बीजेपी राज में सुशासन की बातों के बीच परवान चढ़ते रहे घोटाले


cag report reveals bjp government corruption in mp and chhattisgarh

 

मध्य प्रदेश और छत्‍तीसढ़ में बीजेपी की सरकारें बीते 15 सालों से सुशासन के नारे लगाती रहीं. सुशासन दिवस जैसे आयोजन करती रहीं. मगर उन्‍हीं के शासन में बड़े पैमाने पर आर्थिक गड़बड़ियां हुईं. इनसे ना सिर्फ दोनों प्रदेशों के खजाने पर अरबों का आर्थिक बोझ पड़ा बल्कि क्रियान्‍वयन में गड़बड़ी से जनता को भी योजनाओं का पर्याप्‍त लाभ नहीं मिला.

ये ‘घोटाले’ इशारा करते हैं कि ‘अपने’ लोगों को रेवड़ियां बांटी गई और जानबूझ कर नियमों की अवहेलना स्‍वीकार की गई. कैग की ये रिपार्ट खुलासा करती है कि राज्‍यों में दिखाई देने वाला विकास बुनियादी नहीं है. बल्कि, गहराई से जांच की जाए तो घोटालों की परतें उधड़ेंगी.

मध्य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ की बीजेपी सरकारों की आर्थिक अक्षमता को कैग रिपोर्ट में उजागर किया गया है. 31 मार्च 2017 को समाप्‍त हुए साल के लिए विधानसभा पटल पर रखे गए भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) के प्रतिवेदन में इन बातों का खुलासा होता है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में रेत खदानों की नीलामी और रॉयल्टी में गड़बड़ी, जलकर बकाया, आबकारी नीति में कमी, जांच में लापरवाही, और टैक्स के कम निर्धारण से सरकार को करोड़ों की हानि हुई है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 2016-17 में बेहिसाब पैसा खर्च किया. पेंच परियोजना में 376 करोड़ की अनियमितता सामने आई है.

इसके अलावा वाटर टैक्स में 6270 करोड़ का नुकसान, सार्वजनिक उपक्रमों में 1224 करोड़ का नुकसान, छात्रावास संचालन में 147 करोड़ की अनियमितता हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी विदेश दौरों के खर्च को दिखाया ही नहीं गया. विदेशी दौरों में 8.96 करोड़ इन्वेस्टमेंट ड्राइव के मद से खर्च हुआ. वहीं, सरकार ने बजटीय जांच से 8.96 करोड़ का खर्च बचा लिया.

इस रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2017 के दौरान राज्य के निगम-मंडल लगातार घाटे में रहे. इसमें सरकार को चार हजार 857 करोड़ का नुकसान हुआ. वहीं 2017 में एक हजार 224 करोड़ का नुकसान हुआ था. बताया गया कि निगम-मंडलों पर सरकार इनवेस्ट करती रही, लेकिन रिटर्न नहीं मिल पाया.

2015-16 में मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी सबसे ज्यादा 2766 करोड़ रुपए के घाटे में रही. इस दौरान पूर्व और पश्चिम क्षेत्र की कंपनियां भी एक हजार करोड़ से ज्यादा के नुकसान में रहीं. सरकारी विभागों ने 18000 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दिया. उपयोगिता प्रमाण पत्र वित्त विभाग को उपलब्ध नहीं कराया गया. सामाजिक और सामान्य क्षेत्र के विभागों ने राशि खर्च ही नहीं की.

सरकार विभागों को अधिक बजट देने के दावे करती रही, लेकिन विभागों ने तो यह पैसा खर्च ही नहीं किया. यानि, जनता को लाभ नहीं मिल पाया. एससी, एसटी, अल्पसंख्यक, नगरीय प्रशासन समेत कई विभागों के 2012-13 से 2017 तक के आंकड़े कैग ने पेश किए. इन आंकड़ों में बताया गया कि 2017 में 2 लाख करोड़ का बजट था जबकि 1 लाख 61 करोड़ खर्च किए गए. 2015-16 में एक लाख 66 हजार करोड़ का बजट था जबकि 1 लाख 25 हजार खर्च किए गए.

