लद गए टेस्ट मैचों के ड्रा होने के दिन


The golden era of results in Test cricket is here

 

पिछले हफ्ते डरबन में एक विकेट से श्रीलंका को  दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मिली जीत से  टेस्ट क्रिकेट के नतीजों के मायने ही बदल गए हैं. श्रीलंका की दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ यह जीत बेहद खास रही.

एक टेस्ट मैच में पांच दिन निर्धारित होते हैं जिसमें टेस्ट मैच ड्रा होने की संभावना रहती है. लेकिन साल  2019 में सभी टीमों की ओर से खेले गए 9 मैचों में से अब तक 8 टेस्ट मैचों के नतीजे आए हैं. यानी लगभग 90 फीसदी मैचों के नतीजे आए हैं.

बल्कि मौजूदा दशक के आंकड़ें बताते हैं कि टेस्ट मैचों के ड्रा रहने के दिन धीरे-धीरे लद गए हैं.  बीते एक दशक में अब तक खेले गए 80 टेस्ट मैचों में से 80 फीसदी का परिणाम निकला है. यह पिछले सात दशकों में टेस्ट मैचों के परिणामों का सबसे अच्छा अनुपात है.

इन सब में सबसे निराशाजनक हालात 1980 के दौर में था. तब  ज्यादातर टेस्ट मैच खेलने वाले देश टेस्ट मैच को ड्रा कराने में अपनी शान मानते थे. उस समय सभी टीमों की जीत का कुल प्रतिशत केवल 54 फीसदी ही था.

1980 के दशक के दौरान प्रमुख टेस्ट टीमों में से एक टीम वेस्टइंडीज थी. परिणाम देने के लिहाज से उसका रिकॉर्ड सबसे अच्छा था.  टीम की परिणाम दर 62 फीसदी थी. तब तुलनात्मक तौर पर भारत  और पाकिस्तान कमजोर टीमें थीं.

उस दौरान भारत की परिणाम दर सिर्फ 40 फीसदी, जबकि पकिस्तान की परिणाम दर  सिर्फ 45 फीसदी ही थी.

उदाहरण के लिए,  इस दशक में जब पाकिस्तान ने पांच टेस्ट मैच की सीरीज के लिए भारत का दौरा किया तब दोनों टीमों के बीच 7 मैच ड्रा थे. बाद में आंकड़ा बढ़कर 11 का हो गया.

1990 के दशक में भारत ने घर पर टेस्ट मैच में जीत का रिकॉर्ड सुधारने के लिए टर्निंग पिचों के साथ खेलना शुरू किया.

इस चलते भारत में खेले गए टेस्ट में परिणाम दर 1980 के दशक में 40 फीसदी से बढ़कर 1990 के दशक में 73 फीसदी  हो गई. हालांकि अगले दशक में यह गिरकर फिर 62 फीसदी हो गई. इस दशक में टेस्ट मैचों की  परिणाम दर 80 फीसदी है जो कि बीते चार दशकों में कभी नहीं हुआ. 

 


 


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