पादों की कीमतें गिर रही हैं. उधर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रुपया लगातार गिर रहा है.
ऐसी पृष्ठभूमि में होने वाले चुनाव खासे रोचक हो गए हैं. दोनों गठबंधन अपनी प्रभावी रणनीति के सहारे जीतने के लिए कटिबद्ध हो गए हैं. मोदी-शाह की राजनीतिक शैली को पांच राज्यों में मिली हालिया पराजय के कारण थोड़ा धक्का तो लगा है, पर इसी से सबक लेते हुए बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए और भी मुस्तैदी से जुट गई है. उसे अपने कोषागारों, कुबेर-मित्रों और सुव्यवस्थित पार्टी मशीनरी पर पूरा भरोसा है.
बीजेपी के रणनीतिकारों की टीम ने एक साल पहले से कार्ययोजना बनाने की शुरुआत कर ली थी. अब उसमें पांच राज्यों में मिली पराजय के बाद कुछ संशोधन भी कर लिए गए हैं. इस टीम ने गहराई से विश्लेषण करने के बाद पाया, है कि बीजेपी को शहरी और अर्द्धशहरी इलाकों से नौजवानों के वोट इस बार पांच राज्यों में नहीं मिले हैं. लिहाजा वह इस बार युवाओं को फिर से लुभाने के लिए नए सिरे से रणनीति बना रही है. उसने बीजेपी के युवा मोर्चे को ज्यादा तवज्जो और कार्यक्रम देने का फैसला किया है.
यदि राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ने और जीतने के लिए अपने को पहले से अधिक चतुर बना लिया है, तो मतदाताओं ने भी उसी स्तर पर अपने को चाक-चौबंद बना लेने में कोई कोताही नहीं बरती है. आखिर दोनों की ज़मीन एक ही है. एक ही समाज है और एक ही कौशल आधार है. अब आप विज्ञापनों में दिखाई गई प्रगति और विकास से बेवकूफ नहीं बना सकते. बड़ी तादाद में बेरोज़गारी के बढ़ने के कारण ही युवा मतदाताओं का मोह बीजेपी से टूटा है. 2014 में नरेंद्र मोदी ने ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा देकर और हर साल दो करोड़ नए रोज़गार सृजित करने का वादा करके युवाओं को अपने पक्ष में लामबंद किया था, वह भ्रम अब टूक-टूक हो चुका है. अतिशयोक्तिपूर्ण और अवास्तविक सपनों का यही हस्र होता है.
क्या है कार्ययोजना
अमित शाह ने दिसंबर के तीसरे सप्ताह के आरंभ में युवा मोर्चे की कार्यकारिणी की बैठक की और उनके लिए तय की गई भूमिका से उन्हें अवगत कराया. इस समय देश में 18 से 35 साल के आयु वर्ग वाले लगभग 28 करोड़ मतदाता हैं. शाह का मानना है कि उनमें जोश तो होता है, पर उतनी परिपक्व समझ नहीं होती, कि वे राजनीतिक दलों की असलियत को पहचान सकें, लिहाजा उन्हें नारों से लुभाकर अपने पक्ष में लाया जा सकता है. इनमें भी जिन्हें 2019 में पहली बार वोट डालने का अवसर मिलने वाला है, वे बीजेपी के खास निशाने पर हैं. उनके लिए नारा गढ़ा गया है, ‘पहला वोट मोदी को’. यह काम सम्हालेंगी सांसद पूनम महाजन.
युवा मोर्चे के बैनर में मार्च महीने से पहले ही करीब 14 कार्यक्रमों को निबटा लिया जाएगा. 12 जनवरी राष्ट्रीय युवा दिवस से उनका अभियान ज़मीन पर काम करने लगेगा. मोदी-शाह के लिए 2019 का चुनाव अस्तित्व रक्षा का चुनाव होगा. वे जानते हैं कि यदि हार गए तो वे कई दशक पीछे चले जाएंगे और जीत गए तो दोगुनी ताकत से सत्ता का उपयोग करने की योग्यता पा लेंगे. शाह ने इस चुनाव की तुलना पानीपत की लड़ाई से की है.
18 से 23 साल के नए युवा मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए छह स्तरों वाली नीति बनायी गई है. इसका पहला स्तर है, लेखकों, ब्लागरों और सोशल मीडिया पर समूह चलाने वालों को अपने साथ जोड़ना. दूसरा स्तर तय हुआ है, सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए. इसके तहत विभिन्न जातियों-वर्गों के प्रभावशाली लोगों की टीम बनाई जानी है.
बीजेपी का चुनावी अभियान कार्यक्रम
बीजेपी ने जनवरी 2019 से ही अपने ज़मीनी कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए टाइम टेबल भी बना लिया है. इसके अनुसार वह इन कार्यक्रमों के जरिए युवाओं को साधने निकलने वाली है –
पहला वोट मोदी को – ऐसे युवा जो पहली बार मतदान करने वाले हैं, उन्हें संकल्प दिलाना कि वे अपना वोट मोदी को देंगे.
नेशन विद नमो – नमो युवा नाम से या टैग बनाकर ऑनलाइन अभियान शुरू किया जाएगा. इस मौके के लिए एक विशेष गीत तैयार किया गया है.
युवा संसद – 15 जनवरी से 10 फरवरी तक सभी विश्वविद्यालयों में आयोजन किया जाएगा. युवा यहां पर बहस करेंगे.
कमल कप खेल प्रतियोगिता – जिला और राज्य स्तर पर इसका आयोजन होगा. राज्य स्तर पर 12 जनवरी से 15 फरवरी तक होगा.
