पाकिस्तानी सेना की तारीफ को लेकर अरुंधति रॉय ने माफी मांगी


arudhati roy apologises for her remark on pakistani army

 

मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय ने अपनी 2011 की उस टिप्पणी को लेकर माफी मांगी है, जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान की सेना की तुलना करते हुए कहा था कि जिस तरह से भारत ने कश्मीर, उत्तर-पूर्व, तेलंगाना और गोवा में अपने ही लोगों के खिलाफ सेना को तैनात किया, उससे इतर पाकिस्तान ने कभी भी अपनी सेना को अपने लोगों के खिलाफ तैनात नहीं किया.

वेबसाइट ‘दि प्रिंट’ के साथ अपना बयान साझा करते हुए अरुंधति रॉय ने स्पष्ट किया कि जीवन के किसी बिंदु पर लोग अनजाने में विचारहीन और बेवकूफी भरी बात कह देते हैं.

उन्होंने कहा कि इसके बाद भी यह वृहद परिणामों से जुड़ा मामला है और वे इस टिप्पणी से उपजे हो सकते क्षणिक भ्रम के लिए मांफी मांगती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि वे अपने लेखन के जरिए पाकिस्तान के कृत्यों के बारे में अपने विचारों को लेकर हमेशा स्पष्ट रही हैं.

हाल ही में रॉय की इस टिप्पणी को दर्शाता हुआ वीडिया सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. इसके बाद दोहरे मापदंडों को लेकर उनकी ट्विटर पर आलोचना हुई थी. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आलोचकों ने उनकी आलोचना करते हुए ट्विटर पर ट्रेंड भी चलाया था. पाकिस्तान के उनके प्रशंसकों ने भी कहा कि इस टिप्पणी ने उन्हें निराश किया था.

बांग्लादेश के अखबार ढाका ट्रिब्यून ने भी रॉय के इस बयान की निंदा करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

अखबार ने लिखा, “पाकिस्तान ने 1971 में हमारे लोगों के खिलाफ की गई ज्यादती को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. रॉय को लंबे समय से दबे-कुचले लोगों की बात को आगे बढ़ाने के शख्स के तौर पर जाना जाता है. उनके जैसी लेखिका की तरफ से पाकिस्तानी सेना द्वारा हमारे लोगों के खिलाफ किए गए अत्याचार को सिरे से नकार देना दुर्भाग्यपूर्ण है.”

अरुंधति रॉय का बयान-

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव जब खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, तब एक नौ साल पुरानी वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर तैर रही है. इस वीडियो में भारतीय राज्य द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध करने पर बात करते हुए मैं यह कहती हुई नजर आ रही हूं कि भारत की तरह पाकिस्तान ने कभी भी अपने लोगों के खिलाफ अपनी सेना का इस्तेमाल नहीं किया. यह वीडियो क्लिप ना तो मेरे विश्वास को और ना ही पिछले कई सालों में जो कुछ भी मैंने लिखा है, उसे प्रदर्शित करती है. हम सभी अपने जीवन में किसी बिंदु पर अनजाने में में विचारहीन और बेवकूफी भरी बात कह देते हैं. मैं एक लेखिका हूं, मेरे कहने से ज्यादा मेरे लेखन का महत्व है. इसके बाद भी यह वृहद परिणामों से जुड़ा मामला है और मैं इस टिप्पणी से उपजे हो सकते क्षणिक भ्रम के लिए मांफी मांगती हूं.

पाकिस्तान की सरकार बलूचिस्तान में क्या कर रही है और उसने बांग्लादेश में जिस जनसंहार को अंजाम दिया, उसके बारे में मेरे विचार कभी अस्पष्ट नहीं रहे. मैंने हमेशा इस बारे में खुलकर लिखा है. अपनी बात रखने के लिए मैं दो छोटे उदाहरण पेश कर रही हूं.

2017 में प्रकाशित मेरे उपन्यास ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ का एक प्रमुख किरदार बिप्लब दासगुप्ता, जिसने इंडियन इंटेलिजेंस ऑफिसर के रूप में कश्मीर में अपनी सेवाएं दीं, कहता है-

“यह सच है कि हमने कश्मीर में भयानक चीजें कीं, हम अभी भी करते हैं. लेकिन मेरा कहना है कि पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में क्या किया. अब साफ है कि वो जनसंहार था. जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश को आजाद कराया तो कश्मीरियों ने इसे ढाका का पतन बताया. कश्मीरी आज भी ऐसा कहते हैं. उन्हें दूसरों के दुखों की चिंता नहीं है. लेकिन, फिर किसे है? वो बलूच जिन्हें पाकिस्तानी सेना मार रही है, कश्मीरियों की चिंता नहीं करते. जिन बांग्लादेशियों को आजादी दिलाई गई, आज वे हिंदुओं को मार रहे हैं. अच्छे कम्युनिस्ट स्टालिन के गुलाग को क्रांति के लिए जरूरी बताते हैं. अमेरिकी वियतनाम के लोगों को मानवाधिकार के बारे में ज्ञान दे रहे हैं. असल बात ये है कि हममें से कोई भी मुक्त नहीं है.”

2010 में “वाकिंग विद कॉमरेड्स” शीर्षक से प्रकाशित निबंध में, जो 2019 में दोबारा प्रकाशित हुआ, मैं लिखती हूं-

जब चारू मजूमदार ने कहा, “चीन का चेयरमैन हमारा चेयरमैन है और चीन का रास्ता हमारा रास्ता है.” तब उन्होंने इस बात को भी सहमति दी कि जनरल याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान में जिस जनसंहार को अंजाम दिया, उसे लेकर नक्सलवादी चुप रहें. क्योंकि उस समय चीन पाकिस्तान का साथ दे रहा था. कंबोडिया में कम्युनिस्ट पार्टी ने जिन लोगों को मारा, उसे लेकर भी ये लोग चुप रहे. चीनी और रूसी क्रांति से जिन अतिरिक्त प्रबल ज्यादतियों को बल मिला, उसे लेकर भी ये चुप रहे और तिब्बत पर भी चुप रहे.

कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है, उस पर मेरे विचारों को लेकर यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हिंदू राष्ट्रवादी बांग्लादेश में हुए नरसंहार और पाकिस्तानी सेना द्वारा पाकिस्तान में किए गए कुकृत्यों की बात को नकारते हुए मेरे बयान को निकालकर आज मेरे खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जिस किसी ने भी मेरे लेखन को थोड़ा सा भी जाना है, वो इस बात में जरा सी भी देर के लिए विश्वास नहीं करेगा. मैं इसमें कतई विश्वास नहीं करती हूं कि भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी राज्य नैतिक रूप से एक-दूसरे से बेहतर हैं. भारत में इस समय विशुद्ध फासीवाद की संरचना तैयार कर दी गई है. जो कोई भी इसका विरोध करने की हिम्मत दिखाएगा, वो बदनामी, ट्रोल होने, जेल जाने और मारे जाने का खतरा उठाएगा. लेकिन इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी.


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