आदिल अहमद डार: सूफीवाद से आतंकवाद तक


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आदिल अहमद डार वो नाम है जो शायद इस समय हर भारतीय के दिलो-दिमाग में एक खलनायक की तरह घूम रहा है. सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवानों की जान लेने वाला ये आत्मघाती, आतंकवाद की तरफ रुख करने से पहले इस्लाम की उस शाखा से जुड़ा था, जो अपने उदार विचारों के लिए जानी जाती है.

टेलीग्राफ ने आदिल के जीवन के इस पहलू पर एक लेख लिखा है. आदिल के परिवार के मुताबिक, आतंकवादी संगठन जैश से जुड़ने से पहले वह इस्लाम की सूफी विचारधारा बरेलवी आंदोलन से जुड़ा हुआ था.

आश्चर्य की बात ये है कि आतंकवादी संगठन जैश देवबंदी विचारधारा से प्रभावित है. ऐसे में बरेलवी विचारधारा से जुड़े हुए लोगों को इसे अपने साथ जोड़ने की बात थोड़ा असहज कर देने वाली है. बरेलवी आंदोलन अतिवादी विचारों को फैलाने के लिए नहीं जाना जाता. ये अपेक्षकृत शांतिपूर्ण माना जाता रहा है.

बरेलवी विचारधारा को मानने वाले लोगों और देवबंदी में विश्वास करने वालों में घोषित बैर का लंबा इतिहास रहा है. हालांकि आदिल के गांव में ज्यादातर लोग बरेलवी विचारधारा से प्रभावित हैं. यहां आतंकवाद से जुड़े हुए लोगों का भी इतिहास है. आदिल से पहले उसका चचेरा भाई मंजूर अहमद भी लश्कर का आतंकवादी था. साल 2016 में हुई एक मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई थी.

कुछ कश्मीरी मानते हैं कि जैश के समूह में कुछ ऐसे लोग भी जुड़ चुके हैं जिनका सूफी विचारधारा से संबंध है.

टेलीग्राफ आदिल के एक संबंधी के हवाले से लिखता है कि आदिल धार्मिक झुकाव वाला युवक था. उसका झुकाव बरेलवी विचारधारा की ओर था. कभी-कभी वो प्रार्थना की अगुआई भी करता था.

अंग्रेजी समाचार एजेंसी रॉयटर अपने संवाददाता के हवाले से लिखती है कि कश्मीर के लेथीपोरा गांव का रहने वाला 20 वर्षीय आदिल सुरक्षा बलों की पिटाई के बाद आतंकवाद की तरफ मुड़ गया.

एजेंसी ने आदिल के पिता गुलाम हसन डार से बातचीत की. गुलाम हसन ने कहा, “हम भी उसी तरह दुख में हैं जिस तरह से सैनिकों के परिवार दुख में हैं.” उन्होंने कहा कि उनका बेटा उस घटना के बाद आतंकवाद की राह पर चल पड़ा जब 2016 में स्कूल से लौटते समय पुलिस ने उसे रोक लिया.

गुलाम कहते हैं, “आदिल और उसके दोस्तों को दस्तों ने रोका और उनकी पिटाई की, उन पर पत्थर फेंकने का आरोप लगाया गया. तब से वो आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़ना चाहता था.” आदिल की फहमीदा भी उसके पिता की बातों को ही दोहराती हैं. वो कहती हैं कि जब से आदिल को सुरक्षा बलों ने पीटा तब से ही उसके मन में सैनिकों को लेकर गुस्सा था.

आदिल के माता-पिता के मुताबिक उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने बताया कि बीते साल 19 मार्च से आदिल घर वापस नहीं लौटा. वो मजदूरी करता था.

आदिल की मां फहमीदा कहती हैं, “हमने तीन महीने तक उसे खोजा, लेकिन जब उसका कोई पता नहीं चला तो हमने उसे वापस लाने की कोशिशें छोड़ दी.”

इस हमले के बाद भारत में पाकिस्तान को लेकर गुस्सा फूट रहा है. उस पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप है. हालांकि पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार कर रहा है. उसके मुताबिक भारतीय राजनेता पाकिस्तान पर आरोप लगाकर राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं.


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