कैग ने जांच में पाया कि जल संसाधन विभाग ने उद्योगों, घरेलू कनेक्शन और किसानों से 1627.54 करोड़ रुपये का बकाया नहीं वसूला. इसमें उद्योगों पर 506.34 करोड़ रुपये बकाया था. एक अन्य खास बात यह सामने आई कि अनूपपुर में ओरिएंट पेपर मिल, अमलाई पर जून 1998 से मार्च 2018 तक वसूली के लिए 771.06 करोड़ रुपये बकाया था. इस संबंध में उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका भी खारिज कर दी, इसके बावजूद यह राशि नहीं वसूली गई.

अलग-अलग अनाजों से शराब उत्पादन के मानदंड निर्धारित नहीं होने या निम्न मानदंड होने से सरकार को 1192.12 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. देशी शराब के ठेकों में केवल प्रदेश के डिस्टलरी वालों को भाग लेने की अनुमति देने से प्रतिस्पर्धा कम हुई और उन्होंने सिंडीकेट बना लिया. इससे उनको 653.08 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचा.

शराब परिवहन के शुल्क निर्धारण में गड़बड़ी के कारण एक वर्ग को अनुचित फायदा पहुंचा और सरकार को 100.62 करोड़ रुपये की हानि हुई. छत्‍तीसगढ़ में भी कैग की जांच के दौरान हजारों करोड़ रुपये के घोटाले के साथ ही तमाम गड़बड़ियां सामने आई हैं. खास बात ये है कि तत्कालीन बीजेपी सरकार के बहुचर्चित विभाग चिप्स के माध्यम से किए गए ई-टेंडर में 17 विभागों का 4601 करोड़ रुपये का घोटाला भी सामने आया है.

कैग ने तीन सेक्टर में अपनी रिपोर्ट पेश की है. ई-टेंडर के जरिए 4601 करोड़ के 74 कॉमन कंप्यूटर से गलत तरीके से बिडिंग का खुलासा हुआ है. जांच की गई तो पता चला कि जिन कंप्यूटरों से टेंडर को जारी किया गया था, उसी आईपी से टेंडर भरे गए. ऐसे में इस बात की भी आशंका है कि ये टेंडर अधिकारियों ने ही भरे हैं.

सरकार की ई-टेंडरिंग प्रकिया में 17 विभागों की ओर से चिप्स के जरिए 1921 निविदाओं के लिए 4601 करोड़ के टेंडर भरे गए. 79 ठेकेदारों ने दो पैनकार्ड का उपयोग टेंडर प्रक्रिया में किया, जिन्हें वेरीफाई भी नहीं किया गया. एक पैन का इस्तेमाल पीडब्ल्यूडी में रजिस्ट्रेशन के लिए और दूसरा ई प्रोक्योरमेंट में किया गया. ठेकेदारों ने आयकर अधिनियम की धारा 1961 का उल्लंघन किया है. इन 79 ठेकेदारों को 209 करोड़ का काम दिया गया.

नवंबर 2015 से मार्च 2017 के बीच 235 ईमेल आईडी का इस्तेमाल 1459 विक्रेताओं ने किया. जबकि सभी को यूनिक आईडी देने का प्रावधान था. एक ईमेल आईडी का इस्तेमाल 309 ठेकेदारों ने किया.

कैग की रिपोर्ट में छत्‍तीसगढ़ में ट्राइबल विभाग की ओर से स्कूलों में दी जाने वाली छात्रवृत्ति का बड़ा घोटाला सामने आया है. ऐसे 21 स्कूलों में एससी/एसटी छात्रवृत्ति बांटी गई, जो अस्तित्व में ही नहीं हैं. इस मामले में 1.40 करोड़ रुपये की रिकवरी और एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा की गई है. इसमें सरकारी स्कूल के छह और प्राइवेट स्कूल के 13 प्रिंसिपल शामिल हैं.

कैग ने रिपोर्ट में बताया है कि राज्य में 90 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी है. अस्पतालों में दवाइयों का 40 से 76 प्रतिशत तक की कमी है. वहीं 36 से 71 प्रतिशत प्रयोगशालाओं की कमी है, जिससे लोगों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. चौंकाने की बात ये है कि 186 अस्पताल 5 साल से अधूरे हैं, जिनमें 14 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं.

इससे एक बात तो साफ है कि जनता को जितना दिखाया गया, उतना मिला नहीं. जो मिलना था वो भी घोटालों के रुपये में दूसरों की जेब में गया. ऐसे में इन मामलों की गहराई से जांच की जरूरत है, ताकि असली दोषियों की पहचान कर उन्हें सजा दिलाई जा सके.


देश