खंडहर में बदल रहा तख़्त-ए-अकबरी
बेशक पंजाब का ज़िला गुरदासपुर ‘करतारपुर कॉरिडोर’ की वजह से चर्चा में रहा है लेकिन इस ज़िले को एक और वजह से भी हमेशा याद किया जाएगा. इसका अहम ऐतिहासिक महत्व है, जिसपर वक़्त की धूल पड़ चुकी है.
चौदह फरवरी, 1556 को यहां के क़स्बा कलानौर में मुगल सम्राट अकबर की ताजपोशी हुई थी. लेकिन अकबर की ताकत से गूंजने वाले इस इलाके में आज उसका ताजपोशी स्थल खंडहर में बदल रहा है. आज़ादी के बाद तक भी कलानौर ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर याद किया जाता था और यहां के बाज़ार आबाद रहते थे. इसके बारे में कहा जाता था ‘जिसने नहीं देखा लाहौर वो देखे कलानौर…’
धुंध की चादर में लिपटे हुए कलानौर के बाशिंदे अपने रोज़मर्रा के काम निपटा रहे थे. किसी से भी अकबर के ताजपोशी स्थल के बारे में पूछो तो लोगों को जानकारी नहीं. इस स्थान तक जाने के लिए कहीं कोई साइन बोर्ड तक नहीं लगा.
बहुत मगजमारी के बाद एक स्थानीय पत्रकार की मदद से यहां पहुंचा गया. एक गांव से अंदर की ओर जा रही पगडंडी के ज़रिये कच्चे रास्तों और कीचड़ से होते हुए वह हमें तख़्त-ए-अकबरी यानी अकबर के ताजपोशी स्थल पहुंचे.
Pic Credit: Manisha Bhalla
अकबर की ताजपोशी और कहानियों के गवाह के तौर पर यहां सिर्फ एक प्लेटफॉर्म बना हुआ है. आसपास दूर दूर तक कुछ नहीं. चारों ओर सुनसान खेतों के बीच इस जगह का पता लगाना बहुत मुश्किल है.
पास ही खेतों में काम कर रहे जसविंदर सिंह बताते हैं कि तख्त देखने के लिए कभी-कभी बहुत दूर-दूर से लोग यहां आते हैं लेकिन यहां आकर बहुत परेशान होते हैं. यहां खाना-पीना रहना तो दूर – दूर तक नहीं, यहां पहुंचना ही बहुत मुश्किल है.
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गुरदासपुर में रह रहे इतिहासकार राजकुमार शर्मा का कहना है कि वर्ष 1556 में बादशाह अकबर बैरम खान के साथ कलानौर में रुके हुए थे. बैरम खान को 26 जनवरी 1556 को जब हुमायूं मौत की खबर मिली तो उन्होंने यहां कुछ ईंटों का चबूतरा बनाया और अकबर को वहां बिठा शाही रस्मो रिवाज़ से उनकी ताजपोशी कर दी.
पत्रकार शाज़ी ज़मां के उपन्यास अकबर में लिखा है, “हुमायूं की मौत की खबर को गुप्त रखा गया. उनके जैसा ही दिखने वाला कोई और व्यक्ति झरोखे से दर्शन देता था. जिससे लगता था कि हुमायूं ज़िंदा है. पंजाब के कलानौर में अकबर की ताजपोशी के ठीक बाद हुमायूं की मौत को सार्वजनिक किया गया.”
उस वक़्त अकबर 14 वर्ष के थे. किसी भी ऐसी धरोहर के रखरखाव की जितनी ज़िम्मेदारी सरकार या संबंधित विभाग की होती है उतनी है वहां के लोगों की भी होती है. जहां के लोगों को ही अपने इतिहास से प्रेम नहीं,कोई लेना देना नहीं है तो और किससे उम्मीद रखी जाए. तख़्त-ए-अकबरी के पास रहने वाले जसविंदर सिंह का कहना है कि हमें अपने पशुओं और खेती से ही फुरसत नहीं है.
Pic Credit: Manisha Bhalla
ऐसे जीते जागते इतिहास को विदेशों में कैसे संजोया जाता है हम जानते हैं. लेकिन हमारे यहां सुनसान जगह पर ऐसी धरोहर खंडहर हो रही है.
पंजाब के पर्यटन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कुछ अरसा पहले घोषणा की थी कि हमें गर्व है कि बादशाह अकबर की ताजपोशी इस स्थान पर हुई थी. इसे विकसित करने के लिए पंजाब सरकार 15 करोड़ रुपया खर्च करेगी और आसपास के किसानों की कुछ ज़मीन भी लेगी. लेकिन ज़मीन पर इस सिलसिले में कुछ नहीं हुआ.
इस बारे में जब पंजाब पर्यटन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर रविंदर सिंह अरोड़ा से बात की गई तो उनका कहना है कि तख़्त-ए-अकबरी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का प्रोटेक्टेड मॉन्यूमेंट है. हमारे पास तख्त ए अकबरी के रखरखाव को लेकर दो करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार है. लेकिन इस बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को हमें आज्ञा देनी होगी, जिसके बारे में हमने उन्हें लिखकर दे रखा है.