‘स्किल गैप’ की सबसे ज्यादा मार भारतीय अर्थव्यवस्था पर: ILO


industrial output decline by 1.1 percent in august

 

दुनिया भर में नौकरियों की बदलती हुई जरुरतों की वजह से कई देशों में ‘स्किल गैप’ बढ़ रहा है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ा है. यह बात अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और अंतरराष्ट्रीय नियोक्ता संगठन द्वारा कराए गए एक संयुक्त अध्ययन में सामने आई है.

अध्ययन के मुताबिक, 66 फीसदी भारतीय कारोबारियों ने स्वीकार किया है कि तीन साल पहले की तुलना में उन्हें अब नौकरियों की नई भर्तियों में अलग किस्म के कौशल की तलाश है.  वहीं, 53 फीसदी कारोबारियों का कहना है कि नौकरी की बदलती हुई जरुरतों के हिसाब से अब भर्तियां करना मुश्किल हो रहा है.

अध्ययन के ये निष्कर्ष इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बीते तीन वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्किल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं को महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ शुरू किया था. जाहिर है कि इन योजनाओं से अभीष्ट लक्ष्य नहीं मिल पाए हैं.

वैश्विक स्तर पर 60 फीसदी कारोबारी मानते हैं कि नए ग्रेजुएट मौजूदा चुनौतियों के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं. अध्ययन ने बताया है कि नई जरुरतों और चुनौतियों के चलते बढ़ रहे ‘स्किल गैप’ से आने वाले कुछ सालों में कुशल श्रमिकों की भारी कमी हो सकती है. साल 2020 तक वैश्विक स्तर पर यह संख्या 3.8 से 4 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. इसके साथ ही इस अवधि में वैश्विक श्रम बाजार में 9 से 9.5 करोड़ श्रमिक ऐसे होंगे जिनके पास नई चुनौतियों से निपटने वाला कौशल नहीं होगा.

अध्ययन का निष्कर्ष है कि इस असंतुलन का असर सिर्फ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर ही नहीं बल्कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर भी समान रूप से पड़ेगा.

भारत उन देशों में से है जहां यह चुनौतियां काफी ज्यादा हैं. भारत के अलावा सिर्फ दक्षिण अफ्रीका और मोरोक्को ऐसे देश हैं जहां पिछले तीन वर्षों में नई भर्तियों में नए कौशल की जरुरत महसूस की जा रही है.

कई कारोबारियों ने इस स्थिति के लिए शिक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार बताया है. उनके अनुसार छात्रों को नई चुनौतियों के अनुकूल तैयार नहीं किया जाता है. उन्होंने इसके लिए नीति में निष्क्रियता, धन की कमी, निजी क्षेत्र या अन्य कारकों के साथ तालमेल की कमी को बताया है.

अध्ययन में शामिल लगभग 78 फीसदी कारोबारियों का कहना था कि इस कमी को दूर करने के लिए  अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से शिक्षा पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाना होगा.

इन देशों के लिए एक और उभरती चुनौती ऑटोमेशन है. ऑटोमेशन की आधुनिक तकनीकों को अपनाने से कम उत्पादकता वाली अनौपचारिक नौकरियां बड़ी संख्या में खत्म हो जाएंगी.


उद्योग/व्यापार