सुरक्षित दुनिया के लिए दुनिया भर के युवाओं की अनोखी मुहिम


worldwide youth movement for climate change

 

15 मार्च के दिन पूरे विश्व में ‘भविष्य के लिए शुक्रवार’ और ‘विनाश के खिलाफ विद्रोह’ जैसे नारे गूंज रहे थे. छात्रों और युवाओं का यह विद्रोह जलवायु परिवर्तन से होने वाले विनाश पर सरकारों की उदासीनता के खिलाफ था. इस मुहिम का नेतृत्व दुनिया भर के छात्र-युवा कर रहे थे.

छात्र मांग कर रहे थे कि कार्बन उत्सर्जन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जाए.

ये प्रदर्शनकारी वो स्कूली बच्चे हैं, जिन्होंने शुक्रवार को कक्षा छोड़ कर अपनी मांगों को लेकर सरकारों के खिलाफ विद्रोह का उद्घोष किया.

स्वीडन के 16 वर्षीय छात्र ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा शुरू किए गए इस आंदोलन में दुनिया भर के छात्र अपने-अपने शहरों में जलवायु परिवर्तन पर सरकारों की निष्क्रियता के विरोध में आंदोलनरत हैं.

16 लाख से अधिक स्कूली छात्र स्कूल ना जाकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे. दुनिया भर में 125 देशों में 2087 स्थानों पर प्रदर्शन हुए. जलवायु परिवर्तन पर यह सबसे ज्यादा लोगों की भागीदारी वाले प्रदर्शनों में से एक बन चुका है.

यूरोप के कई शहरों में ये आंदोलनरत छात्र बड़ी संख्या में सड़कों पर दिखे. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में 40,000, सिडनी में 30,000, ऑस्ट्रिया के वियना में 10,000, कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में 150,000 छात्र लामबंद हुए तो वहीं फिनलैंड के एक छोटे से शहर वन्ता में 5,000 से अधिक छात्रों ने भाग लिया.

इस अभियान में फ्रांस के तीन शहर, ल्योन में 15,000, नांतेस में 11,000, और पेरिस में 50,000 छात्रों ने भाग लिया. जर्मनी के बर्लिन और कोलोन में क्रमशः 25,000 और 10,000 छात्रों को एकजुट देखा गया. आयरलैंड के डबलिन में 10,000 छात्र, इटली के चार शहरों, बोलोग्ना में 10,000, डेसियो में 41,000, मिलान में 100,000, और रोम में 30,000 छात्रों की बड़े पैमाने पर भागीदारी देखी गई.

लक्जमबर्ग में 15,000 से अधिक स्कूली छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया. पुर्तगाल के लिस्बन में 10,000, स्पेन के बार्सिलोना में 10,000 से अधिक, स्वीडन के स्टॉकहोम में लगभग 15,000, स्विट्जरलैंड के जेनफ और ज्यूरिख शहरों में क्रमशः 15,000 और 13,000 और ब्रिटेन की राजधानी लंदन में 15,000 छात्र इस अभियान के तहत सड़कों पर उतरे. ये सभी आंकड़े ‘fridayforfuture’ वेबसाइट से लिए गए हैं.

इस आंदोलन ने दुनिया भर में एक नई चेतना जगाई है. वो युवा चेतना जो यथास्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. वे लंबे समय से कायम यथास्थिति को तोड़ना चाहते हैं.
बदलाव के इस सपने को युवा सम्मेलनों तक ही सीमित नहीं रखना चाहते है. वे बदलाव की रूपरेखा न केवल सिद्धांतों में, बल्कि व्यवहार में भी अमल में लाना चाहते हैं. सुरक्षित दुनिया बनाने के लिए वो ये बदलाव लाने को प्रतिबद्ध हैं.

फिल मैकडफ ने अभियान के बाद 18 मार्च को ‘द गार्जियन’ में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, ‘जलवायु परिवर्तन की समस्या ख़त्म करने के लिए पूंजीवाद को ख़त्म करना जरूरी है.’

आंदोलन से उम्मीद बांधते हुए वो लिखते हैं, “आज के बच्चे, जो राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक हैं, अपने माता-पिता की तुलना में बहुत अधिक वैचारिक होंगे, उनके पास कोई और विकल्प नहीं होगा. यह उभरती हुई वैचारिक प्रतिबद्धता लोगों को आश्चर्यचकित कर रहा है. ग्रीन न्यू डील (GND) की अगुआई 29 वर्षीय अमेरिकी प्रतिनिधि अलेकसैन्ड्रिया ओकैसियो कोर्टेज कर रही हैं. उनकी इस पहल से ‘प्रो फ्री मार्केट’ समर्थक बौखलाए हुए हैं. उनका कहना है कि यह एक प्रकार का ट्रॉजन हॉर्स है, और जलवायु परिवर्तन कानून की आड़ में मार्क्सवाद को स्थापित करने के प्रयास से अधिक कुछ भी नहीं है.“ सच्चाई सबके सामने है!

आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में आवश्यक रूप से कटौती करने के लिए सिर्फ 12 साल बचे हुए हैं. दुनिया के दो महत्वपूर्ण देश ऐसे भू-राजनीतिक माहौल में अपनी प्रतिबद्धताओं पर बिना किसी फिक्र के मस्त है, और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ पहल पूरी तरह कमजोर हो चुकी है. ऐसे में युवा-छात्रों द्वारा शुरू किया गया यह अभियान एक नई आशा और विश्वास लेकर आया है.

भारत में भी नई दिल्ली, गुड़गांव और अन्य शहरों में, कई स्कूलों के छात्र अपनी कक्षाओं को छोड़ इस मुहिम का हिस्सा बने. दिल्ली में हुए प्रदर्शन में वायु प्रदूषण का मुद्दा भी जोड़ा गया.

यह ध्यान देने वाली बात है कि दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 15 शहर भारत में हैं. दिल्ली में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों में नारे काफी प्रभावशाली थे जैसे “हम दिल्ली से #climatestrike में शामिल हो रहे हैं… हम अपने सुरक्षित भविष्य के लिए स्वच्छ हवा, पानी और मिट्टी की मांग करते हैं. #fridayforfuture

छात्र स्कूल यूनिफॉर्म में अपनी क्लासेज छोड़ सड़कों पर उतरे. कुछ स्थानों पर माता-पिता ने भी उनका साथ दिया और उनके साथ प्रदर्शन करने आए. छात्रों ने कहा कि वे मौजूदा हालात को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने “सांस लेने का अधिकार” जैसे नारों के साथ अपनी मांग सामने रखी.

नई दिल्ली भारत के सबसे खराब शहरों में से एक है, जहां, प्रदूषक पीएम 2.5 और पीएम 10, वायु गुणवत्ता सूचकांक में 500 ugm-3 के स्तर को पार कर जाती है, जबकि मान्य सीमा पीएम 2.5 के लिए 0-50 और पीएम 10 के लिए 0-100 है. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे होते हैं जिनको इसके कारण सांस संबंधी बीमारियां हो रही हैं.

शहरों में जीवाश्म ईंधन का एक बड़े अनुपात में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करना और प्रदूषण का आपस में संबंध है. इसलिए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए चल रही लड़ाई को नई दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शनों में जोड़ा गया था.

‘भविष्य के लिए शुक्रवार’ जैसे अभियान उम्मीद और विश्वास की किरण पैदा करते हैं. ये धरती को बचाने के लिए दुनिया भर में होने वाले संघर्षों का एक सशक्त रूप है.


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