क्या कूड़े का ढेर बन जाएगा माउंट एवरेस्ट?


Will Everest become the tallest landfill?

 

साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोरगे ने एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की थी. तब उन्होनें सोचा नहीं होगा कि उनके इस अभियान के मात्र चार दशक बाद एवरेस्ट पर चढ़ना एक महंगी हॉबी और धंधे में बदल जाएगा. आज माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों द्वारा फैलाया गया कूड़ा इस महान पर्वत को दूषित कर रहा है.

एवरेस्ट पर्वत महान हिमालय की महालंगूर शृंखला में स्थित है. इसकी स्थिति चीन और नेपाल सीमा पर है. इसका ज्यादातर हिस्सा नेपाल में पड़ता है. 1850 के दशक में राधानाथ सिकदर नाम के एक बंगाली सर्वेयर ने एवरेस्ट के सबसे ऊंचे पहाड़ होने का पता लगाया था. तत्कालीन, सर्वे ऑफ इण्डिया के महानिदेशक जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर इसका नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया. एवरेस्ट की उंचाई समुद्र तल से लगभग 29029 फीट(8848 मीटर) है.

साल 1921 से शुरू हुआ एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास

एवरेस्ट पर चढ़ने के गंभीर प्रयास 1921 में शुरू हुआ जब तिब्बत ने विदेशियों के लिए अपने देश के दरवाजे खोले. नेपाल जाना उस समय तक विदेशियों के लिए बहुत मुश्किल था. तब नेपाल सरकार विदेशियों को प्रवेश की अनुमति नहीं देती थी.

1921-22 में दो ब्रिटिश अभियान दल एवरेस्ट पर गए लेकिन दोनों असफल रहे. 29 मई, 1953 को न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी एवं नेपाली शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने इस पर चढ़ने में सफलता पाई. ये दोनों कर्नल जोन हंट के नेतृत्व वाले एक ब्रिटिश अभियान दल के सदस्य थे.

एवरेस्ट शिखर पर वर्ष के ज्यादातर समय तेज हवाएं चलती रहती है और तापमान हमेश ‘शून्य’ से कम रहता है. यहां सामान्य भूमि के मुकाबले ऑक्सीजन 40 प्रतिशत होती है. ये सभी परिस्थितियां एवरेस्ट की चढ़ाई को मुश्किल बना देते हैं.

एवरेस्ट पर मई और सितम्बर में हवा कुछ मन्द हो जाती है. इसलिए यह आरोहण का सबसे अच्छा समय होता है.

एवरेस्ट पर चढ़ना कई दूसरे पर्वतों से आसान 

एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए 18 रूट हैं. तिब्बत की तरफ से चढ़ने पर आरोहण लगभग 35 किलोमीटर होता है तो नेपाल की तरफ से 20 किलोमीटर. एवरेस्ट पर चढ़ना मुश्किल तो है लेकिन सबसे मुश्किल नहीं है. सबसे ज्यादा मुश्किल चढ़ाई पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित ज्ञ2 पर्वत की मानी जाती है. उसके बाद नंगा पर्वत, अन्नापूर्णा, कंचनजंगा, लाहोत्से, नंदा देवी एवं अन्य पर्वत हैं. शीर्ष 10 सबसे मुश्किल चढ़ाई के लिहाज से एवरेस्ट का नंबर नौवां है.

सबसे खतरनाक चढ़ाई नेपाल स्थित पर्वत अन्नपूर्णा की है. जहां मृत्यु दर 33 प्रतिशत है. मतलब अगर 100 लोग चढ़े तो 33 लोगों की मृत्यु दुर्घटना में हो जाती है. के2 पर यह 22 प्रतिशत है तो एवरेस्ट पर यह दर चार प्रतिशत है.

इटली के रेनाल्ड मेसनर बिना ऑक्सीजन एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पहला पर्वतारोही

ऑक्सीजन की कमी होने पर दिमाग काम करना बन्द कर देता है और ज्यादा बुरी हालत में मृत्यु भी हो सकती है. साल 1978 में इटालियन पर्वतारोही रेनाल्ड मेसनर अकेला बिना किसी शेरपा की सहायता और ऑक्सीजन के बिना एवरेस्ट पर चढ़ गया था. उसके बाद बहुत कम लोग ही बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ पाए हैं. एवरेस्ट पर्वतारोहियों, पोर्टर के रूप में मशहूर शेरपा समुदाय के डीएनए में ऐसी विशेषता पाई गई है कि ये लोग कम ऑक्सीजन में भी अपेक्षाकृत सामान्य रहते हैं.

