कोयला श्रमिक बच गए तो चमत्कार मानिए
मेघालय की कोयला खान में कोई चौहद दिनों से श्रमिक फंसे हुए हैं. उन्हें सुरक्षित निकालने के लिहाज से हर एक लम्हा कीमती है. पर भारत सरकार की महारत्न कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड की नींद चौदह दिनों बाद खुली है. वह भी तब जब राहत व बचाव कार्य को लेकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी हमलावर हुए. बचाव-कार्य संसाधनों की कमी कितनी आड़े आई, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि दुर्घटना के बाद से अब तक लगातार पंप चलाए जाने के बावजूद खान में घुसा बाढ़ का पानी मात्र एक इंच कम हुआ.
बचाव में लगी एजेंसियां खान से पानी निकालने के लिए ताकतवर पंप की मांग करती रह गईं. पर साधन-संपन्न देश में ऐसा मुमकिन न हो सका है. स्थानीय अखबारों ने मेघालय के आपदा प्रबंधन मंत्री कर्मेन श्येल्ला के हवाले से लिखा है, ‘केवल ईश्वर की कृपा और कोई चमत्कार ही श्रमिकों को जिंदा रहने में मदद कर सकता है.’ श्रमिकों के परिजनों को भी चमत्कार का ही आसरा है. कोयला खान विशेषज्ञों की मानें तो यदि जलप्लावित खान के भीतर एयर पॉकेट बन गया होगा तो श्रमिकों के बचने की पूरी संभावना रहेगी.
मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में अवैध खदान में अज्ञात स्रोतों से बाढ़ का पानी घुस जाने के कारण ऐसी स्थिति बनी. खान में 70 फुट पानी भरा हुआ है. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के लिए यह ऑपरेशन चुनौतीपूर्ण इसलिए भी है कि उसके पास ऐसी परिस्थितियों के लिए प्रशिक्षित गोताखोर नहीं हैं.
दुर्घटनाग्रस्त खान का अपडेटेड नक्शा भी नहीं है. ऐसे में सामान्य गोताखोरों के लिए विशेष कुछ करने का स्कोप भी नहीं रह गया है. विभिन्न एजेंसियों से जुड़े कर्मी घटनास्थल पर होते हैं. पर खान से जब तक पानी न निकले तब तक आगे के लिए कोई भी योजना बनाना उनके लिए नामुमकिन है.
कोल इंडिया लिमिटेड के बचाव दल ने ऑपरेशन की कमान संभालने में काफी देर कर दी. यह दल शुरू से लगा होता तो आज स्थिति कुछ और हो सकती थी. कोल इंडिया लिमिटेड की अनुषंगी इकाई ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (ईसीएल) की पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र स्थित महाबीर कोलियरी में वर्षों से बंद पड़ी कोयला खान का पानी घुस जाने के कारण 71 श्रमिक फंस गए थे. यह घटना 13 नवंबर 1989 को हुई थी. तब आज की तरह अत्याधुनिक तकनीकों का सर्वथा अभाव था. 27 दिसंबर 1975 को धनबाद कोयला क्षेत्र में चासनाला खान दुर्घटना हुई थी, जिसमें 375 श्रमिकों की मौत हो गई थी.
भारत के इतिहास में इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार हुई थी. पर इस दुर्घटना से सबक नहीं लिया गया. हालांकि महावीर कोलियरी हादसे के वक्त उपमुख्य खान अभियंता जसवंत सिंह गिल की अगुआई में बचाव की रणनीति बनाकर 65 कोयला मजदूरों को बचा लिया गया था. सन् 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने श्री गिल की बहादुरी का सम्मान किया और उन्हें सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक से सम्मानित किया था. कोयला उद्योग के जानकार बताते हैं कि श्री गिल अवकाश ग्रहण करने के बाद मौजूदा समय में अमृतसर में हैं. संकट की घड़ी में उनके अनुभव का भी लाभ लिया जा सकता था.
भूमिगत खानों में जलभराव से दुर्घटना भारत ही नहीं, विश्व के अनेक भागों में होती रहती है. उपग्रह और उन्नत तकनीकों के सहारे भीषण दुर्घटनाओं के बाद भी जानें बचाई जाती रही हैं. ऐसी दुर्घटनाओं में साधन-संपन्न देशों की मदद लेने के उदाहरण भी मौजूद हैं. आठ साल पहले चिली की एक 700 फीट गहरी खान में जल भराव की वजह से दुर्घटना हुई थी.
17 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद 70,000 लीटर पानी निकालने और वैकल्पिक रास्ता तैयार करके सभी 33 कोयला श्रमिकों को जिंदा बचा लिया गया था. मेघालय की खान दुर्घटना के बाद लोग थाईलैंड की गुफा में हुई दुर्घटना को याद कर रहे हैं. उस दुर्घटना में भी 17 दिनों बाद 12 बच्चों और उनके कोच को जिंदा बचा लिया गया था. वह भी बेहद कठिन बचाव अभियान था. पर उस घटना मीडिया में छाते ही देश-विदेश की दर्जन भर टीमें बचाव कार्य में जुट गई थीं.
