विश्व चैम्पियनशिप में सभी की निगाहें बजरंग और विनेश पर


 

भारत के शीर्ष पहलवानों के लिए कजाखस्तान में 14 सितम्बर से शुरू हो रही विश्व चैम्पियनशिप में असली परीक्षा होगी क्योंकि इसमें वे प्रतिष्ठा की ही नहीं बल्कि टोक्यो ओलंपिक क्वालीफिकेशन की भी उम्मीद लगाए होंगे.

विश्व चैम्पियनशिप से पहले बजरंग पूनिया और विनेश फोगट का प्रदर्शन शानदार रहा है जबकि दिव्या काकरान भी कुछ अच्छे नतीजों से आत्मविश्वास से भरी होंगी.

विनेश ने नए वजन वर्ग से सत्र की शुरूआत की जिसमें उन्होंने 50 से 53 किग्रा में खेलने का फैसला किया.

हालांकि उन्होंने इस नये वजन वर्ग सांमजस्य बिठाने के लिए कुछ समय लिया लेकिन फिर भी वह पांच फाइनल तक पहुंची जिसमें उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीते.

विश्व चैम्पियनशिप में भारत की किसी महिला पहलवान ने स्वर्ण पदक नहीं जीता है और विनेश के पास भारत के सूखे को समाप्त करने का मौका होगा.

वहीं बजरंग अपनी सर्वश्रेष्ठ फार्म में हैं लेकिन उनके लिए एक चीज परेशानी का कारण बन सकती है और वो है उनका कमजोर ‘लेग डिफेंस’. उनके लिए निश्चित रूप से यह कड़ी परीक्षा हेागी.

सिर्फ सुशील कुमार ने कुश्ती के इतिहास में भारत को पुरूष फ्रीस्टाइल में विश्व खिताब दिलाया है और अब बजरंग दूसरे पदक के लिए भारत के इंतजार को खत्म करने के लिए बेताब होंगे.

पच्चीस वर्षीय पहलवान ने दो विश्व चैम्पियनशिप पदक हासिल किए हैं लेकिन वह स्वर्ण पदक नहीं जीत पाए हैं. हालांकि उन्हें इसके लिए कई चुनौतियों से जूझना होगा .

दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील पिछले कुछ समय से जूझ रहे हैं और आठ साल बाद विश्व चैम्पियनशिप में वापसी कर रहे हैं. 74 किग्रा में उनके प्रदर्शन पर सभी की नजरें लगी होंगी क्योंकि पिछले कुछ समय से उनके प्रदर्शन पर चर्चा हो रही है.

सुशील की तहर ही रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जूझ रही हैं. उन्होंने 2017 राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप जीतने के बाद से कोई खिताब नहीं जीता है.

इस सत्र में डैन कोलोव पर उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दूसरा स्थान रहा था. उन्होंने विश्व चैम्पियन पेट्रा ओली को हराकर उलटफेर करते हुए रजत पदक हासिल किया.

वह लंबे समय से दबाव को झेलने में सहज नहीं हो पा रही हैं. बाउट के अंतिम क्षणों में रक्षात्मक होना उनके लिए मददगार नहीं हो रहा है, जिसके कारण वह कई बार अच्छी स्थिति के बावजूद हार गईं.

वहीं दिव्या काकरान में काफी स्फूर्ति है और वह अपने मुकाबलों में अडिग रहती हैं. उन्होंने इस सत्र में दो स्वर्ण और इतने ही कांस्य पदक जीते हैं.

पूजा ढांडा पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाली केवल चौथी भारतीय महिला पहलवान बनीं. वह 57 किग्रा में स्थान पक्का नहीं कर सकीं. लेकिन अब वह 59 किग्रा में दूसरा पदक हासिल करना चाहेंगी.

यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रायल्स में पूजा को चौंकाने वाली सरिता मोर कैसा प्रदर्शन करती हैं.

पुरुष फ्रीस्टाइल पहलवानों में दीपक पूनिया कुछ उलटफेर करने में सक्षम हैं. वह 18 साल की उम्र में भारत के पहले जूनियर विश्व चैम्पियन बनने के बाद यहां पहुंचे हैं.

गुरप्रीत सिंह (77 किग्रा) और हरप्रीत सिंह (82 किग्रा) ग्रीको रोमन में भारत की सर्वश्रेष्ठ उम्मीद होंगी.

हालांकि भारत के राष्ट्रीय ग्रीको रोमन कोच हरगोविंद सिंह का कहना है कि बहुत कुछ ड्रा और भाग्य पर निर्भर करेगा.

चैम्पियनशिप से तीनों शैलियों के छह वर्गों में छह ओलंपिक कोटे मिलेंगे.


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