MSME क्षेत्र को लोन देने में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी घटी
एमएसएमई क्षेत्र को दिए गए कर्ज में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी में 19 फीसदी की कमी आई है. पिछले पांच साल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 58 फीसदी से घटकर 39 प्रतिशत (दिसंबर 2018) पर आ गई है.
केन्द्र सरकार की छोटे एवं मझोले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा और 59 मिनट में ऋण जैसी कई योजनाओं के बावजूद यह गिरावट दर्ज की गई है.
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और ऋण से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने वाली कंपनी ट्रांसयूनियन सिबिल (रिपीट ट्रांसयूनियन सिबिल) की एक रपट के मुताबिक सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता बिगड़ने को लेकर बढ़ी चिंता के चलते ऋण वितरण में उनकी हिस्सेदारी घटी है.
हालांकि, इसी दौरान कर्ज वितरण में निजी क्षेत्र के बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हिस्सेदारी दिसंबर, 2018 में बढ़कर 33 प्रतिशत पर पहुंच गई. पांच साल पहले दिसंबर, 2013 में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत पर था.
रपट में हालांकि, कर्ज का आंकड़ा नहीं बताया गया है. वास्तव में किसने कितना कर्ज दिया इसका रपट में जिक्र नहीं किया गया है.
इस रपट में कहा गया है कि सरकार मुद्रा और अन्य योजनाओं के जरिए एमएसएमई श्रेणी के उद्योगों को कर्ज उपलब्ध कराने पर बहुत जोर देती रही है. रपट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पिछले साल शुरू की गयी 59-मिनट में ऋण योजना का भी उल्लेख है।
रपट में कहा गया है, ”आगे हमें उम्मीद है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने खोई हिस्सेदारी के कुछ हिस्से की भरपाई करने में कामयाब रहेंगे क्योंकि कई बैंक रिजर्व बैंक की त्वरित सुधार कार्रवाई (पीएसए) के दायरे से बाहर आ गए हैं.”
पीएसए एक विशेष प्रावधान है, जिसके तहत रिजर्व बैंक उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) सहित विभिन्न कारणों को लेकर बैंक की कुछ खास गतिविधियों पर रोक लगा देता है.
एनपीए के लिहाज से देखें तो एमएसएमई क्षेत्र का प्रदर्शन दिसंबर, 2018 की तिमाही में बेहतर हुआ है.
सिडबी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक मोहम्मद मुस्तफा एनपीए परिदृश्य के बेहतर होने और कर्ज में वृद्धि को सकारात्मक संकेतक के रूप में देखते हैं.