ईवीएम के मुद्दे पर चुनाव का बहिष्कार करेंगी विपक्षी पार्टियां?


Will the opposition boycott election?

 

‘ईवीएम विरोधी राष्ट्रीय जन आंदोलन’ के बैनर तले नई दिल्ली में जुटे देशभर के दर्जनभर से अधिक जनसंगठनों ने लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को बचाने के लिए ईवीएम हटाकर ‘बैक टू बैलेट’ की मांग की है.

20 लाख ईवीएम का गायब होना, ईवीएम के माइक्रो कंट्रोलर चिप की प्रोग्रामिंग को लेकर चुनाव आयोग के कथित झूठ, वीवीपैट से मिलान के बाद आई विसंगतियों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता के सवाल पर विपक्षी पार्टियां ईवीएम से चुनाव का बहिष्कार कर सकती हैं.

सामाजिक और राजनीतिक संगठन चुनाव आयोग की जिम्मेदारी तय करने और ईवीएम को हटाने के लिए देशव्यापी आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं.

आम चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार को मिली ‘अप्रत्याशित’ जीत और कई सीटों पर विपक्षी पार्टियों के मजबूत नेताओं की आश्चर्यजनक पराजय से राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक पशोपेश में हैं. कई जगहों पर प्रतिकूल स्थिति के बावजूद बीजेपी जीतने में कामयाब रही है. विपक्षी दल लगातार चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठाते रहे हैं. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद ईवीएम पर संदेह और अधिक गहरा गया है.

आम आदमी पार्टी नेता और सांसद संजय सिंह ने कहा कि पश्चिमी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में आम चुनाव में विजयी उम्मीदवार को लोगों ने मोहल्लों में घुसने नहीं दिया लेकिन वह छह लाख वोटों से जीतने में कामयाब रहे. वह कहते हैं कि आखिर जहां गड़बड़ी होती है फायदा सिर्फ एक पार्टी को ही क्यों पहुंचता है.

सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़े निखिल डे मानते हैं कि केवल जनसंगठन ईवीएम को हटाने और चुनाव आयोग की निष्पक्षता के लिए दबाव नहीं बना सकते हैं. जबतक राजनीतिक पार्टियां चुनाव बहिष्कार का एलान नहीं करेंगी तबतक बात नहीं बनेगी.

हालांकि वह जोड़ते हैं कि इसे जनता का आंदोलन बनाना पड़ेगा और राजनीतिक दलों तथा जन आंदोलन के लोगों को साथ आना होगा.

उन्होंने चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाने पर जोर देते हुए कहा, “ईवीएम में गड़बड़ी हुई हो या नहीं लेकिन चुनाव आयोग का हाथ जरूर मरोड़ा गया है.”

उन्होंने कहा कि बात सिर्फ ईवीएम से जुड़ी नहीं है, यह पूरी लड़ाई लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को बचाने की है. लोगों को पता चले कि वह किसको वोट कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश में महिला आंदोलनों से जुड़ी आभा ने कहा कि विपक्षी पार्टियों में काफी मतभेद हैं और उनमें अंदरूनी लड़ाइयां भी चल रही हैं, ऐसे में हमें एक ऐसा ढांचा बनाने की जरूरत है जिसमें सबकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. आप के संजय सिंह मानते हैं कि चुनाव बहिष्कार के मुद्दे पर सभी पार्टियों को साथ लाना संभव नहीं है लेकिन जन-आंदोलन जरूर इसका विकल्प हो सकता है.

पूर्व पत्रकार और महाराष्ट्र से आए सामाजिक कार्यकर्ता रवि दिलारे ने कहा कि ‘बैक टू बैलेट’ के लिए सभी राज्यों में एक सम्मेलन की योजना है. नौ अगस्त को हम चुनाव आयोग के मनमाने रुख के खिलाफ प्रदर्शन करने जा रहे हैं. वह किसान नेता राजू शेट्टी, कांग्रेस, एनसीपी और वाम दलों को इस मुद्दे पर एकसाथ लाने की बात करते हैं.

जेएनयूएसयू अध्यक्ष एन बालाजी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा, गाड़ियों में जीपीएस लगाने की बात हुई थी, लेकिन चुनाव आयोग के पास इसका कोई डेटा नहीं है जबकि उत्तराखंड में ईवीएम में उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न को लगाने के लिए 60 बाहरी लोगों को कांट्रैक्ट पर रखा गया.

चुनाव आयोग की सुप्रीम कोर्ट में दलील को काउंटर करते हुए आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि भारत से तकनीकी रूप से आगे रहने वाले देश ईवीएम को छोड़ चुके हैं तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग अब तक हमसे ईवीएम में इस्तेमाल होने वाले माइक्रो कंट्रोलर चिप को लेकर झूठ बोलता रहा कि इसकी प्रोग्रामिंग नहीं हो सकती है, लेकिन आरटीआई के जवाब में ईवीएम निर्माता कंपनी भेल ने कहा है कि चिप की दोबारा प्रोग्रामिंग संभव है.

नागपुर लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार रहे नाना पटोले ने कहा कि लोगों को विश्वास हो कि बीजेपी को वोट मिले हैं और चुनी हुई सरकार है तो कोई दिक्कत ही नहीं है, लेकिन शंका का समाधान होना जरूरी है.

सीएसआईआर के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और नेशन फॉर फार्मर से जुड़े दिनेश अबरोल ने कहा कि लोकतंत्र में संवैधानिक अधिकार है कि हमें वोट देते ही पता चले कि हमारा वोट किसे गया है, मतदाताओं को रसीद दिया जा सकता है.

दो प्रमुख वाम दलों- सीपीआई और सीपीएम के प्रतिनिधियों ने इलेक्टोरल रिफॉर्म की बात उठाई.

सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है जिसकी वजह से ईवीएम पर सवाल उठ रहे हैं. ईवीएम-वीवीपैट के मिलान में त्रुटि होने पर आगे क्या होगा इसपर आयोग से कोई जवाब नहीं मिला जबकि इस मामले में हमें सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा मिली.

ईवीएम और आंदोलन का अपडेट देने के लिए ईवीएम हटाओ डॉट ओआरजी वेबसाइट लांच किया गया.

सीपीएम नेता नीलोत्पल बसु ने कहा कि सवाल सिर्फ ईवीएम का नहीं है; बीजेपी के पास जितना पैसा है वह लोकतंत्र के लिए खतरा बन चुका है.

उन्होंने कॉरपोरेट फंडिंग को खत्म करने की मांग करते हुए कहा, “हमें सामूहिकता में चीजों को देखने की जरुरत है, अगर लड़ाई बराबरी में नहीं हो तो यह न्यायपूर्ण नहीं हो सकता है.”

कार्यक्रम में एआईएसओ, अनहद, भारत बचाओ आंदोलन, फैक्टर, किसान संघर्ष समिति, एमकेएसएस, एनएपीएम, एनएफआईडब्लू, ओबीआर इंडिया, विद्यार्थी भारती, विमोचना  के प्रतिनिधि मौजूद रहे.


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