वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग को सॉवरेन बॉन्ड योजना में बलि का बकरा बनाया गया है?


Economic Survey 2020 projects GDP growth at 6-6.5% in FY21

 

बीते बुधवार को शीर्ष स्तर के नौकरशाहों में बड़ी फेर-बदल हुई है. जिस खबर ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी वह वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का कार्यकाल पूरा होने से पहले सेवानिवृत्ति लेने की थी. कहा जा रहा है कि उन्होंने ये फैसला अपने तबादले के विरोध में लिया है. इसके बाद अब लग रहा है कि सरकार विदेशी बाजारों में देश के पहले सॉवरेन बॉन्ड जारी करने की योजना रोक सकती है.

वित्त मामलों के सचिव गर्ग को विद्युत मंत्रालय में सचिव का पदभार दे दिया गया था. ये नया पद उनके पुराने पद की तुलना में बहुत कम शक्तियों वाला माना जाता है. जबकि सबसे वरिष्ट नौकरशाह को वित्त सचिव के लिए नामित किया जाता है. वह वित्त मंत्रालय का सांकेतिक प्रशासनिक प्रमुख होता है.

गर्ग पिछले साल दिसंबर में वित्त सचिव बनाए गए थे. उन्होंने हसमुख अधिया के सेवानिवृत्त होने के बाद पदभार संभाला था. माना जा रहा है कि गर्ग के बेवक्त जाने के पीछे देश में सॉवरेन बॉन्ड जारी करने को लेकर हुई बहस से जुड़ा हुआ है.

विदेशी बॉन्ड जारी करने को लेकर निर्माला सीतारमण ने तीन हफ्ते पहले अपने बजट में घोषणा की थी. उनके इस घोषणा के बाद पूंजी बाजार में हलचल मच गई थी. इससे घरेलू बॉन्ड जारी करने वालों को भी बड़ा झटका लगा था.

इस कदम को पूर्व आरबीआई के अधिकारियों और कुछ सरकार के आर्थिक सलाहकारों ने गलत ठहराया था. उनका मानना है कि इस तरह की गलत कल्पना और खराब योजना से लाभ कम और जोखिम ज्यादा होगा.

गुरुवार 25 जुलाई को प्रधानमंत्री के कार्यालय ने इस फैसले पर तत्काल समीक्षा का आदेश दिया. इस आदेश के बाद सवाल उठने लगे कि सरकार के भीतर किसी बड़े फैसले को लेकर विचार-विमर्श कितना होता है. यह भी कहा जा रहा है कि यह इस तरह लिया गया फैसला नोटबंदी की ही तरह महज प्रयोग है, जो गलत साबित हो सकता है.

इस मुद्दे पर दोबारा विचार-विमर्श के फैसले का मतलब हो सकता है कि 1,000 करोड़ डॉलर के विदेशी बॉन्ड जारी करने की योजना लंबित हो सकती है. यह संभावित रूप से अक्तूबर में जारी होने वाली थी.

सोमवार 22 जुलाई को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के एक सदस्य रतिन रॉय ने कहा कि वे वित्त मंत्रालय की घोषणा को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि विदेशी बॉन्ड आर्थिक संप्रभुता और व्यापक आर्थिक परिणाम पर टिका है.

इससे पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि विदेशी बॉन्ड जोखिम से भरा हुआ है. इससे घरेलू बॉन्ड बाजार को आसानी से नुकसान पहुंच सकता है.

राजन ने कहा था, “इससे तो यह बेहतर होगा कि सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) में विदेशी निवेश पर कैप बढ़ाया जाए. इससे विनिमय दर की गति कम हो जाएगी.”
रघुराम के इस विचार को एक अन्य पूर्व आरबीआई गवर्नर वाईवी रेड्डी ने समर्थन किया था.

रतिन रॉय ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “मैं पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी की दलील पर खास ध्यान दूंगा कि इन विदेशी देनदारियों के मैच्योर होने की कोई समय सीमा नहीं है. मैं इस देश के इतिहास पर खास ध्यान दूंगा कि 70 सालों में लगातार उकसाने के बाद भी हमने यह कदम कभी क्यों नहीं उठाया.”

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच ने नरेंद्र मोदी सरकार की फॉरेन करेंसी बॉन्ड बेच कर रुपये कमाने की योजना को देश-विरोधी करार दिया था. मंच ने सरकार से योजना पर एक बार फिर विचार करने की मांग की थी.

मंच के मुताबिक ये देश-विरोधी कदम है क्योंकि लंबे समय में अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा प्रभाव होगा. साथ ही इसे एक ऐसा कदम करार दिया जिससे अमीर देश और उसके वित्तीय संस्थान भारत की नीतियों को प्रभावित करे पाएंगे.

सभी ने इस बात पर जोर दिया है कि जब 1990 में देश बैलेंस ऑफ पेमेंट संकट से जूझ रहा था तब उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया था. उस वक्त आरबीआई ने सोना में भरोसा जताया था और कुछ सेन्ट्रल बैंकों के साथ मिलकर संकट को पार करने की कोशिश की थी.

सॉवरेन बॉन्ड की हिमायत करने वाले गर्ग ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उन्होंने तीन महीने पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दिए जाने के लिए आवेदन दिया है. और उन्हें वित्त मंत्रालय में काम करते हुए किसी भी चीज का कोई पछतावा नहीं है.

एक ट्वीट में गर्ग ने कहा, “आज मैंने वित्त मामलों का कार्यभार लौटा दिया है. वित्त मंत्रालय और आर्थिक मामले के विभाग में रहकर बहुत कुछ सीखने को मिला है. कल से मैं विद्युत मंत्रालय का कार्यभार संभालूंगा. 31 अक्तूबर से मैंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए भी आवेदन दिया है.”

विदेशी सॉवरेन बॉन्ड जारी करने के मामले में सरकार की दलील है कि इससे प्राइवेट कंपनियों के लिए जगह बनेगी, जिससे वह घरेलू बाजार से उधार ले सकेंगी. यह विदेशी बॉन्ड डॉलर, यूरो और येन के रूप में हो सकता है.

सरकार ने 2019-20 में 7.1 ट्रिलियन उधार लेने की योजना बनाई है. सरकार के इस कदम की आलोचना हुई कि क्राउडिंग आउट के फॉर्मूला के तहत घरेलू पूंजी बाजार से उधार लेने वाले प्राइवेट-सेक्टर के उधारकर्ता प्रभावित होंगे.

सीतारमण ने कहा था कि सरकार का इरादा है कि विदेश से 10 फीसदी उधार लिया जाए.

वित्त मंत्री ने सॉवरेन बॉन्ड जारी करने के पक्ष में कहा था कि भारत का ऋण-से-जीडीपी अनुपात 5 फीसदी से भी कम है. और यह दुनिया में सबसे कम है.

पहले सरकार ने प्रॉक्सी से विदेशी ऋण जुटाए थे. भारतीय स्टेट बैंक ने वर्ष 2000 में 200 करोड़ की भारत मिलेनियम डिपॉजिट योजना शुरू की थी. जिसका मकसद बड़े पैमाने पर प्रवासी भारतीय के फंड को देश में लाना था.


उद्योग/व्यापार