शेरपा 15वीं शताब्दी में तिब्बत से नेपाल आये थे और महालंगूर हिमालय के आस-पास अपेक्षाकृत निचले इलाकों में बस गये थे . आज शेरपा दुनिया में पर्वतारोहण के पर्याय बन गए हैं. पर्वतारोहण ने शेरपाओं का जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद की है. आज अनेक नेपाली शेरपा पर्वतारोहण के कारोबार से जुड़कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. कुछ शेरपाओं पास तो निजी छोटे विमान और हेलीकॉप्टर भी है.

मोटी रकम के बदौलत एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना

नेपालियों की आय का मुख्य स्त्रोत पर्यटन है. इसका बड़ा हिस्सा केवल पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग से आता है. रोजगार के इस अवसर को नेपालियों ने बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया. काठमांडू के थमेल मार्केट में पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग के विभिन्न सामान बेचने वाले 500 से ज्यादा स्टोर हैं. यहां की सैकडों एजेन्सियां पर्वतारोहण के साथ-साथ ट्रैकिंग और राफ्टिंग के पैकेज देती हैं.

थमेल में नेपाल में बने सर्दी के जूते, जैकेट आदि भी बहुतायत में बिकते हैं. पर्वतारोहन के कारोबार में नेपाल के लोगों के अलावा अन्य देशों के लोग भी जुड़े हैं. मोटी रकम लेकर ये अनुभवहीन लोगों का भी एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना पूरा करवा देते हैं. इसके लिए ये 40 हजार डॉलर से लेकर सवा लाख डॉलर तक चार्ज किया जाता है. नेपाल सरकार ने अलग-अलग पहाड़ों पर चढ़ने की फीस निर्धारित कर रखी है.  एवरेस्ट के लिए यह फीस 11 हजार डॉलर है. इसके अलावा नेपाल सरकार ने चार हजार डॉलर कूड़ा जमानत शुल्क प्रति टीम भी लगा रखा है. प्रति पर्वतारोही चार किलो कूड़ा वापस बेस कैम्प पर लाने पर ही यह जमा राशि वापस होती है.

पर्वतारोहियों के छोड़े अपशिष्ट बनी बड़ी समस्या

पर्वतारोहियों के कारण होने वाली गन्दगी एवरेस्ट पर एक बड़ी समस्या है. एवरेस्ट पर चढ़ने में प्रति पर्वतारोही लगभग 16 ऑक्सीजन सिलेंडर खर्च होते है. जिन्हें खत्म होने पर पर्वतारोही पर्वत पर ही छोड़ देते हैं. एवरेस्ट पर अभी तक लगभग छह हजार लोग सफलतापूर्वक चढ़ चुके है. उनका मल भी एवरेस्ट को दूषित करता है. नेपाली भाषा में एवरेस्ट को ‘सागरमाथा’ कहा जाता है. इसे एक पवित्र पर्वत का दर्जा दिया गया है. लेकिन नेपाल जैसे दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक के लिए इसके द्वारा धनोपार्जन करना मजबूरी है.

एवरेस्ट ट्रैकिंग के दरम्यान कई बार हो चुकी है दुर्घटनाएं

साल 1996 में हुई एक दुर्घटना में आठ लोग मारे गये. इस घटना के ऊपर 2015 में ‘एवरेस्ट‘ नाम फिल्म भी आई थी. साल 2014 में 16 शेरपा गाइड खूम्बू हिमनद में हिमस्खलन में मारे गए. 2015 के भूकम्प के कारण बेसकैम्प में मौजूद 22 की मौत हो गई थी.

ट्रैकिंग एजेंसी अनुभवहीन और अनफिट लोगों को एवरेस्ट ट्रैकिंग के लिए बढ़ावा देते हैं.  काठमांडू के थमेल में ‘सेवन ब्रदर समिटियर’ नाम से ट्रैकिंग एवं एम्पीडिशन एजेन्सी चलाने वाले नीमा शेरपा ने बताया कि मेरे कई कस्टमर जो ‘मेरा पर्वत’ भी नहीं चढ़ पाये, हमने उन्हें एवरेस्ट पर चढ़वा दिया. मेरा पर्वत एवरेस्ट से आठ हजार फीट कम ऊंचा है.

नीमा शेरपा सात भाई हैं. सभी पर्वतारोहण के व्यवसाय से जुड़े हैं.  वह खुद 19 बार एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं. यह एक समय का रिकॉर्ड था. उनके सात भाई भी कम-से-कम आठ बार एवरेस्ट की चोटी पर जा चुके हैं.

