जम्मू-कश्मीर: बीडीसी चुनावों में 98 फीसदी मतदान का मतलब वो नहीं है जो मोदी बता रहे हैं


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जम्मू-कश्मीर में हाल ही में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चुनावों को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा कि इन चुनावों में ऐतिहासिक 98 फीसदी मतदान हुआ और इस खबर ने प्रत्येक देशवासी को गर्व से भर दिया है.

नरेंद्र मोदी ने इसे पांच अगस्त के अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले से भी जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि पांच अगस्त के ऐतिहासिक फैसले की वजह से जम्मू-कश्मीर के लोगों ने उत्साह के साथ मतदान प्रक्रिया में भाग लिया और बिना किसी हिंसा के 98 फीसदी मतदान हुआ.

लेकिन नरेंद्र मोदी जिन बीडीसी चुनावों का हवाला दे रहे थे वो असल में प्रत्यक्ष चुनाव ना होकर अप्रत्यक्ष चुनाव थे. ठीक राज्यसभा अथवा राष्ट्रपति चुनाव की तरह, जहां मतदान प्रक्रिया में लगभग सभी प्रतिनिधि भाग लेते हैं.

बीडीसी चुनाव पंचायती राज व्यवस्था के दूसरे स्तर के पायदान हैं. जम्मू-कश्मीर में 24 अक्टूबर को पंचायती राज व्यवस्था के पहले स्तर के प्रतिनिधियों (पंचों और सरपंचों) ने अपने बीच से दूसरे स्तर के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मतदान किया. इसलिए इन चुनावों में 98 प्रतिशत मतदान हुआ.

जम्मू-कश्मीर में पंचों और सरपंचों को चुनने के लिए पिछले साल दिसंबर में मतदान हुआ था. इन चुनावों में घाटी में 41.3 प्रतिशत और पूरे राज्य में 74 प्रतिशत मतदान हुआ था. कश्मीर घाटी में करीब 65 प्रतिशत गांव के समूह में या तो केवल एक प्रत्याशी था या फिर कोई उम्मीदवार ही नहीं था.

24 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में 26,029 पंचों और सरपंचों ने मतदान किया. यह संख्या बहुत कम है. अगर घाटी में पिछले साल दिसंबर में अधिक पंच और सरपंच चुने जाते तो यह संख्या अधिक होती.

इस आधार पर देखा जाए तो नरेंद्र मोदी उस मतदान का जश्न मना रहे हैं जो इस साल पांच अगस्त के फैसले से पहले हुआ.

जम्मू-कश्मीर में 316 ब्लॉक हैं. 24 अक्टूबर को इनमें से दो ब्लॉक में चुनाव नहीं हुआ क्योंकि इनके अंतरगत आने वाली पंचायतों में कोई प्रतिनिधि ही नहीं था. इससे साफ पता चलता है कि घाटी में पिछले दिसंबर में लोगों ने पंचायत चुनावों का बड़े स्तर पर बहिष्कार किया था.

चार काउंसिलों में जहां चेयरपर्सन का पद महिलाओं के लिए आरक्षित था, वहां किसी ने भाग ही नहीं लिया. तीन अन्य काउंसिलों में सभी नामांकनों को रद्द कर दिया गया. इस हिसाब से देखा जाए तो 307 ब्लॉक में ही चुनाव हुए.

और करीब से देखें तो 27 काउंसिलों में केवल एक प्रत्याशी था. इन 27 काउंसिलों में 24 कश्मीर घाटी की थीं. इस हिसाब से इन काउंसिलों में सौ फीसदी मतदान हुआ.

दूसरी तरफ सीपीएम, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों ने इन चुनावों का बहिष्कार किया. हालांकि, कांग्रेस ने केवल पुलवामा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा और जीत हासिल की.

बीजेपी ने इन चुनावों में 81 पद जीते. 217 निर्दलीय जीते. इन 217 निर्दलीयों के बारे में कहा जा रहा है कि ये बीजेपी के ही उम्मीदवार थे लेकिन प्रतिक्रिया के डर से उन्होंने पार्टी के नाम का प्रयोग नहीं किया. पैंथर्स पार्टी ने आठ सीटें जीतीं.

पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों के पास फंड की कमी होती है. इस लिहाज से इन चुनावों में काफी कड़ा मुकाबला देखने को मिलता और कहीं-कहीं हिंसा तक होती है.

जम्मू-कश्मीर में पिछले साल दिसंबर में हुए पंचायत चुनावों का पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बहिष्कार किया था.

केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में जेएनयू में कहा था कि जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि मात्र 10 प्रतिशत मतदान की बदौलत संसद में आते हैं और फिर जम्हूरियत की बात करते हैं. अब प्रधानमंत्री खुद कम मतदान को जम्हूरियत की जीत बता रहे हैं.


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