मराठा आरक्षण: बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
उच्चतम न्यायालय में बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई है, जिसमें उसने महाराष्ट्र में शिक्षा और नौकरी में मराठा समुदाय के आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था. हालांकि, महाराष्ट्र सरकार इस मामले में बंबई हाई कोर्ट के फैसले को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में प्रतिवादी याचिका दायर कर चुकी है. महाराष्ट्र सरकार ने इस याचिका में अपील की है कि बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ डाली जाने वाली याचिकाओं पर कोई भी फैसला बिना उनका पक्ष सुने ना दिया जाए.
बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ डाली गई याचिका में कहा गया है कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) आरक्षण कानून मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरी में क्रमश: 12 से 13 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है. यह शीर्ष अदालत के इंदिरा साहनी मामले में दिए फैसले में तय की गई 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का उल्लंघन है, जिसे ‘‘मंडल फैसला’’ भी कहा जाता है.
गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर एक्वैलिटी’ के प्रतिनिधि संजीत शुक्ला ने याचिका में दावा किया कि मराठा के लिए एसईबीसी कानून ‘‘राजनीतिक दबाव’’ में बनाया गया और यह संविधान के समानता एवं कानून के शासन के सिद्धान्तों की ‘‘पूर्ण अवहेलना’’ करता है.
वकील पूजा धर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने केवल इस तथ्य को असाधारण परिस्थिति मानकर गलती की है कि अन्य ओबीसी को मराठों के साथ अपना आरक्षण कोटा साझा करना होगा (अगर मराठा को मौजूदा ओबीसी श्रेणी में डाला गया). इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित की गई 50 प्रतिशत की सीमा को केवल असाधारण परिस्थिति में ही तोड़ा जा सकता है.
इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय ने 27 जून को दिए अपने फैसले में कहा था कि न्यायालय द्वारा तय की गई आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को असाधारण परिस्थितियों में ही पार किया जा सकता है.