क्यों महाराष्ट्र के इन गांवों की ज्यादातर महिलाएं बिना गर्भाशय के हैं?


Children of farmers are getting short term jobs

  प्रतीकात्मक छवि

महाराष्ट्र का बीड जिला यूं तो सूखे के लिए जाना जाता है, लेकिन एक और वजह अब इसकी पहचान बन चुकी है. कुछ ऐसी पहचान जो इसके गांवों पर कलंक की तरह है.

इस जिले के गांवों में आप शायद ही कोई ऐसी महिला पाएं जिसका गर्भाशय अब तक सलामत हो. ज्यादातर महिलाओं ने अपने गर्भाशय को ऑपरेशन से निकलवा दिया है. आखिर ये महिलाएं अपने गर्भाशय को निकलवाने के लिए क्यों मजबूर हुई? इसी सवाल की पड़ताल करते हुए अंग्रेजी अखबार बिजनेस लाइन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.

बीड के वनजारवाड़ी गांव में 50 फीसदी से अधिक महिलाओं ने गर्भाशय को निकालने के लिए ऑपरेशन करवा रखे हैं. दो या फिर तीन बच्चों के बाद ये महिलाएं अपना गर्भाशय निकलवा रही हैं.

उदासी भरी आंखें लिए मंदा उगाल कहती हैं, “ये बिना गर्भाशय वाली महिलाओं के गांव हैं. आप यहां मुश्किल से ही कोई महिला पाएंगे जिसके गर्भाशय हो.” मंदा मराठवाड़ा क्षेत्र के हाजीपुर गांव में एक छोटे से घर में रहती हैं. वे बड़ी मुश्किल से ही इतने गंभीर विषय पर बात कर पा रही थीं.

बिना गर्भाशय वाली इन महिलाओं में ज्यादातर गन्ना काटने वाली मजदूर हैं. ये गन्ने के सीजन में पश्चिमी महाराष्ट्र के गन्ना बेल्ट कहे जाने वाले क्षेत्र में प्रवास के लिए चली जाती हैं. सूखे के चलते ये संख्या कई गुना बढ़ भी जाती है.

सत्यभामा ऐसी ही गन्ना काटने वाली मजदूर हैं. वे कहती हैं कि ठेकेदार ऐसी मजदूर महिलाओं को काम पर रखना पसंद करते हैं जिनके गर्भाशय ना हों. गन्ने के ठेकेदार पति-पत्नी से मजदूरी के लिए समझौता करते हैं, जिसमें दोनों को एक यूनिट माना जाता है.

गन्ने की कटाई के दौरान पति या पत्नी में से कोई भी अगर एक दिन की छुट्टी लेता है तो ठेकेदार उनसे 500 रुपये जुर्माने के तौर पर लेते हैं.

महिलाओं के मासिक धर्म (पीरियड्स) को काम में अड़चन के तौर पर लिया जाता है. ये जुर्माने की वजह भी बनता है. बस यही कारण है कि महिलाएं अपना गर्भाशय निकलवाने को मजबूर हैं.

इस बारे में सत्यभामा कहती हैं, “गर्भाशय निकलवाने के बाद पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं. इसलिए गन्ने की कटाई के दौरान छुट्टी लेने का कोई सवाल नहीं उठता. हम एक रुपये का घाटा भी बर्दाश्त  करने की स्थिति में नहीं हैं.”

ठेकेदार कहते हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को एक या दो दिन की छुट्टी चाहिए होती है, जिसके चलते काम रुक जाता है.

दादा पाटिल एक ठेकेदार हैं. वे कहते हैं, “हमें अपना काम एक निश्चित समय में ही पूरा करना होता है, इसलिए हम ऐसी महिलाएं नहीं चाहते जिनको पीरियड्स आते हों.”

पाटिल जोर देकर कहते हैं कि मैं या कोई दूसरा ठेकेदार किसी महिला पर ऑपरेशन कराने के लिए दबाव नहीं बनाता है. ये उनके परिवारों के ऊपर है कि वे इसे करवाते हैं या नहीं.

हालांकि इसके उलट महिलाओं ने ये माना कि ठेकेदार उन्हें ऑपरेशन कराने के लिए एडवांस में पैसा देते हैं, जो बाद में उनकी मजदूरी से वसूल लिया जाता है. इस तरह से महिलाओं को इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है.

अच्यूत बोरगांवकर, ‘तथापी’ नाम के एक संगठन से हैं. संगठन ने इस मुद्दे पर एक अध्ययन किया है. अच्यूत कहते हैं, “गन्ना काटने वाले समुदायों में पीरियड्स को एक समस्या के तौर पर लिया जाता है. ये ऑपरेशन को इससे निजात पाने के एक मात्र उपाय के रूप में देखते हैं. लेकिन कई बार इन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इनके स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे हार्मोन का असंतुलन, मानसिक विचलन, वजन का बढ़ना आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं. कई बार हमने देखा है कि 25 साल जैसी कम उम्र की महिलाएं भी ऐसे ऑपरेशन करवा रही हैं.”

सत्यभामा के पति बंदू उगाल इस बारे में विस्तार से बताते हैं. वे कहते हैं, “मान लो कोई दंपत्ति एक टन गन्ना काटने के लिए 250 रुपये पाता है, एक दिन में हम 3-4 टन गन्ना काटते हैं इस तरह से चार से पांच महीने की सीजन में हम करीब 300 टन गन्ना काट लेते हैं. हम सीजन में जितना कमाते हैं, उसी से हमारा परिवार पूरे साल गुजारा करता है. क्योंकि इसके बाद हमें कोई काम नहीं मिलता.”

बंदू कहते हैं, “इस दौरान हम एक दिन की भी छुट्टी लेने की हालत में नहीं होते हैं. हमें तब भी काम करना होता है जब हम बीमार होते हैं. इसमें पीरियड्स समस्या बन जाते हैं.”

इस बारे में बात करते हुए एक अन्य महिला वीलाबाई कहती हैं, “गन्ना काटने वाली महिला का जीवन नरक हो जाता है.” वो इन महिलाओं के शारीरिक शोषण की ओर भी इशारा करती हैं.

वे कहती हैं, “गन्ना काटने वालों को खेतों में फिर गन्ना मिलों के नजदीक टेंट लगाकर रहना पड़ता है. यहां किसी तरह के शौचालय आदि की व्यवस्था नहीं होती, ऐसे में पीरियड्स एक और समस्या के तौर पर सामने आते हैं.”

इस सूखे और वीरान से दिखने वाले इलाके की महिलाओं ने बताया कि तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद निजी डॉक्टर ऐसे ऑपरेशन के लिए हिचकते नहीं हैं.


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