ये राजधर्म-राजधर्म क्या है?


article about violence in delhi

 

विरोधियों, ये राजधर्म-राजधर्म का क्या शोर मचा रखा है? कुछ पता भी है कि राजधर्म क्या होता है? कहीं यह तो नहीं समझ बैठे हो कि मोदी जी कुर्सी पर हों तो जो भी करें सो गलत और जो नहीं करें सो, राजधर्म. 2002 में गुजरात में हजारी दंगा होने दिया और कुछ नहीं किया, तो उसमें राजधर्म के उलाहने. 2020 में ट्रम्प जी की अगवानी के लिए दिल्ली को जरा सी एक्स्ट्रा आग से रौशन होने दिया, तो उस पर भी राजधर्म के ताने. और कुछ नहीं तो कम से कम गिनती की तो इज्जत रखते. दिल्ली का सरकारी आंकड़ा तो अभी पचास के पार भी नहीं हुआ है. हजारी दंगे पर भी राजधर्म की दुहाई और पचासा पर भी, गजब्बे करते हो. और हद्द तो बद्द ये कि राजधर्म सिखाने चले हो और वह भी मोदी जी को! क्या विश्व गुरु बन चुके भारत के पहले पीएम, मोदी जी को भी कोई कुछ सिखा सकता है और वह भी राजधर्म? वाजपेयी जी ने तो ट्राई कर के भी देखा था, क्या हुआ, जबकि कहते हैं कि उनका ही राज था? अब सोनिया जी राजधर्म सिखाएंगी, वह भी मोदी के राज में! क्या मजाक है?

और ये जो दिल्ली जलने-जलाने का इतना शोर मच रहा है, हमें तो इसमें भी मोदी जी के विरोधियों यानी टुकड़े-टुकड़े गैंग की ही साजिश लगती है. दंगे-दंगे का शोर मचाकर ये लोग मोदी जी को बदनाम करना चाहते हैं. देश में तो देश में, दुनिया भर में मोदी जी यानी भारत को बदनाम करना चाहते हैं. सारी दुनिया अब भारत को मोदी के देश के नाम से जो जानती है. तभी तो उधर ट्रम्प जी इंडिया की नमस्ते लेने के लिए अहमदाबाद के हवाई अड्डे पर उतरे और इधर, दिल्ली जल रही है, दिल्ली जल रही है का शोर चालू हो गया. देशी टीवी वालों ने तो फिर भी इंडिया की लाज रखी वर्ना विदेशी टीवी/ सोशल मीडिया वालों ने तो हद्द ही कर दी. इधर ट्रम्प जी और मोदी जी झप्पी पा रहे हैं, उधर दिल्ली जल रही है. ट्रम्प जी साबरमती आश्रम में चरखा चला रहे हैं, दिल्ली जल रही है. मोटेरा स्टेडियम में ट्रम्प जी और मोदी जी, ”ये दोस्ती कभी न छोड़ेंगे” वाला गाना गा रहे हैं, दिल्ली जल रही है. योगी जी ताजमहल को यूपी की खास सांस्कृतिक धरोहर बता रहे हैं, दिल्ली जल रही है. राष्ट्रपति भवन में ट्रम्प जी का गार्ड ऑफ ऑनर, दिल्ली जल रही है. श्री और श्रीमती ट्रम्प राजघाट पर, दिल्ली जल रही है. संयुक्त वक्तव्य जारी, दिल्ली जल रही है. और तो और दिल्ली का जलना, ट्रम्प जी की प्रेस कान्फ्रेंस तक में जा धमका.

लेकिन दिल्ली के जिस जलने-जलाने का इतना शोर था, उसकी हकीकत क्या निकली? ट्रम्प जी की अगवानी से फुर्सत मिलते ही शाह साहब ने जरा सा ध्यान क्या दिया और मोदी जी ने अपने रॉबिनहुड को जरा सा सडक़ पर क्या उतारा, चौथे ही दिन सब फुस्स. फौज बुलाने से लेकर, शाह साहब के इस्तीफे तक की सभी मांगें बेकार. पुलिस को एक गोली तक नहीं चलानी पड़ी. धुंआ छंटने के बाद पता चला कि विरोधियों ने खामखां में तिल का ताड़ बना दिया था वर्ना यह कूड़ाघर की आग से ज्यादा खतरनाक मामला नहीं था. कहना भाजपा के नए-नए नातेदार बने अजय चौटाला का कि ऐसे सांप्रदायिक दंगे तो हमेशा से होते ही रहे हैं. शाह साहब के मंत्रालय ने भी आग-आग का शोर मचाने वालों को लताड़ लगायी. राजधानी के दो सौ से ऊपर थानों में से सिर्फ एक दर्जन में और राजधानी के कुल 4.2 फीसद इलाके में गड़बड़ी हुई है. बड़े-बड़े शहरों में इतनी गड़बड़ी तो होती ही रहती है. 96 फीसद इलाके में कोई आग नहीं है, फिर भी राजधानी में आग का शोर मचा दिया. यह एंटीनेशनलों का षडयंत्र नहीं तो और क्या है?

आखिर में एक बात और. दिल्ली जलने का बढ़ा-चढक़र शोर मचाना और महाराज ट्रम्प के सामने शोर मचाना तो खैर एंटीनेशनलों का षडयंत्र था ही, लेकिन यह शोर मचाने के लिए कूड़ाघर में आग लगाकर धुंआ उठाना भी इन एंटीनेशनलों का ही षडयंत्र था. नहीं, हम कपिल मिश्र की बात नहीं कर रहे हैं, वह बेचारे तो सिर्फ रास्ता खोलने की विनती करने गए थे. चुनाव में हारने से क्या हुआ, पापुलर लीडर हैं सो उनके साथ उनके सैकड़ों चाहने वाले भी विनती करने के लिए पहुंच गए, तो क्या यह उनका कसूूर हो जाएगा? मिश्र पर या उनके चाहने वालों पर या परवेश वर्मा पर या अनुराग ठाकुर पर या गिरिराज सिंह पर या शाह साहब पर या मोदी जी पर, आग लगाने का इल्जाम लगाना, सरासर गलत है. आग लगाई है उन्होंने जो संसद के बनाए सीएए कानून का विरोध कर रहे हैं, जो मोदी सरकार के बनाए बिना ही एनआरसी कानून का विरोध कर रहे हैं, जो सिर्फ छ:-आठ नए सवाल जोड़े जाने के लिए, एनपीआर का विरोध कर रहे हैं. ये एंटीनेशनल तो दोबारा चुनकर आने के बाद भी, मोदी सरकार के फैसलों का विरोध कर रहे हैं. ना विरोध करने वाले विरोध करते, ना हिंदू राष्ट्र बनाने वालों को विरोध के विरोधी मैदान में उतारने पड़ते और न शाह साहब की पुलिस को विरोध के विरोधियों के पीछे खड़ा होना पड़ता. फिर तो पर्यावरण का ख्याल कर के कूड़ा-करकट तक नहीं जलता. खैर जो हुआ सो हुआ, जैसाकि रॉबिनहुड जी ने कहा, विरोध को मिटाने के जरिए मोशा जी अब झगड़े की जड़ ही मिटा रहे हैं. यही तो असली राजधर्म है.


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