पर भारत के ज्यादातर खान दुर्घटनाओं के मामलों में अनुभव रहा है कि तमाम एजेंसियों को आपसी समन्वय बनाकर बचाव कार्य शुरू करने में लंबा समय लग जाता है. तब तक देर हो चुकी होती है. भूमिगत खानों में जलभराव और बचाव में बाधा की प्रमुख वजह कोलियरियों का अपडेटेड नक्शा न होना होती है.
सेटेलाइट के जमाने में इसरो की मदद के आश्वासन के बावजूद सरकारी इच्छा-शक्ति के अभाव में खानों के नक्शों को अद्यतन नहीं किया जा सका है. वैसे, कोयला मंत्रालय इस बात को स्वीकार नहीं करता. पर जलप्लावन के कारण दुर्घटनाओं के बाद यह बात साबित होती रही है. भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की बागडीगी और गजलीटांड कोलियरियों में दुर्घटनाओं के बाद स्थानीय प्रबंधन को यह बात माननी पड़ी थी.
मेघालय की दुर्घटनाग्रस्त कोयला खान काफी पुरानी है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने चार साल पहले मेघालय में कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था. पर कोयले का अवैध उत्खनन बदस्तूर जारी रहा. खान में फंसे 15 खनिकों में सात लोग वेस्टय गारो हिल्स जिले के रहने वाले हैं, जबकि पांच लोग असम और तीन लुमथारी गांव के रहने वाले हैं. इसी गांव में यह हादसा हुआ है. बंद कोयला खानों में अवैध तरीके से उत्खनन आम बात है. अवैध कारोबारियों का साम्राज्य मेघालय से कई गुना बड़ा झारखंड और पश्चिम बंगाल में है.
माना जाता है कि राजनीतिज्ञों के संरक्षण वाले माफिया असंगठित श्रमिकों की जान खतरे में डालकर कोयले का अवैध उत्खनन करवाते हैं. आम धारणा यह भी है कि पुलिस की मिलीभगत से उसे इन राज्यों से बाहर ऊंची दरों पर बेच दिया जाता है. आजकल झारखंड के अखबार ऐसी खबरों से अंटे पड़े होते हैं. अवैध उत्खनन न हो, इसकी जबावदेही मुख्यत: राज्य सरकारों की होती है. पर राज्य सरकारें आमतौर पर नहीं मानतीं कि उनके राज्य पर इस तरह का गोरखधंधा है. हालांकि मेघालय सरकार ने माना है कि ताजी घटना अवैध उत्खनन का परिणाम है.
पूर्वोत्तर को छोड़ दें तो देश के बाकी हिस्सों में भूगर्भ की खनिज पर सरकार का स्वामित्व होता है. संविधान की 6वीं अनुसूची के मुताबिक केवल पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों में खनिज का स्वामित्व भूस्वामियों को प्राप्त है. इस वजह है कि इस निजी खान मालिक नियमों की परवाह किए बिना अवैध खदानों का संचालन करते हैं. वहां कोयला खनन ठीक वैसे ही कराया जाता है, जैसे देश के बाकी हिस्सों के कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण से पहले तक निजी खान मालिक नियमों की परवाह किए बिना कोयला खनन कराते थे.
इसी साल कोयले का अवैध खनन और उसकी तस्करी की गूंज संसद में भी सुनाई दी. हालांकि विपक्ष के हंगामे के बीच चर्चा तो नहीं हो पाई. पर केंद्रीय रेल व कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने सदन के पटल पर सरकार का पक्ष रखते हुए भरोसा दिलाया कि कोयले के अवैध धंधे की रोकथाम के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी. राज्यसभा में राजीव शुक्ला ने सदन को अवैध उत्खनन की गंभीरता से अवगत कराया था. उन्होंने कोयला मंत्री से सीधा सवाल किया कि ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए सरकार क्या कर रही है?
पर न तो संसद सदस्यों ने पूर्वोत्तर में हो रहे अवैध उत्खनन की चर्चा की और न ही श्री गोयल ने उस बात को छेड़ा. उन्होंने किसी क्षेत्र विशेष का नाम लिए बिना स्वीकार किया कि अब तक के उपायों के बावजूद सीमित दायरे में कोयले का गोरखधंधा जारी है. मुख्य रूप से परित्यक्त खानों से कोयले का अवैध खनन किया जाता है. पर कोयले के अवैध कारोबार की रोकथाम का दायित्व राज्य सरकार का है. पर आपदा की स्थिति में बचाव-कार्य में त्वरित मदद देने में कोयला मंत्रालय की सुस्ती से सवाल उठा कि क्या यही सरकार की संवेदनशीलता है?