सैन्यकर्मियों को सोशल मीडिया ग्रुप से दूर रहने की सलाह


Central Government sent ten thousand soldiers of Central forces to Kashmir

 

भारतीय सेना ने अपने अधिकारियों और जवानों को बड़े सोशल मीडिया समूहों से जुड़ने को लेकर आगाह किया है. सेना ने कहा है कि व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बड़े समूहों में ज्यादातर लोग अनजान होते हैं, सैनिकों को इनसे जुड़ने से बचना चाहिए.

सेना की ये चेतावनी उसकी समय-समय पर सभी रैंकों को दी जाने वाली सलाह का हिस्सा है. इसमें सूचना और साइबर सुरक्षा के साथ ही कंप्यूटर प्रयोग के लेकर नियम जारी किए जाते हैं.

सेना के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि दो पेज की इस एडवर्जरी का मकसद सैन्य कर्मचारियों को हनी ट्रैप जैसी समस्याओं में फंसने से बचाना है. कई बार अनजाने में सैन्य गतिविधियों की जानकारी सेना से लीक हो जाती है, जो विरोधियों को सहायता पहुंचाती है.

सैन्यकर्मियों से ये भी कहा गया है कि वे नेटवर्किंग वेबसाइटों पर अपनी प्रोफाइल तस्वीर ना डालें और ना ही सैन्य दस्तों के साथ अपने संबंधों को जाहिर करें.

हालांकि इन नए नियमों को लेकर कई तरह के मत सामने आ रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि बड़े समूहों में ना जुड़ने देने का मकसद खराब सेवाओं की आलोचना करने और अपने विचारों को पूर्व सैनिकों के साथ साझा करने से रोकना है.

एक अधिकारी ने बताया, “पूर्व सैनिक सेना का हिस्सा हैं. इनमें से ज्यादातर सेना से संबंधित नीतियों की खुलकर आलोचना करते हैं. जैसा कि अभी हाल में सैनिकों की विकलांगता पेंशन को टैक्स के दायरे में लाने वाले सरकारी फैसले को लेकर हो रहा है.”

सेना द्वारा इस तरह की एडवर्जरी जारी करने का मकसद सूचना और सैनिकों की सुरक्षा रहा है. अधिकारी ने बताया, “विरोधी हमेशा ही इस ताक में रहते हैं कि किस तरह से ऐसे समूहों के माध्यम से गुप्त सूचना को हासिल किया जाए. वे प्रयोगकर्ता से सूचना हासिल करने के लिए मॉलवेयर और पहचान छिपाने जैसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं.”

पाकिस्तानी और चीनी खुफिया एजेंट हमेशा ही भारतीय कम्प्यूटर प्रणाली को हैक करने का प्रयास करते रहते हैं. खुफिया सूचना पाने के लिए वे कई तरीकों का प्रयोग करते हैं.

कई बार सैनिक इसमें फंस भी जाते हैं. इसके कई उदाहरण मौजूद हैं, जब सैनिकों को खुफिया सूचनाएं लीक करने के आरोप में कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा है.


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