बिहार: जंगलराज की रट पर भरोसा के पंद्रह साल।

एक बार फिर से जंगलराज के नैरेटिव को जिंदा करने की कोशिश की जा रही है। भाजपा-जदयू दोनों ही दल चुनाव केदरम्यान जंगलराज की रट लगाने से नही चूक रहे। शायद इन्हें भरोसा है कि अतीत की भाँति इस बार भी ‘जंगलराज’ का गढ़ा गया नैरेटिव इन्हें चुनावी वैतरणी पार करा देगा।


बिहार: जंगलराज की रट पर भरोसा के पंद्रह साल।

  The Quint

विगत पंद्रह साल से जंगलराज की रट ने बिहार के हर एक चुनाव अभियान में रोचक भूमिका निभाई है। इससे भाजपा-जदयू को चुनाव दर चुनाव फायदे हुए हैं। इस मंत्र पर एनडीए को भरोसा है और इसे एक रणनीति के तहत इस्तेमाल करता रहा है। वास्तव में यह लालूविरोधी माहौल बनाने में कारगर साबित हुआ है। जाहिर है अमित शाह का भी यही संकल्प होगा जब उन्होंने 7 जून 2020 को बिहार केंद्रित वर्चुअल रैली उर्फ जनसंवाद कार्यक्रम में जंगलराज का जिक्र किया। बिहार में विधानसभा चुनाव इसी वर्ष अंतिम तिमाही में होनी है। इसलिए मतदाताओं को रिझाने का यह उपयुक्त मौका था। इस जनसंवाद कार्यक्रम में भाजपा ने जंगलराज सहित तीन बातों को जनता के समक्ष रखा। प्रथम, उन्होंने लालूराज को जंगलराज तथा एनडीए काल को जनता राज होने का दावा किया। दूसरा, लालटेन की जगह अब एलईडी का उपयोग बताकर राजद पर निशाना साधा। अंततः यह भी दावा करने से नही चुके कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए पुनः दो तिहाई बहुमत से सत्ता में आएगी। शायद 2019 लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत से अभिभूत गृहमंत्री सन 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम को भूल गए जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते उन्हें विपक्षी महागठबंधन के हाथों एक बहुत बड़ी शिकस्त मिली थी। मात्र 53 सीटों के साथ भाजपा को तीसरा स्थान हासिल हुआ था। उस वक्त जदयू महागठबंधन (राजद एवं जदयू – गठबंधन) के सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ी थी। लेकिन क्या फर्क पड़ता है हर चुनाव में तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं और उसी तर्ज पर चुनाव अभियान की शुरुआत भी होती है। तभी तो उस चुनाव में जंगलराज, जदयू के मानस से गायब हो गई थी और भाजपा के लिए कोई खास लाभदायक नही सिद्ध हुई। जुलाई 2017 में जदयू की एनडीए में वापसी होती है और एक बार फिर से जंगलराज के नैरेटिव को जिंदा करने की कोशिश की जा रही है। भाजपा-जदयू दोनों ही दल चुनाव के दरम्यान जंगलराज की रट लगाने से नही चूक रहे। शायद इन्हें भरोसा है कि अतीत की भाँति इस बार भी ‘जंगलराज’ का गढ़ा गया नैरेटिव इन्हें चुनावी वैतरणी पार करा देगा।

