संघ और मोदी को क्यों परेशान करते हैं नेहरू?


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‘जो गुलाब लगा कर घूमते हैं वे सिर्फ बागों की जानकारी तक सीमित है, वे कभी भी खेती और उस पर जिंदा रहने वाले किसानों की समस्या को नहीं समझ सकते.’ नेहरू पर अपरोक्ष रूप से हमला करते हुए इस तरह का एक तीखा बयान मोदी ने दिया. 4 दिसंबर को ‘द टेलीग्राफ़’ ने एक उपशीर्षक दिया, कहा- शायद वो, जो गुलाब की बजाए ‘नरेंद्र दामोदरदास सूट’ पहनते हैं, खेती के बारे में बेहतर समझते हैं.

मोदी ने ये टिप्पणी राजस्थान में एक चुनाव रैली के दौरान की थी. सब जानते हैं आरएसएस के प्रचारक इस तरह की शब्दावली का प्रयोग अपने व्याख्यानों में करते हैं. इसमें कुछ भी आसामान्य नहीं है. लेकिन इसमें सवाल ये उठता है कि पूर्ववर्ती नेताओं में सिर्फ नेहरू (शायद सभी तर्कशील) ही संघ या आरएसएस को क्यो चुभते हैं या सबसे ज़्यादा परेशान करते हैं?

इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं. नेहरू पर मोदी के लगातार हमलों का पहला कारण देश की संकल्पना का धर्मनिरपेक्ष और एक लोकतांत्रिक राष्ट्र का होना है. यह देश को आरएसएस की अवधारणा के बिल्कुल विपरीत बनाता है.

नेहरू तर्कशील और विचारशील रहे हैं. ऐसा व्यक्ति जो तर्कसंगत हो, वैज्ञानिक समझ रखता हो और साथ ही मुखर भी हो, ऐसे लोगों से संघ खास तौर से नफरत करता है. वर्तमान में यही एक सबसे बड़ा कारण रहा है जहां इस तरह के विचार रखने वाले लोगों को चिह्नित किया जा रहा है और उन पर हमले किए जा रहे हैं. इस तरह के हमले देश के विभिन्न भागो में किए गए इसमें एक समानता रही कि ये हमले एक ही वक्त किए गए. ‘कलबुर्गी’ जो एक भारतीय विद्वान थे, और हिन्दू समाज में व्याप्त अवैज्ञानिकता व अंधविश्वासों को दूर कर तर्कशीलता का प्रचार कर रहे थे कि 2015 में हिन्दू कट्टरपंथियों के द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गई.

महाराष्ट्र के ‘नरेंद्र दाभोलकर’ जो पेशे से एक चिकित्सक थे और तर्कशील थे, ने एक तर्कशील सोसाइटी का गठन किया था. उन्हें भी इसी तरह के कट्टरपंथी समूह द्वारा 2013 में गोली मार दी गई. ‘गोविंद पंसारे’ भी एक तर्कशील सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे, उन्हें भी उनके तर्कशील समझ के चलते मार दिया गया.

इसी तरह ‘गौरी लंकेश’ को हिन्दू दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों के खिलाफ खुल कर बोलने और तर्कशील विचारों की एवज में अपनी जान गंवानी पड़ी, उन्हें दक्षिणपंथी समूहों द्वारा गोली मार दी गई. इन सब में जो एक समानता थी वो ये की ये सभी अतार्किकता के खिलाफ थे और एक लोकतांत्रिक व प्रगतिशील विचार के वाहक थे.

संघ के आंदोलन के लिए हर नास्तिक उनकी राह का रोड़ा है जिससे मोदी और उनका संघ सबसे ज़्यादा नफरत करता है या जिसे वो एक क्षण भी बर्दाश्त नहीं कर पाता. ये वो व्यक्ति या समूह है जो सीधे इनकी मानसिकता पर हमला करते हैं और इनके संघी होने की संकल्पना को चुनौती देते हैं. ये संकल्पना पूरी तरह अवैज्ञानिकता और अंधविश्वास पर आधारित है इस तरह नेहरू विचारात्मक तौर पर उनके पहले दुश्मन हुए.

