चीन से आयात किए जाने वाले उत्पादों की सूची तैयार कर रहा है भारत, आयात शुल्क में कोई रियायत नहीं


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भारत चीन से आयात करने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने के लिए सूची तैयार कर रहा है. भारत यह कदम प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के मद्देनजर उठाने जा रहा है.

मामले की आधिकारिक जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, ‘सरकार कुछ समय से इस तरह की सूची बना रही है. यह योजना दोनों देशों द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए शुल्क पर आधारित है. चीन ने भारत के इस कदम का बहिष्कार किया है. चीन के अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी इस कदम का बहिष्कार किया है.’

नाम ना बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘चीन से आयात करने की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए देखें तो ये स्थिति लगातार बनी रही है इसलिए एक व्यापक सूची तैयार की जा रही है.’

उन्होंने यह भी बताया कि सूची अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है और इस बनाने में घरेलू उद्योगों से व्यापक परामर्श किया जा रहा है.

आरसीईपी भारत के लिए सबसे महत्वकांक्षी समझौता है जिसके लिए चर्चा जारी है.

आरसीईपी एक ऐसा प्रस्तावित व्यापार समझौता है जो दस देशों के बीच होना है. इसमें दस आसियान सदस्य (ब्रुनेई , कंबोडिया , इंडोनेशिया , लाओस , म्यामांर , फिलिपीन , सिंगापुर , थाइलैंड और वियतनाम हैं.) और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार आस्ट्रेलिया , चीन , भारत , जापान , दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. इस समूह के साथ आने से 25 फीसदी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, 30 फीसदी वैश्विक व्यापार, 26 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और 45 फीसदी विश्व की आबादी पर प्रभाव पड़ेगा.

अब तक 28 बार इस समझौते को लेकर बातचीत हो चुकी है. इसके अलावा 8 मंत्रीय बैठक भी हो चुकी है.

अन्य देशों के वरिष्ठ राजनयिक सूत्रों ने पुष्टी की है कि आयात शुल्क घटाने की जिम्मेदारी अब हर एक देश पर व्यक्तिगत रूप से लागू होगी. इसका नतीजा ये होगा कि एक देश दूसरे देश के लिए शुल्क में कटौती निर्धारित कर सकेगा.

सूत्रों के मुताबिक भारत सिर्फ चीन के खिलाफ आयात शुल्क तय करने जा रहा है. यह पहली बार है जब भारत किसी भी व्यापार समझौते में इस तरह शुल्क तय करने जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक इस तरह के प्रस्ताव का बहिष्कार पहले भी अन्य देश कर चुके हैं. इससे पहले भारत सभी देशों के लिए 76 फीसदी सभी उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने के लिए राजी हो गया था. इसमें सिर्फ चीन एक ऐसा देश है जिसके लिए भारत ने एक अलग शुल्क सीमा तय की थी. अन्य देशों ने मांग की थी कि भारत यह शुल्क को घटाकर 90 फीसदी उत्पादों पर कर दे.

फिलहाल आरसीईपी देशों के बीच यह समझौता हुआ है कि शुरुआत में 28 फीसदी व्यापार उत्पादों पर लगने वाले आयात शुल्क को समाप्त करना होगा. इसके बाद 35 फीसदी उत्पादों पर लगने वाला आयात शुल्क समाप्त किया जाएगा.

अधिकारियों के मुताबिक आखिरी समझौता होने तक लगभग सभी तय करने वाले देश शामिल हो जाएंगे.

भारत के संदर्भ में कई देशों ने बार-बार पूछा है कि क्या भारत इस व्यापार समझौते पर दस्तखत करने के लिए गंभीर है. आसियान देशों के वरिष्ठ नेता, जिसमें मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद शामिल हैं, ने कहा था कि फिलहाल के लिए एशिया-पैसिफिक समझौता भारत के बिना किया जा सकता है.

आरसीईपी समझौते को लेकर सरकार किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती है. इससे यह होगा कि कुछ मुद्दों पर सहमती होने के बाद समझौते पर दस्तखत हो जाएगा और कुछ मुद्दों पर धीरे-धीरे समझौता होने के लिए बातचीत होती रहेगी.

ऑस्ट्रेलिया के व्यापार वार्ताकार जेम्स बक्सटर ने कहा कि बैंकॉक में हुई आखिरी मंत्रीय बातचीत में सभी व्यापारिक मंत्रियों ने सर्वसम्मती से नवंबर तक समझौते को पूरा करने के लिए सहमती जताई है.

वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘जब तक भारत का घरेलू उद्योग और हमारा राष्ट्र हित सुरक्षित है तब तक जितना जल्दी आरसीईपी हो सके उतना ही भारत के लिए अच्छा है.’

शुक्रवार को सरकार ने आरसीईपी सदस्यों के देश ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और अन्य देशों के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय व्यापार और आर्थिकल एकीकरण के मुद्दे पर पूरे दिन बातचीत की.

सरकारी अधिकारियों ने कहा कि सभी देशों के प्रतिनिधि व्यापार समझौते के लिए हफ्ते के आखिर में लंबित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं.

हालांकि इस बातचीत में देशों के प्रमुख नहीं शामिल होंगे इसलिए संयुक्त रूप से बयान जारी नहीं किया जाएगा.


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