एक नए असहयोग आंदोलन की शुरुआत


begining of a new civil disobedience

 

अभी मैं अपने घर के पास एक तूफान का प्रत्यक्षदर्शी रही हूं. जामिया के करीब 3000 छात्र नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सड़क पर हैं, जो भारत के संविधान के निधन का संकेत है.
हम अभूतपूर्व समय में जी रहे हैं क्योंकि यह कानून हमारे प्यारे भारत के मूल चरित्र को बदलने जा रहा है जो अनेकता में एकता के विचार पर आधारित है. यह अभूतपूर्व है क्योंकि यह हमारे संविधान और इसकी समतावादी भावना पर हमला है.

इसके अलावा हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब वर्तमान शासन ने सड़कों पर ना केवल फासीवाद को सामान्य किया है बल्कि संसद में भी नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किया है, जो समुदायों को धर्म के नाम पर विभाजित करता है. दूसरी ओर देश के लोगों ने अपने तरीके से प्रतिरोध शुरू किए हैं. हम असहयोग आंदोलन का पुनर्जन्म देख रहे हैं. छात्र और आम जनता देश के पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर मुख्य भूमि तक सड़कों पर मार्च कर रहे हैं.

लड़कियों और लड़कों को पीटा गया, लाठीचार्ज किया गया; आंसू गैस के जहरीलेपन से बचने के लिए कई चेहरे गीले कपड़े से ढंके हुए थे. विरोध दोपहर 2:30 बजे शुरू हुआ और जबकि मैंने 10 बजे रात को ये पंक्तियां लिखीं, मैं पास में बज रहे सायरन की कर्कश आवाज़ को सुन सकती थी. संसद में अपनी विभाजनकारी राजनीति और कानून के साथ सत्तारूढ़ शासन ने मुसलमानों को अलग-थलग करने और समाज को धर्म के नाम पर ध्रुवीकृत करने की अपनी पुरानी रणनीति पर काम किया है. लेकिन इस बार, क्या ये उल्टा पड़ गया है? इस कानून के विरोध ने उन सभी विभाजनों को पाट दिया है जो इस शासन के मूल सिद्धांत रहे हैं.

मेरा छोटा संगठन जो मुस्लिम और अन्य वंचित महिलाओं के लिए काम करता है, भारत का एक सूक्ष्म जगत है. इसमें एक हिंदू, दो मुस्लिम, दो पुरुष, दो महिलाएं- असम, मिजोरम, बिहार और यूपी शामिल हैं. आज सभी एक ही गान, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध का ही गा रहे हैं. हमने असम, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड की सड़कों पर हजारों वृद्ध और युवा लोगों को मार्च करते देखा है. अर्धसैनिक बलों को कश्मीर से भेजा गया था. पूर्वोत्तर में पुलिस और अर्धसैनिकों के सौजन्य से तीन लोग मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं.

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन, उनका क्या मतलब है? क्या सरकार की सांप्रदायिक प्रक्रिया एक पल के लिए भी रुकी है? क्या देश की आंतरिक विविधता ने बीजेपी और आरएसएस के हिंदुत्व प्रोजेक्ट को हरा दिया है? आज कई पहचान हैं जो एक ही सवाल पूछ रही हैं. यह बीजेपी और आरएसएस के भव्य डिजाइन के अनुसार कोई और हिंदू बनाम मुसलमान नहीं है, बल्कि ऐसे समुदायों के लोग हैं जो इस विभाजनकारी एजेंडे पर सवाल उठा रहे हैं.

अभूतपूर्व संकट के समय असाधारण साहस की आवश्यकता होती है

क्या कोई गांधी होगा? कम संभावना है. लेकिन आज मुझे एक मजबूत एहसास हुआ कि यह सभी धर्मों (जैसे कि मैंने अपने क्षेत्र में देखा) के युवा होंगे जो भारत को पुनः प्राप्त करने के लिए उठेंगे. मुझे लगता है कि अली सरदार जाफरी की एक कविता की कुछ पंक्तियां जोकि प्रतिष्ठित विद्रोही के ए ए अब्बास द्वारा बनाई गई फिल्म चार दिल चार राहें में हैं. अब्बास और सरदार दोनों ने एक नई सुबह का सपना देखा था, जो आज सड़कों पर मैंने देखा, जो युवाओं द्वारा अंजाम तक पहुंचाया जाएगा.

कदम कदम से दिल दिल से
मिला रहे हैं हम
वतन में एक नया चमन
खिला रहे हैं हम


Big News