नेपाल की तरफ से लगभग 800 से 1000 लोग हर साल एवरेस्ट पर चढ़ते हैं. तिब्बत की ओर से एवरेस्ट पर चढ़ने वाले लोगों की संख्या 600 से 800 है. तिब्बत का रास्ता अपेक्षाकृत लम्बा है.

पैसे से खरीदी जा सकती है एवरेस्ट की ट्रैकिंग

शेरपाओं की एक कम्पनी बेस कैम्प से लेकर शिखर तक एक रस्सी बांधती है जिसे निर्धारित शुल्क देकर प्रयोग किया जा सकता है. शेरपा, पर्वतारोहियों का सारा सामान भी ढ़ोते हैं. इसके अलावा 20 हजार फीट की उंचाई पर अपने ग्राहकों को गर्म कॉफी, भोजन, चाय की सुविधा भी देते हैं. अधिकतर अमीर यूरोपीय पर्यटक इसके लिए सवा लाख डॉलर प्रति व्यक्ति तक खर्च करते हैं.

एवरेस्ट एक कॉमरर्शियल पहाड़ बन गया है. विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्वतारोही माने जाने वाले रेनोल्ड और मेसनर के अनुसार एवरेस्ट पर चढ़ने वाले लोग सच्चे पर्वतारोही नहीं है. बल्कि पर्यटक हैं जो अपने अहम को पूरा करने के लिए एवरेस्ट पर चढ़ते हैं. रेनाल्ड मेसनर ने 8,000 मीटर से ऊपर के सभी पर्वत सबसे पहले और बिना किसी गाइड या शेरपा के चढ़ चुके हैं.

मेसनर का कहना है कि एवरेस्ट पर कुछ साल के लिए आरोहण को बन्द कर देना चाहिए. मेसनर का कहना है कि एडवेंचज पैकेज में नहीं आता. असली पर्वतारोहण है बिना कुली, पोर्टर के पर्वत पर चढ़ना.

नाम के लिए एवरेस्ट की चढ़ाई

भारत में ऐसे अनेक पहाड़ है जिनपर चढ़ना एवरेस्ट से ज्यादा मुश्किल है लेकिन नाम एवरेस्ट पर चढ़ने में ज्यादा होता है. भारत के मेरू पर्वत, नंदा देवी, कंचनजंघा, कामेट, थलय सागर, शिवलिंग पर चढ़ना एवरेस्ट से ज्यादा मुश्किल है.

पैसे कमाने के चक्कर में टूर ऑपरेटर अनुभवहीन और अनफिट लोगों को भी एवरेस्ट पर ले जाते हैं. उनके कारण भी समस्या होती है. एवरेस्ट पर चढ़ने के रास्ते में जगह-जगह पर्वतारोहियों के 250 से ज्यादा शव पड़े हैं. एवरेस्ट पर ज्यादातर लोगों की मृत्यु, थकान, सर्दी या गिरने के कारण होती है. उनके शवों को वापस लाना बहुत मुश्किल होती है. अब तो कुछ शव ‘लैंडमार्क’ बन चुके हैं.

एवरेस्ट पर बढ़ रहा कूड़ा

एवरेस्ट पर हजारों ऑक्सीजन सिलेंडर बिखरे पड़े हैं. एक पर्वतारोही को एवरेस्ट की यात्रा पूरी करने के लिए औसतन 16 ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ती है.

हर सीजन में बेस कैम्प पर करीब 14 टन मानव मल जमा हो जाता है. जो टॉयलेट टैंट के ड्रम में जमा होता है. शेरपा मानव मल को नजदीकी गांव गोरक्षेप ले जाते हैं. उन्हें गड्ढों में भर दिया जाता है. खुले में मल त्याग करने से वहां का हिम जगह-जगह से दूषित भी हो जाता है.

समय-समय पर एवरेस्ट पर फैले कूड़ा को इकट्ठा करने के अभियान भी चलाये जाते रहे हैं. लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एवरेस्ट सबसे उंचा कूड़ेदान बन जायेगा.

अभी कुछ दिन पहले ही चीन ने तिब्बत की तरफ वाले एवरेस्ट बेस कैम्प पर सामान्य पर्यटकों के आने पर रोक लगा दी है. अब वहां केवल एवरेस्ट पर चढ़ने का परमिट लिये हुए पर्वतारोही ही जा सकते हैं. चीन ने यह कदम बेस कैम्प में पर्यटकों की भारी भीड़ और उसके कारण होने वाले प्रदूषण के कारण उठाया है.

 


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