आखिर पांच खरब डॉलर की यह अर्थव्यवस्था किसके लिए?


Rupee falls below 72 mark against US dollar on fund outflows

 

देश में सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले शख्स को प्रति मिनट 2,907 रुपये मिलता है जबकि सबसे कम न्यूनतम वेतन पाने वाले कामगार को एक दिन में 115 रुपये ही मिल पाता है. अब उसी भारत को साल 2025 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात की जा रही है.

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार को विशाल राजनीतिक जनादेश मिला है, जो उच्च आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं के लिये शुभ है.

हम भी चाहते हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था दिन दूनी रात चौगुनी की गति से बढ़े लेकिन आम जनता को भी इसका लाभ मिले यह हमारी मंशा है.

गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अप्रैल 2018 जो आकड़े जारी किए थे उसके अनुसार बार्कलेज-हुरुन इंडिया का कहना है कि देश के कुल 831 रईसों के पास 719 अरब डॉलर की संपदा है जो देश के सकल घरेलू उत्पादन का एक चौथाई है. जाहिर है कि विकास का लाभ चंद लोग अपने मुठ्ठियों में समेटे हुए हैं तथा देश की बहुसंख्य आबादी रोजी-रोटी की तंगी में दिन काट रहें हैं. भारत को पांच खरब अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए संक्षिप्त रोडमैप भी आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में दिया गया है. कहा गया है कि भारत को उच्च मध्यम आय समूह में प्रवेश के लिए प्रति व्यक्ति वास्तविक जीडीपी 5000 डॉलर बढ़ाने के लिए प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत ढाई गुणा बढ़ाने की आवश्यकता है.

अर्थव्यवस्था तथा उसके आकड़ों के मकड़जाल में उलझकर विकास और उसके लाभ को समझना आम लोगों के वश की बात नहीं है. इसलिए हम सीधे-सीधे तौर पर व्यक्ति के जीवनस्तर को ऊपर उठाने के लिए जरूरी आय तथा संचित संपदा के नज़रिये से इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि वर्तमान में विकास का जो दावा किया जा रहा है उसमें आम जनता की कितनी हिस्सेदारी है तथा जनता के हाथ में कितनी संपदा संचयित हो पाई है.

वर्तमान में अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या है. संसद में बजट पेश करते हुए केन्द्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि पांच साल पहले भारत की अर्थव्यवस्था 1.85 खरब डॉलर की थी जो आज 2.7 खरब डॉलर की हो गई है. इसी के साल 2024-25 तक 5 खरब डॉलर हो जाने की बात की जा रही है. इससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि बकौल वित्त मंत्री मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था में 0.85 ख़रब डॉलर की वृद्धि हुई है.

खुद इस आर्थिक सर्वेक्षण के 11वें अध्याय में ‘Redesigning a Minimum Wage System in India for Inclusive Growth’ में विस्तार से बताते हुये स्वीकार किया गया है कि देश में कामगारों को मिलने वाली न्यूनतम वेतन की स्थिति कैसी है. जिसके अनुसार नगालैंड में न्यूनतम वेतन 115 से 135 रुपये प्रतिदिन है. तमिलनाडु में यह 132 से 419 रुपये प्रतिदिन है. इसी तरह से पश्चिम बंगाल में 166-410 रुपये, महाराष्ट्र में 202-596 रुपये, राजस्थान में 213-283 रुपये, छत्तीसगढ़ में 240-428 रुपये, केरल में 287-1192 रुपये, गुजरात में 304-329 रुपये तथा दिल्ली में 538-710 रुपये हैं.

इस तरह से देश में सबसे कम न्यूनतम वेतन नगालैंड में 115 रुपये तथा सबसे ज्यादा केरल में 1192 रुपये है.

अब देखते हैं कि देश में सबसे ज्यादा वेतन पाने वालों की क्या स्थिति है. अगस्त 16, 2017 को startupstories में साल 2016-17 में सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले 10 लोगों की सूची छपी थी. जैसे-जैसे आप सबसे ज्यादा वेतन पाने वालों से संबंधित आकड़ें देखेंगे तो पता लगेगा कि विकास के तमाम दावों के बावजूद देश में एक तरफ मुठ्ठीभर लोग कुबेर के समान धन कमाते हैं जबकि दूसरी तरफ बहुसंख्य आबादी सुदामा सा कठिन जीवन जीने को मजबूर है.