नेहरू की वैश्विक समझ या दुनिया को देखने के उनके तरीके को उनके द्वारा किए दो महत्वपूर्ण कार्यों से समझा जा सकता है- पहला, जेल से लिखे वे तीस पत्र, जो उन्होंने अपनी 10 वर्षीय बेटी इंदिरा को लिखे. इन पत्रों में उन्होंने अपने तर्कसंगत दृष्टिकोण का परिचय दिया है. इन पत्रों को जो बात शानदार बनाती है वो इनका तर्कशील होना है. उसमें बिग बैंग से लेकर प्राचीन सभ्यता और फिर विकास करते हुए और कार्यों का विभाजन करते हुए आधुनिक समाज के बनने तक की बातों को रखा गया है. ‘मारिया पोपोवा’ के शब्दों में- ये पत्र उन सब के लिए जो हमसे भिन्न हैं. शांति और न्याय के लिए जरूरी नैतिक मूल्य का आधार स्तंभ है.

सत्ता को हक़ न मान कर उसे पाने वालों के द्वारा अपने हक में या खुद के हित में कार्य न करते हुए उन सब के लिए करने की बात करता है जिसे उसकी सबसे ज़्यादा जरूरत है या जिसके लिए उसे किया जाना चाहिए और जिसके लिए उसे बनाया भी गया है. ये पत्र खुले तौर पर उनकी वैश्विक, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सामंती विरोधी समझ को दर्शाते हैं.

दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जिसे नेहरू ने ‘भारत एक खोज’ के नाम से किया है. ये एक आश्चर्यजनक कार्य है देश को जानने व समझने के लिए देश के हर नौजवान को पढ़ना चाहिए. इसे नेहरू ने 1942- 1946 तक की अपनी लंबी कैद के दौरान लिखा और आज़ादी के ठीक पहले 1946 में इसे प्रकाशित किया. एक बार फिर से नेहरू का सामाजिक-आर्थिक विकास का विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सामने था. ‘भारत एक खोज’ नेहरू का एक बेहतरीन कार्य है जिसमें भारत के विकास की कहानी को दिखाया गया है जो संघ की संकल्पना से कहीं मेल नहीं खाता. इसलिए नेहरू उनके हिन्दू-राष्ट्र की संकल्पना में आंख का कांटा बने हुए है या संघ की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं.

आइए देखें, नेहरू देश की कृषि को कितना जानते समझते थे. इसके लिए एक बार हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा बांध पर जाना होगा, जिसे नेहरू के सपनों के तहत बनाया गया. भाखड़ा बांध को आधुनिक भारत का मंदिर भी कहा गया है. भाखड़ा बांध देश में सिर्फ खाद्यान्न निर्भरता का पर्याय भर नहीं है बल्कि ये पंजाब के पूरे कृषि क्षेत्र को बचाने का कार्य भी करता है. इससे पूर्व ये क्षेत्र इस इलाके की नदियों के द्वारा बार-बार तबाह हुआ था. पहले भाखड़ा बांध और उसके बाद नांगल बांध को सिर्फ पंजाब की सिंचाई के लिए ही नहीं बनाया गया बल्कि ये दूरस्थ राजस्थान को भी सिंचाई उपलब्ध करवाते हैं और ये वो है जो नेहरू भारतीय कृषि के बारे जानते समझते थे.

इसके अलावा नेहरू का एक और वर्ग आधारित काम था. खासकर पंजाब, जहां नेहरू सामंतियों के प्रभाव से मुक्त कर किसानों को मालिकाना हक दिलवाते हैं. इससे पहले सामंत बगैर कुछ किए खेती का ज़्यादातर हिस्सा ले लेते थे. उसके एकदम उलट मोदी देश में कॉरपोरेट घरानों के खैर-ख्वाह बन कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट घरानो को देने पर तुले हुए है और ज़्यादा से ज़्यादा खेती की ज़मीन को कॉरपोरेट कृषि में झोंकने पर आमादा है. ये देश में आज खेती की तरक्की की बजाए किसानों की आत्महत्या की वजह बनती जा रही है. किसानों द्वारा आत्महत्याएं रूकने का नाम नहीं ले रही बल्कि ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

इस समय क्या याद रखने की ज़्यादा जरूरत है. वो, जो कभी इस देश की आज़ादी के लिए खड़े नहीं हुए, जिन्होंने आज़ादी के आंदोलनों से पूरी तरह किनारा करके रखा, आज देश में भारी अंधविश्वासों, अपने अलोकतांत्रिक रुझानों और तानाशाही रवैये के साथ इस देश की सत्ता पर काबिज हुए हैं. हम सबको इसे देखना-सुनना पड़ रहा है इसलिए बदलाव की दिशा में कार्य करने की जरूरत है. आधुनिकता से हम वापस अादमयुग में नहीं जा सकते हैं जिसे हम हजारों साल पीछे छोड़ आए हैं.


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