झूठा निकला वित्तीय स्वायत्तता का भी दावा


central government does not increase state fund

  फाइल फोटो

नंद किशोर सिंह की अध्यक्षता में गठित 15वां वित्त आयोग 2019 के अंत में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. इसमें केंद्र और राज्यों के बीच फंड के वितरण को लेकर नए सिरे से सिफारिशें की जाएंगी.

इस रिपोर्ट में जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर रहेगा वो केंद्र के फंड पर राज्यों की स्वायत्तता को लेकर है. ये देखने की बात होगी कि आयोग फंड को लेकर राज्यों को कितनी स्वायत्तता देने की सिफारिश करता है.

इससे पहले 2015 में वाईवी रेड्डी वित्त आयोग की रिपोर्ट में केंद्र सरकार के राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 10 फीसदी बढ़ाकर 42 फीसदी करने की सिफारिश की गई थी. इसमें राज्यों को फंड खर्च करने की स्वायत्तता बढ़ाने की भी सिफारिश की गई थी.

रेड्डी आयोग ने कहा था कि राज्यों को उनके सामाजिक खर्च की प्राथमिकता खुद तय करने दी जाए. अब राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान के अमरनाथ और अल्का सिंह ने एक लेख में कहा है कि ऐसा वास्तव में हुआ नहीं है.

इस लेख में कहा गया है कि राज्यों को ज्यादा फंड हस्तांतरण करने और स्वायत्तता देने की बात सिर्फ एक भ्रम साबित हुई है. इसका मतलब है कि केंद्र ने एक हाथ से दिया तो दूसरे से ले भी लिया. या दूसरे मामलों में दिया ही नहीं.

2015 से 2017 के बीच केंद्र सरकार के वित्तपोषण को खंगालते हुए इन लोगों ने पाया कि राज्यों को दिए गए राजस्व में अगर किसी प्रकार की बढ़ोत्तरी की गई है तो उसकी पूर्ति दूसरे तरीकों से कर ली गई है. इसमें बताया गया है कि केंद्र ने इस राजस्व की पूर्ति के लिए केंद्र सरकार की प्रायोजित योजनाओं में राज्यों की देयता बढ़ा दी है.

इस दौरान पाया गया कि कुछ राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के मामले में बिना राजस्व इजाफे के केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों के ऊपर भार बढ़ा दिया गया है.

इस लेख में दावा किया गया है कि दूसरे सुधार जैसे उज्जवला योजना के तहत राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के लोन और जीएसटी जैसी चीजें राज्यों पर अतिरिक्त भार डाल रही हैं. इस दौरान लेखकों ने साफ किया है कि सामाजिक सेवाओं में होने वाला खर्च जैसे आईसीडीएस आदि में कमी आई है.


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