साल 2016-17 में सबसे ज्यादा वेतन टेक महिन्द्रा के सीईओ सीपी गुरनानी को मिला था. यह साल में 150.7 करोड़ रुपये था. अब इस आकड़ें को लेकर जरा सी कसरत कर लेते हैं. ऐसा करने पर हम पाते हैं कि उन्हें साल में 1,50,70,00,000 रुपये मिले, जोकि प्रतिमाह के हिसाब से 12,55,83,333 रुपये तथा प्रतिदिन के हिसाब से 41,86,111 रुपये का था. और आगे बढ़ने पर हम पाते हैं कि उन्हें प्रति घंटे 1,74,421 रुपये, प्रति मिनट 2,907 रुपये और प्रति सेकेंड 48 रुपये मिले. जबकि हमने पहले ही बता दिया था कि देश में सबसे कम न्यूनतम वेतन 115 रुपये प्रतिदिन का है.

देश में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले रहे सन टीवी के कलानिथी मारन. उन्हें साल में 62,00,00,000 रुपये तथा प्रतिमाह 5,16,66,666 रुपये मिले. यदि इसकी गणना प्रतिदिन के आधार पर की जाये तो वह प्रतिदिन 17,22,222 रुपये का बैठता है.वहीं यह वेतन प्रति घंटे 71,759 रुपये और प्रति मिनट 1,195 रुपये तथा प्रति सेकेंड 19 रुपये का था.

इसी तरह से तीसरे नंबर पर रहे हीरो मोटोकॉर्प के सीईओ पवन मुंजल. पवन मुंजल को साल में 60,00,00,000 रुपये वेतन के रूप में मिले जिसे प्रतिमाह के हिसाब से गणना करने पर यह 5,00,00,000 रुपयों का होता है. उन्हें प्रतिदिन 16,66,666 रुपये, प्रति घंटे 69,444 रुपये, प्रति मिनट 1,157 तथा प्रति सेकेंड 19 रुपये वेतन के रूप में मिले.

उसी साल सबसे ज्यादा वेतन पाने वालों में 10वें नंबर पर रहे रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी. उन्हें साल 2016-14 में 15,00,00,000 रुपये, प्रतिमाह 1,25,00,000 रुपये, प्रतिदिन 4,16,666 रुपये, प्रति घंटे 17,361 रुपये, प्रति मिनट 289 रुपये तथा प्रति सेकेंड चार रुपये वेतन के रूप में मिले थे.

देश में सबसे ज्यादा न्यूनतम वेतन केरल में 1192 रुपये प्रतिदिन का है जबकि टेक महिन्द्रा के सीईओ सीपी गुरनानी को प्रतिदिन 41,86,111 रुपये मिलता है जो करीब 3511 गुना है. इससे जाहिर होता है कि देश में चाहे धुंआधार विकास हो रहा हो परन्तु देश के बाशिंदों के आय में बहुत बड़ी असमानता है. यह तो हुआ आय या वेतन की बात. अब जरा संपदा की हालत भी देख ले कि किसके पास कितना माल है.

25 सितंबर 2018 को बार्कलेज-हुरुन इंडिया की अमीरों की सूची जारी हुई. जिसके अनुसार एक हजार करोड़ रुपये से अधिक संपत्ति वाले लोगों की संख्या 2018 में 831 पर पहुंच गई. अमीरों की यह संख्या 2017 के अमीरों की तुलना में 214 अधिक है जिसमें 34 फीसदी दर से इजाफा हुआ है. इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी सबसे ऊपर हैं.

हुरुन इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य शोधार्थी अनस रहमान जुनैद ने कहा कि अमीरों की सूची में शामिल होने वाले नये लोगों की संख्या के आधार पर भारत सबसे तेजी से वृद्धि करता हुआ देश है. पिछले दो साल में यहां 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाले धनाढ्यों की संख्या करीब दोगुनी होकर 339 से बढ़कर 831 तक पहुंच गई.

गौर करेंगे कि हुरुन इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य शोधार्थी अनस रहमान जुनैद ने क्या कहा था, “……अमीरों की सूची में शामिल होने वाले नए लोगों की संख्या के आधार पर भारत सबसे तेजी से वृद्धि करता हुआ देश है.” यही वह तथ्य है जिसकी ओर हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते थे. जाहिर है कि विकास तो हो रहा है परन्तु वह मुठ्ठीभर लोगों तक सिमटकर रह गया है. क्या जब हमारा देश पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला हो जाएगा तब क्या स्थिति में बदलाव आएगा.

वर्तमान में देश जिस राह में अग्रसर है उससे तो हरगिज भी यथास्थिति में बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है. उल्टे गरीब और गरीब होते जा रहें हैं और लोगों की क्रयशक्ति लगातार घट रही है. स्थिति इससे भी भयावह न हो जाए असल डर इस बात का है.


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