क्या दलित इंसान नहीं हैं? क्या उनकी अंतिम इच्छा नहीं हो सकती है?

हाथरस में दलित किशोरी के साथ हुए बलात्कार और उसके बाद सरकार और पुलिस की लापरवाही। उसके बाद आम जनता की प्रतिक्रया।साथ ही इस घटना का विरोध वो किस प्रकार कर रहे हैं ? इन्हीं सब मुद्दों पर गुजरात स्थित नवसर्जन ट्रस्ट के संस्थापक ,दलित अधिकार कार्यकर्ता और विचारक मार्टिन मैकवान से हुई बातचीत के अंश


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रेयाज़ अहमद: क्या आप हमें बता सकते हैं कि 14 अक्टूबर के लिए क्या योजना बनाई गई है – कितने लोगों के शामिल होने की संभावना है, समारोह में क्या होगा?

मार्टिन मैकवान: हाथरस में जिस किशोरी का सामूहिक बलात्कार और हत्या किया गया उसी के लिए ‘प्रेरणा सभा’ नामक समारोह का आयोजन किया जा रहा है जिसे ‘भीम कन्या’ के रूप में संदर्भित किया गया है। बैनर आरोपी से एक सवाल करता है: बलात्कार मुझ पर या तुम्हारे धर्म पर? समारोह का कार्यक्रम सरल है,और किसी क़िस्म की भाषण या नारेबाज़ी नहीं होगी। लोग कार्यक्रम स्थल पर इकट्ठा होंगे और ‘भीम कन्या’ की प्रतिनिधित्व वाली छवि को हल्दी का तिलक लगाएंगे, जिसका चेहरा,दो हाथों में धुएं और आग की लपटों में है।लोग अपने घर से हल्दी की एक चुटकी ले कर आएंगे और समारोह स्थल पर रखे एक कटोरे में जमा कर देंगे। हल्दी,उन सभी गाँवों से,जहाँ कार्यक्रम आयोजित किया गया है,एकत्र किया जाएगा और उसे गंगा में विसर्जित करने के लिए यूपी के सीएम को भेजा जाएगा। ताकि उस मृतक किशोरी की जोकि एक हिन्दू भी थी उसका गरिमापूर्ण अनुष्ठान को पूरा किया जा सके। जिसे राज्य ने उल्लंघन किया है।

यह कार्यक्रम 14 अक्टूबर 2020 को भारत के लगभग 1000 गांवों में आयोजित किया गया। और गाँव भी इसमें शामिल हो सकते हैं। ये गाँव उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, बैंगलोर (शहरी) और तमिलनाडु के हैं। इसमें सभी जाति और धर्म के लोग शामिल हो रहे हैं।

रेयाज़ अहमद: इस कार्यक्रम के आयोजन के पीछे क्या वजह है? आपको क्यों लगता है कि यह ज़रूरी है?

मार्टिन मैकवान: कारण यह है। दलितों के लिए सबसे विचलित करने वाला और पीड़ा देने वाला तथ्य यह था कि राज्य द्वारा पीड़िता के शव को बिना उसकी माँ को अपनी बेटी का चेहरा दिखाए और उसके अपनी बेटी को बिना हल्दी लगाए जोकि उसकी अंतिम इच्छा थी जला दिया गया। राज्य भर के सभी समुदायों और लगभग सभी धर्मों के बीच यह सांस्कृतिक परंपरा है कि मृतक के दाह संस्कार से पहले मृतक के शरीर पर हल्दी लगाया जाता है यदि मृतक अविवाहित हो।

भारत ने निर्भया के दोषियों और अफ़ज़ल गुरु जैसे खूंखार आतंकवादियों की भी अंतिम इच्छा को पूरा किया है, जिन्होंने भारतीय संसद पर हमला किया था और अजमल कसाब जो मुंबई में 72 लोगों की हत्या का दोषी था। फांसी से पहले इन दोषियों की अंतिम इच्छा का सम्मान करने के अलावा, भारत सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया था कि उनके शरीर को सम्मान के साथ और उनके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाए। हाथरस की पीड़िता के इसी अधिकार का उल्लंघन किया गया है जो न तो आतंकवादी थी,न ही जिसने भारतीय संसद पर हमला किया या उसने जीवन में कोई अपराध किया हो। वह यौन दुर्व्यवहार की शिकार थी जिसकी गरिमा की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य था।

क्या दलित इंसान नहीं हैं? क्या उनकी अंतिम इच्छा नहीं हो सकती है? या वे हिंदू हैं, लेकिन अछूत हिंदू।जिन्हें धार्मिक संस्कार का कोई अधिकार नहीं है?

इसलिए यह कार्यक्रम एक ऐसा समारोह है,जिसमें देशभर के लोग अपनी बेटी के लिए मां की अंतिम इच्छा पूरी करेंगे और एक हल्दी का तिलक लगाकर उसकी पीड़ा में शामिल होंगे।चूंकि,यह राज्य द्वारा एक मृत व्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन था, 25000 से अधिक परिवारों से एकत्र की गई हल्दी को यूपी के सीएम को गंगा में विसर्जित करने के लिए एक प्रायश्चित के रूप में दिया जाएगा।

रेयाज़ अहमद: 14 अक्टूबर का महत्व क्या है?

मार्टिन मैकवान: 14 अक्टूबर 1956 वह दिन था जब डॉ.अंबेडकर ने नागपुर में बौद्ध धर्म में धर्मांतरण किया था, जब उन्होंने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म में सुधार लाने और जाति और अस्पृश्यता का सफाया करने के लिए प्रयास किया जो दलितों के साथ अमानवीय सुलूक करता है।

रेयाज़ अहमद मुस्लिम विमेंस फ़ोरम के फ़ेलो हैं।


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