राजनीति के रंगमंच पर राजनेताओं के अभद्र बयान


Hateful statements of politicians in india

 

विश्व के सबसे बड़े नाटककार शेक्सपीयर का कथन है, “विश्व एक रंगमंच है और हमसब उसके एक किरदार है.” आज के इस राजनीतिक रंगमंच पर ‘हम भारत के लोग’ चार ऐसे किरदारों के चार डायलॉग को यहां पेश कर रहे हैं.

“अगर कांग्रेस को अली पर सपा, बसपा को अली पर तो हमें भी बजरंग बली पर विश्वास है.”- योगी आदित्यनाथ

“अगर मेरी जीत मुसलमानों के बिना होगी तो फिर अगर मुसलमान आता है काम के लिए तो मैं सोचती हूं कि रहने दो.”- मेनका गांधी

“मुस्लिम समाज वोट बांटना नहीं एकतरफा वोट बीएसपी, एसपी, आरएलडी के उम्मीदवारों को दो.”- मायावती

“मैं 17 दिन में पहचान गया कि उनके नीचे का जो अंडरवियर है वो खाकी रंग का है.”- आजम खान

ये आज के राजनेताओं की भाषा है. लेकिन अगर पीछे मुड़कर अपने पहले के राजनेताओं और उनकी भाषा पर विचार करें को हमें विपरित दृष्य दिखाई पड़ता है.

जब मौलाना आजाद देश के शिक्षा मंत्री थे. संसद में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को लेकर पुरुषोत्तम दास टंडन ने सरकार के प्रयास पर नाखुशी जाहिर की. और इस संदर्भ में उन्होंने मौलाना आजाद से सवाल किया था.

जिसके जवाब में मौलाना ने पुरफरेब तखैयुल(भ्रामक कल्पना) शब्द का प्रयोग कर दिया जो टंडन जी को नागवार गुजरी, जिसकी उन्होंने शिकायत की.

इसके जवाब में मौलाना आजाद ने कहा, “बहस में पुरफरेब(भ्रामक) का लफ्ज कहना हरगिज पार्लियामेंट की जबान के खिलाफ नहीं है. पुरफरेब के माने यह है कि बहस में एक शख्स कह सकता है कि दूसरे ऑनरेबल मेम्बर ने एक चीज को जिस रूप में पुट(प्रस्तुत) किया और पेश किया है वह साफ नहीं है. पुरफरेब के माने यह है कि जरा सफाई नहीं है और इसलिए मैं यह नहीं मानता हूं कि इस लफ्ज का कहना पार्लियामेंट की जबान के खिलाफ है. यह एक सभ्य बातचीत का तरीका था.”

भाषाई गिरावट की शुरुआत तो बहुत पहले शुरू हो चुकी थी. लेकिन साल 2014 से अब यह गिरावट अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच चुकी है. अब अभद्र भाषा का प्रयोग उपरी स्तर से ही हो रहा है. इस अभद्र भाषा का प्रयोग विपक्षी दलों के नेताओं के लिए, मुसलमानों के लिए और साथ ही पड़ोसी देश लिए भी हो रहा है.

शिष्टाचार भारत की पूंजी रही है. भारत सभ्य भाषा के उपयोग के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. इस भाषाई गिरावट का असर हमारे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर भी पड़ा है. इस अभद्र भाषा, जिसका प्रयोग सार्वजनिक जीवन में धड़ल्ले से किया जा रहा है, इसका असर हमें अपने देश के नौजवानों पर भी देखने को मिल रहा है. हमारे नौजवानों की भाषा खराब हुई है.

इस भाषाई गिरावट की वजह से नागरिकों के आपसी संबंध भी खराब हुए हैं. ये भाषाई गिरावट बदस्तूर जारी है. अभद्र भाषा के इस्तेमाल की जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही है. जिसमें एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की होड़ सी लगी हुई है.

अभद्र और अश्लील भाषा की तान आखिर में शारीरिक हिंसा पर आकर टूटती है.  मामूली तू-तू, मै-मैं से शुरू होकर गाली-गलौज, हाथापाई और आखिर में कत्ल और खून!

गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और नरेंद्र दाभोलकर, गौरी लंकेश ये चारों पहले शब्दों के घाव सहे और फिर घातक हमले के शिकार हुए. जिस देश में विभिन्न धर्मों के बीच आपसी बहस ओ मुबाहिसा होता था, उसी देश में आज विपरीत विचार रखने वाले लोगों को वाजिबुल कत्ल घोषित किया जा रहा है.

यही चेतावनी प्रसिद्ध कवि अतलामा इकबाल ने करीब सौ साल पहले दी थी.

“तुम्हारी तहजीब अपने खंजर से आप ही खुदकुशी करेगी
जो शाखे नाजुक पे आशियाना बनेगा ना पायेदार होगा.”

डा. सैयदा हमीद, लेखिका और समृद्ध भारत फाउंडेशन की ट्रस्टी

रेयाज अहमद, फेलो, मुस्लिम वीमेंस फोरम


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