निवेश में 14 साल की रिकॉर्ड गिरावट, फंड की कमी से जूझ रही हैं परियोजनाएं


industrial output decreases by 0.3 percent in December 2019

 

चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में पिछले 14 साल में सबसे कम निवेश हुआ है. निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों की ज्यातादर प्रमुख सेक्टर में यह कमी देखने को मिली है. सेंटर फॉर मोनेटरिंग इंडियन इकॉनोमी(सीएमआईई) की ओर से जारी डाटा के मुताबिक, भारतीय कंपनियों ने सितंबर तिमाही की अपेक्षा दिसंबर महीने की अंतिम तिमाही में 53 फीसदी कम निवेश किया है. निजी क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष 2018 की तुलना में चालू वित्त वर्ष 2019 में 55 फीसदी कम निवेश हुआ है.

प्राइवेट कंपनियों ने नई परियोजना को शुरू करने में कम दिलचस्पी दिखाई है. नई परियोजनाओं के शुरू होने में इस साल लगातार गिरावट देखने को मिली है. चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही की तुलना में दिसंबर तिमाही में 64 फीसदी नए प्रोजेक्ट शुरू हो पाए. वित्तीय वर्ष 2018 की अंतिम तिमाही की तुलना में चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 64 फीसदी की गिरावट आई है.

अंग्रेजी बिजनेस अखबार द मिंट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र में भी नई परियोजनाओं की शुरुआत धीमी रही है. सार्वजनिक क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2019 में पिछले साल की तुलना में 50,604 करोड़ रुपया कम निवेश हुआ है. वित्तीय वर्ष 2019 की सितंबर तिमाही की तुलना में दिसंबर तिमाही में 37 फीसदी की कमी आई है. पिछले वित्तीय वर्ष 2018 में इसी तिमाही की तुलना में यह 41 फीसदी कम है.

हालांकि पिछले कई साल से मंदी में चल रहे विनिर्माण सेक्टर में मामूली सुधार आया है.

जानकारों के मुताबिक बैंको की माली हालत, लोकसभा चुनाव को लेकर नीतिगत बदलावों की आशंका और पुरानी परियोजनाओं की प्रगति की धीमी रफ्तार ने निवेश को प्रभावित किया है.

सीएमआईई की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर तिमाही में चालू परियोजनाओं की लागत बढ़ने के बावजूद काम में तेजी नहीं आ पाई है.

प्राइवेट सेक्टर में 24 फीसदी परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाईं हैं. सार्वजनिक क्षेत्रों की परियोजनाओं में हुई प्रगति की वजह से सुधार आया है. यह करीब 11 फीसदी है.

ऊर्जा और निर्माण सेक्टर की परियोजनाएं अब भी धीमी रफ्तार से जूझ रही हैं. ऊर्जा सेक्टर की 35.4 फीसदी परियोजनाएं अधूरी हैं. वहीं, निर्माण सेक्टर की 29.2 फीसदी परियोजनाओं का काम पूरा नहीं हो पाया है.

फंड और ईंधन की कमी, कच्चे माल का अभाव और बाजार की माली हालत की वजह से ज्यादातर परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाई है.  बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की माली हालत की वजह से ज्यादातर परियोजनाओं को फंड नहीं मिल पा रहा है.

जानकार मानते हैं कि ठप पड़ी परियोजनाएं भारत की अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकती हैं. केन्द्र की मोदी सरकार विकास को गति देने के वादे के साथ सत्ता में आई थी.  वह पूरा होता नहीं दिख रहा है. लोन माफी जैसी योजनाओं की वजह से सरकार पहले से दबाव में है और टिकाऊ बदलाव की मंशा और हालात दोनों से दूर दिखती है.


Big News