नोटबंदी के बाद भी लगातार बढ़ा है नकद लेनदेन


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सरकार ने नोटबंदी के तमाम फायदों में से एक बाजार में नकद में लेनदेन को कम करना बताया था. लेकिन सामने आई अलग-अलग रिपोर्ट्स से ये साफ हो गया है कि 15 मार्च, 2019 तक अर्थव्यवस्था में नकद का प्रचलन 19.14 फीसदी बढ़ा है.

नोटबंदी से पहले 4 नवंबर, 2016 को वित्तीय प्रणाली में नकद का प्रचलन 17 लाख 79 करोड़ रुपये था. जो अब बढ़कर 21 लाख 41 हजार करोड़ रुपये हो गया है.

भारतीय रिजर्व बैंक के डाटा के मुताबिक मार्च 2018 में 18 लाख 29 हजार करोड़ नकद प्रचलन में था. जिसमें बीते एक साल में तीन लाख करोड़ से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने 500 और 1000 के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया था.

लेकिन सरकार के वादों के उलट नोटबंदी से पहले और बाद के आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी के बाद वित्तीय प्रणाली में नकदी लगातार बढ़ी है.

नोटबंदी के समय सरकार ने कहा था कि उसका यह कदम ‘कैशलैस अर्थव्यवस्था’ बनाने में सहायक होगा. उस दौरान सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देते हुए अलग-अलग जगहों पर कैश से भुगतान पर रोक लगा दी थी.

चुनावों और बढ़े नकदी प्रचलन के बारे में बैंकरों ने बताया कि आम तौर पर चुनावों से पहले प्रणाली में नकदी बढ़ जाती है.

एक अधिकारी ने बताया कि “मॉनसून के बाद नकद की मांग बढ़ जाती है. अक्टूबर में फसल की कटाई शुरू होती है, जिसके बाद रबी की बुआई होती है. इस दौरान नकद की जरूरत बढ़ जाती है.”

उन्होंने बताया कि त्योहारों के मौसम में भी नकद की मांग बढ़ना आम है. इस समय लोग गहने और गाड़ियां खरीदते हैं.

आरबीआई की 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि रिजर्व मनी (अर्थव्यवस्था में पहले से मौजूद नकद) के बढ़ने का मुख्य कारण लेनदेन में नकद के विस्तार का होना है. जिसका प्रमुख कारण पुनर्मुद्रीकरण (नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में नकदी का वापस लौटना) है.

2018 में नकद का प्रचलन भारतीय अर्थव्यवस्था में पहले के तुलना में सबसे अधिक रहा.

8 नवंबर 2016 को 500 और 1,000 रुपय के नोटों को प्रचलन से हटा लेने के बाद 2018 के आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया था कि लगभग सभी पैसे बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गए हैं.

आरबीआई ने अनुसार 8 नवंबर, 2016 तक 500 और 1000 के 15.317 लाख करोड़ रुपये चलन में थे. नोटबंदी के बाद आरबीआई के पास वापस आए नोटों का मूल्य 15.310 लाख करोड़ रुपये था.

आरबीआई के मुताबिक एटीएम के जरिए नकद लेनदेन भी लगातार बढ़ रहा था. एटीएम से डेबिट कार्ड के जरिए 2017 में लेनदेन 2,00,648  करोड़ था. जनवरी 2018 में 2,95,783  करोड़ था जो बढ़ कर जनवरी 2019 में 3,16,808 करोड़ हो गया.

3,16,000 करोड़ रुपये के डेबिट कार्ड के लेनदेन में से एटीएम के जरिए 2,66,000 करोड़ रुपये निकाले गए.

नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के डाटा के मुताबिक एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के जरिए लेनदेन का आंकड़ा दिसंबर 2018 में पहली बार एक लाख करोड़ के पार हुआ.

इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्टस के मुताबिक बैंकों को में होने वाले डिपोजिट में कमी आई है. क्रेडिट ग्रोथ जहां 14.6 फीसदी है, वहीं डिपोजिट ग्रोथ 9.8 फीसदी रही. उनका कहना है कि ऐसा जारी रहा तो बैंको की थोक जमा (बल्क डिपॉजिट) पर निर्भरता बढ़ने की संभावना है.

आरबीआई ने कहा है कि 2017-18 के दौरान खुदरा भुगतान की मात्रा में लगभग 45 फीसदी और मूल्य में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है.

भारत में खुदरा भुगतान प्रणाली बड़े स्तर पर है. इससे ये जरूरी हो जाता है कि ये सिस्टम हमेशा उपलब्ध रहे. एक नियामक ने कहा कि अगर इन प्रणालियों को उम्मीदों पर खरा उतरना है कुछ प्रमुख विशेषताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है.


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