यौन सम्बन्ध के लिए सहमति देने की उम्र 16 वर्ष करने की जरूरत: हाई कोर्ट
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि 16 साल के बाद किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को पोक्सो एक्ट के कड़े प्रावधानों से बाहर रखना चाहिए. कोर्ट ने सलाह दी है कि पोक्सो एक्ट के तहत ‘बच्चे’ की उम्र का मानक 18 साल के बजाय 16 साल होना चाहिए.
कोर्ट ये बात बच्चों के अधिकार की सुरक्षा के लिए गठित राज्य आयोग की रिपोर्ट के संज्ञान में कर रहा था. राज्य आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए गए ज्यादातर मामले किशोर लड़के-लड़कियों के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों के चलते दर्ज होते हैं.
इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट एक नाबालिग की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इस नाबालिग को पोक्सो एक्ट के तहत 10 साल कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है.
पोक्सो एक्ट की धारा 2(डी) के तहत ‘बच्चे’ को परिभाषित किया गया है. यहां 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चे की श्रेणी में रखा गया है. इस अधिनियम के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की का संबंध किसी लड़के के साथ होने पर लड़के पर पोक्सो एक्ट के तहत दण्ड का निर्धारण होता है.
अगर शारीरिक आकर्षण से प्रभावित होकर किसी लड़के और लड़की के बीच आपसी सहमति से ऐसे संबंध बनते हैं तो लड़के पर पोक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई होती है. जहां नियमों के मुताबिक उसे कम से कम सात या 10 साल की सजा होना निश्चित है.
मामले की सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि ऐसे मामलों में जब लड़की की उम्र 18 साल से कम है और लड़के की उम्र 18 या उससे थोड़ा अधिक है तो उनके बीच संबंधों को परिभाषित करना हमेशा बड़ा कठिन सवाल होता है.
जज ने कहा कि ऐसे संबंध दोनों की नासमझी और जैविक आकर्षण के चलते बनते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे संबंधों को हमें अप्राकृतिक मानकर नहीं चलना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि एक्ट में इस रूप में सुधार किया जा सकता है कि सामने वाले की उम्र लड़की की उम्र से पांच साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. जबकि सहमति के लिए लड़की की उम्र 16 साल या अधिक हो. इस तरह से कोई ज्यादा उम्र का व्यक्ति लड़की की उम्र का फायदा नहीं उठा पाएगा.
जज ने कहा कि इस सलाह पर अमल करने से पहले सभी हितधारकों से बातचीत होनी चाहिए. इसके बाद ही प्राधिकारियों को पोक्सो एक्ट में सुधार करने के बारे में कुछ सोचना चाहिए.