कैंपस एंबेसडर नेटवर्क – कॉलेज स्तर पर एंबेसडर बनाए जाएंगे.
युवा आइकॉन नेटवर्क – विभिन्न क्षेत्रों में यश अर्जित कर चुके युवाओं को जोड़ने की योजना.
ऑनलाइन प्रतियोगिता – विभिन्न विषयों पर प्रतियोगिताएं आयोजित कर युवाओं को जोड़ने का कार्यक्रम.
नेशन विथ नमो लेखक सम्मेलन – 25 से 31 जनवरी तक नगर निगम स्तर पर राजनीति पर लिखने वाले लेखकों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा.
विजय लक्ष्य युवा सम्मेलन – 1 से 15 फरवरी तक जिलों में मोदी की जीत के लिए युवा सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे.
कमल युवा महोत्सव – 1 से 15 फरवरी तक जो युवा बीजेपी से जुड़ जाएंगे, उनका महोत्सव आयोजित होगा.
राज्य स्तरीय टाउनहॉल – 16 से 22 फरवरी तक विश्वविद्यालयों में राज्य स्तरीय टाउनहॉल का आयोजन.
राष्ट्रीय युवा टाउनहॉल – 23 फरवरी को दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय युवा टाउनहॉल करेंगे. इसमें नमो एप के माध्यम से गांवों को जोड़ा जाएगा.
नुक्कड़ नाटक – 24 फरवरी से 1 मार्च तक जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कर मोदी के पक्ष में वातावरण निर्माण किया जाएगा.
कमल संदेश मोटर साइकिल महारैली – 2 मार्च को देश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में इस रैली का आयोजन होगा.
कांग्रेस की योजना
कांग्रेस भी 2019 के आम चुनाव के लिए अपनी कार्य योजना बनाने में पीछे नहीं है. उसकी नीति बिना ज्यादा हल्ला मचाए ठोस कार्यक्रमों को अंजाम देने की नज़र आती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों पी चिदंबरम और जयराम रमेश और राज्यसभा सदस्य राजीव गौड़ा को इस काम में लगाया गया है. पार्टी का फोकस मतदाताओं के तीन वर्गों किसान, युवा और महिलाओं पर विशेष रूप से होगा.
कांग्रेस पार्टी के ब्रेन स्टॉर्मिंग सत्र में दो मुद्दे खासतौर पर उभरकर सामने आए थे, एक तो यह कि युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए और दूसरा उन्हें मनरेगा वाले मॉडल पर 100 दिन के शहरी रोजगार की गारंटी दी जाए. इसमें बेरोजगारी भत्ते देने का निर्णय लेने पर खजाने पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने दूसरा विकल्प चुना है. इसके तहत स्नातक, गैर-स्नातक और व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में शिक्षित शहरी युवाओं को व्हाइट कॉलर रोजगार देने का फैसला किया गया है. व्हाइट कॉलर रोजगार से तात्पर्य है, कार्यालयों और उद्यमों में गैर-श्रमिकीय श्रेणी का रोजगार.
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी रोजगार मंत्रालय के नाम से एक नए मंत्रालय को बनाने का इरादा भी रखती है. इसके तहत 22 अन्य मंत्रालयों की रोजगार योजनाओं को लाए जाने का प्रस्ताव होगा. जिन प्रदेशों में अभी कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां पर शहरी रोजगार वाली योजनाओं को तुरंत ही क्रियान्वित किए जाने के लिए निर्देश जारी किए जा रहे हैं.
इस तरह कांग्रेस भी, पहली बार वोट करने वाले 15 करोड़ नौजवानों को ध्यान में रखकर आम चुनाव में उतरने की तैयारी में है. प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, परंतु वह केवल धोखा ही साबित हुआ हैं इससे 2014 में पहली बार वोट करने वाले करीब 9 करोड़ युवा मतदाता सरकार से नाराज हैं. उन्हें ध्यान में रखकर कांग्रेस अपने घोषणापत्र में एक व्हाइट पेपर जोड़ने वाली है, जिसमें शहरी और ग्रामीण स्तर की बेरोजगारी की पूरी तस्वीर पेश की जाएगी. इसमें स्थायी समाधान के उपाय भी दिए जाएंगे.
कांग्रेस चुनाव घोषणा पत्र समिति के संयोजक राजीव गौड़ा एक कारगर घोषणा पत्र बनाने के लिए करीब 200 सत्रों की बैठकों का दौरा जारी रखे हुए हैं.
तेलंगाना से सबक
किसानों का कर्ज़ माफ करना उनके कल्याण का स्थायी विकल्प कभी नहीं हो सकता. हां, इससे उन्हें फौरी तौर पर राहत ज़रूर दी जा सकती है. कृषि उत्पादों का वाजिब दाम किसान को कैसे मिले, इस पर कुछ क्रांतिकारी बदलावों की दरकार है. बिचौलिया बाज़ार प्रणाली ने किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान किया है.
तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ‘रायडू बंधु’योजना बनाई और वह इस कदर सफल रही कि केसीआर को उसने दोबारा सत्ता पर पहुंचा दिया. इस योजना में किसानों को उनकी सीघी आय के रूप में 8 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष देना शुरू किया है. और इस साल से उसे बढ़ाकर 10 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है. इससे वहां के 58 लाख किसानों को फायदा हुआ है.
सीधे किसान को लाभ देने वाली, इस तरह की योजनाओं की राष्ट्रीय स्तर पर भी आवश्यकता है. इसके लिए तेलंगाना सरकार से सबक लिया जा सकता है.