अन्यथा क्या कारण हो सकता है कि बिहार में 15 साल तक सता में रहने के बावजूद भाजपा-जदयू जंगलराज की रट पर हीं ज्यादा भरोसा करते है। हालाँकि वह अपने कार्यकाल में अर्जित विकास और सुशासन को अभियान बिंदु बना सकते थे। क्या इन बिंदुओं पर उनकी उपलब्धि-शून्यता है या कोई खास नही जिसे प्रचारित कर जनता को प्रभावित कर सकें? लालूराज (1990-2005) के असफलताओं का पाठ, साल 2020 के चुनाव में करने की बाध्यता क्यों है? आमतौर पर राज्यों की उपलब्धि और विफलताओं पर समकालीन परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक चर्चाएं होती है। उदाहरण के तौर पर नीति आयोग, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन और अन्य शोध पीठ, ऐसी आकलन-विश्लेषण करती रही हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा संग्रहित वार्षिक विकास दर के राज्यवार आँकड़े बिहार को निचले पायदान के आसपास ही रखता है। सीएसओ के आंकड़े सारणी बताते हैं कि 1980-91 के दशक में बिहार का विकास दर औसतन 4.66 फीसदी था जबकि उसके बाद के बारह साल 1993-94 से 2004-05 में 4.89 फीसदी की विकास दर दर्ज की गई। इस कालखंड में लालू प्रसाद की सरकार थी। इसी कालखंड को ‘जंगलराज’ के रूप में भाजपा-जदयू प्रचारित-प्रसारित करता रहा है। इस दौरान बिहार का विकास कम (4.89 फीसदी) था लेकिन पंजाब (4.39), ओडिसा (4.86) और मध्य प्रदेश (4.55 फीसदी) से विकास दर ऊपर था। इसी तरह बिहार की साक्षरता दर भी अन्य राज्यों की तुलना में ज़रूर नीचले पायदान पर थी लेकिन 1991-2001 के दशक में भारत के 23 फीसदी की तुलना में बिहार की साक्षरता दर में 27 फीसदी की तीव्रता से वृद्धि दर्ज की गई थी। शिशु मृत्यु दर में भी राष्ट्रीय औसत 61 की तुलना में बिहार 63 प्रति 1000 अंकित किया। जीवन प्रत्याशा सूचकांक में पुरूष की औसत उम्र 65.66 वर्ष है जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा थी। साल 2005 से बिहार में एनडीए की सरकार रही है और नीतीश कुमार ही ज्यादातर समय मुख्यमंत्री रहे हैं। इस कालखंड में विकास, सुशासन और भ्रष्टाचार पर शून्य-समझौते की बात प्रचारित की गई। भारतीय राज्यों में सुशासन और विकास के बिंदु पर नीति आयोग की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जो संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा निर्धारित 16 सूत्री सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने वाले भारतीय राज्यों के प्रदर्शन पर आधारित थी। डबल इंजन से चल रही बिहार सरकार 100 अंक में से मात्र 50 फीसदी अंक प्राप्त कर भारत के कुल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे अंतिम पायदान पर खड़ी दिखी। इस रिपोर्ट में भूखमरी, गुणकारी शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था, लिंग समानता, साफ पानी और सफाई, ऊर्जा, काम और आर्थिक गति, उद्योग, असमानता को कम करने जैसे मुद्दों पर राज्य के नीतियों के कार्यान्वयन में प्रदर्शन का आकलन था। एनडीए के कार्यकाल में सृजन घोटाला, शेल्टर होम रेपकांड और शराबबंदी अधिनियम के संदर्भ में वित्तीय अनियमितता, कानून-व्यवस्था और नीति लागू करने में चूक को भुलाया नही जा सकता है। चाहे शिक्षा प्रणाली में हर स्तर पर बदहाली का मामला हो या स्वास्थ्य व्यवस्था में चमकी बुखार का मामला हो, हर अवसर पर अक्सर सुशासन की पोल खुलती दिखी है। एनडीए ने ग्रामीण विकास और औद्योगिक क्षेत्र में निवेश पर भी कोई खास उपलब्धि अर्जित नहीं की। कोरोना माहमारी के वक्त भी प्रवासी मजदूरों की समस्या का समाधान करने में सक्षम नही रही। जबकि बिहार के हर दूसरे परिवार से एक सदस्य अपने राज्य से पलायन के लिए मजबूर है। क्या यही कारण है कि जदयू और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व वोट माँगने के लिए लालूराज के पंद्रह साल के शासन को विमर्श में रखना चाहते है।

जंगलराज के संदर्भ में सूत्रों से सुनी कहानी को मानें तो ये बात लालूजी के प्रथम मुख्यमंत्रित्व काल की है जब लालूजी से किसी पत्रकार ने पूछा कि आजकल जगन्नाथ मिश्र जी कह रहे हैं कि बिहार में जंगलराज आ गया है, इसपर आपका क्या कहना है ? लालू प्रसाद ने उत्तर दिया कि जगन्नाथ मिश्रा जब मुख्यमंत्री थे तो अपने चलने के लिए नया हेलीकाप्टर खरीदे थे, उसमें अब हम चल रहे हैं। यही उनकी तकलीफ है। लालू के उदय का आधार पिछड़ों का उभार था जो तत्कालीन सामाजिक संरचना के शक्ति संतुलन को बेहद प्रभावित किया था। लालू प्रसाद ने अपने विशिष्ट हल्के-फुल्के मजाकिया अंदाज में अत्यंत स्पष्टता से इस परिवर्तन को मूल कारण बताते हैं। शक्ति संतुलन में यही परिवर्तन उनके विरुद्ध समस्त दुष्प्रचार अभियानों के मूल में है। जंगलराज का प्रलाप मुख्यमंत्री के रूप में लालू प्रसाद के पहले कार्यकाल से ही आरंभ हो गया था, इस नैरेटिव का निर्माण करने का कार्य उन सामंती शक्तियों ने किया था जो स्वतंत्रता के बाद से राज्य की सत्ता के हर मकाम पर काबिज थी। लालू प्रसाद के रूप में एक पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को राज्य के सबसे शक्तिशाली राजनैतिक पद मिलना और मंडल रिपोर्ट के लागू होने से पिछडों में आई सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन को तत्कालीन सामंती शक्तियां बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं। इस कार्य में उस वक्त की मीडिया ने इन शक्तियों को भरपूर साथ दिया, जिसकी इन शक्तियों के साथ वर्गीय एकता थी। लालू प्रसाद के शासनकाल को हर समय जंगलराज साबित करने में इनका संगठित योगदान रहा। आज हम इनके द्वारा बनाए छद्मबिम्ब को देख रहे हैं, जो इस तथ्य को पूरी तरह छुपा लेता है कि लालूजी के आने से पहले भी बिहार देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक था और उसकी कानून व्यवस्था कमोबेश वैसी ही थी। फर्क बस इतना था फॉरवर्ड्स के सत्ता आधिपत्य को बैकवर्डस के उभार से एक जोरदार झटका लगा था, बाकी सब वैसा का वैसा ही था। बल्कि सामाजिक न्याय, राजनीतिक हिस्सेदारी और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर इस काल में बिहार ने देश के अनेक राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया। प्रश्न यह भी है कि लालू प्रसाद से इन वर्गों की इतनी शत्रुता के बावजूद, हर चुनाव में मीडिया के इस वर्ग द्वारा निरंतर जंगलराज के प्रलाप के बावजूद वे इतने लंबे समय तक चुनाव कैसे जीतते रहे? अन्य कारणों के साथ-साथ वंचित वर्गों में यह भाव की भले लालू प्रसाद ने उन्हें स्वर्ग न दिया हो पर उन्होंने उन्हें स्वर जरूर दिया है, उनकी शक्ति का मुख्य स्रोत रहा। जदयू-भाजपा के द्वारा जनसंवाद में यह कहना कि ‘एनडीए को वोट दो नहीं तो जंगलराज आ जायेगा’, अब अर्थहीन प्रतीत हो रहा है।

बिगत 15 वर्षों से सत्ताशीन एनडीए को यह बताना पड़ेगा कि वह किस विजन के तहत बिहार के विकास को संकल्पित किया है? आगे का रोडमैप क्या है? कृषि का विकास कैसे करेंगे? निवेशकों को कैसे आकर्षित करेंगे? इन बिंदुओं पर कुछ नहीं, सिर्फ संगठित दुष्प्रचार के भरोसे चुनाव जीतने की कोशिश सफल नही हो सकती। राजनीति, सदैव बदलते समाज की अनुगामी होती है। समकालीन बिहार में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है जिनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था, रोजगार सृजन, व्यापार के अवसर, पलायन से मुक्ति, लाभकारी किसानी और विकास के अन्य बिंदु ज्यादा प्रभावशाली और आकर्षक साबित होंगे। नेतृत्व में इन संभावनाओं को विस्तार देने की क्षमता देखी जाएगी। कितनी घातक विडम्बना है कि आम जनता कोरोना माहमारी से त्राहिमाम कर रही है और वर्चुअल जन अभियान के जरिए जदयू-भाजपा चुनाव तैयारी में व्यस्त है ।

डॉ. नवल किशोर दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं एवं राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।


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