हमें संभावित अमेरिका-ईरान युद्ध को हर हाल में रोकना होगा: बर्नी सैंडर्स


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अमेरिकी डेमोक्रेट नेता बर्नी सैंडर्स ने ईरान और अमेरिका के बीच संभावित युद्ध को हार हाल में रोकने की बात कही है. उन्होंने समाचार पत्र दि गार्डियन में लिखे एक लेख में इसको लेकर चिंता जाहिर की है.

उन्होंने लिखा है, वाशिंगटन में एक बार फिर से युद्ध का बिगुल बज रहा है. पर्शिया की खाड़ी में अमेरिकी ड्रोन पर हमले के बाद से हम लड़ाई के काफी करीब पहुंच चुके हैं.

बर्नी न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर का हवाला देते हुए कहते हैं कि पेंटागन पहले ही ईरान के साथ युद्ध के लिए मध्य-पूर्व में 120,000 सैनिक भेजने की योजना व्हाइट हाउस के सामने रख चुका है. और 1,000 अतिरिक्त सैनिक भेजे भी जा चुके हैं.

वे कहते हैं, हमें अपने इस फैसले पर एक बार फिर से विचार करने की जरूरत है. ईरान के साथ युद्ध असल में एक आपदा ही होगा. बर्नी के मुताबिक पूर्व जनरल एंथोनी जिन्नी कह चुके हैं, “अगर आप ईराक और अफगानिस्तान को पसंद करते हैं तो आप ईरान को प्यार करेंगे.”

अगर अमेरिका ईरान पर हमला करता है तो जवाब में ईरान अमेरिकी बेड़ों पर हमला करेगा, इसके अलावा वो अमेरिका समर्थित पड़ोसी देशों पर भी हमला करेगा. इससे क्षेत्र में और ज्यादा अस्थिरता आएगी, युद्ध बहुत लंबा चल सकता है, जिसमें अरबों डॉलर का खर्च आएगा.

बर्नी ईराक युद्ध की भयावह यादों को ताजा करते हुए लिखते हैं कि 16 साल पहले अमेरिकी शासन का ईराक पर हमला करने का फैसला, विदेश नीति की एक भयानक गलती थी. वह लड़ाई खतरनाक हथियारों की झूठी बातें बताकर अमेरिकी लोगों बेची गई थी.

बर्नी कहते हैं कि ईराक युद्ध की वकालत करने वाले आज ट्रंप प्रशासन का हिस्सा हैं. इसके लिए वे जॉन बोल्टन का उदाहरण देते हैं. बोल्टन इस समय ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं, वे कभी राष्ट्रपति बुश के प्रशासन में शामिल थे.

वे बोल्टन का नाम लेते हुए कहते हैं कि दुनिया में अब भी कुछ लोग हैं जो ईराक युद्ध को सही ठहराते हैं और बोल्टन भी उनमें से एक हैं.

ईराक युद्ध के परिणामों की बात करते हुए बर्नी कहते हैं कि उस युद्ध में 4,400 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक मारे गए, दसों हजार सैनिक घायल हुए और लाखों ईराकी नागरिक मारे गए. सिर्फ यही नहीं इस युद्ध ने पूरे क्षेत्र में कट्टरता की लहर दौड़ा दी. इससे जो अस्थिरता फैली उसे हम अब तक झेल रहे हैं और ना जाने आगे कब तक झेलेंगे.

एक तरफ ट्रंप अमेरिका को खत्म ना होने वाले युद्धों से बाहर निकालने का प्रचार कर रहे हैं दूसरी ओर उन्हीं का प्रशासन ईरान से युद्ध कराने पर तुला हुआ है.

बर्नी कहते हैं कि ट्रंप ने पहले तो ईरान के साथ हुई परमाणु संधि से अलग होने का लापरवाह फैसला किया फिर ईरान को बर्बाद करने वाले प्रतिबंध फिर से लगा दिए. जबकि ये एक ऐसा फैसला था जिसका विरोध उन्हीं के अधिकारियों ने भी किया, जिनमें तत्कालीन रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस भी शामिल थे.

वे कहते हैं कि उस समय के जानकारों ने ट्रंप के फैसले का इसलिए विरोध किया था क्योंकि उनको पता था कि वो संधि ईरान को परमाणु प्रसार से रोकने में समर्थ थी.

अभी हाल ही में ईरान ने कहा है कि वो यूरेनियम संवर्धन के अपने कार्यक्रम को बढ़ाने वाला है. बदले में ट्रंप उसे ऐसा ना करने के लिए धमका रहे हैं. ट्रंप ने जो दो साल पहले खुद किया अब ईरान को वही करने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं.

बर्नी के मुताबिक इस वक्त समय की मांग है कि अमेरिका वैश्विक बिरादरी के साथ मिलकर खाड़ी क्षेत्र में जल परिवहन और वायु क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करे.

लेकिन ये दुर्भाग्य की बात है कि अमेरिका अपने सहयोगियों में ही अलग-थलग पड़ गया है. ये ट्रंप के ईरान के साथ संधि से बाहर आने और ईरान के बारे में लगातार दुश्प्रचार करने की वजह से हुआ है. ट्रंप लगातार झूठ बोल रहे हैं. दुनिया अमेरिका के शब्दों को शक की निगाह से देख रही है.

वे कहते हैं कि ईराक युद्ध के समय जिन विरोधी स्वरों को पूरी तरह से नकार दिया गया, उन पर इस बार विचार करने की जरूरत है.

बर्नी के मुताबिक अमेरिकी कांग्रेस इस युद्ध को रोकने के लिए जो बनता है करेगी. संविधान इस बारे में एकदम साफ कहता है, युद्ध करना है या नहीं इसका फैसला अमेरिकी कांग्रेस करती है ना कि राष्ट्रपति. अगर बिना उसकी इजाजत के ऐसा किया जाता है तो ये पूरी तरह से असंवैधानिक और गैर-कानूनी होगा.

राष्ट्रपति के लिए संभावित डेमोक्रेट उम्मीदवार आगे लिखते हैं. मैं एक बात साफ तौर पर कहना चाहता हूं, ईरान गलत नीतियों पर चल रहा है. ये अपने लोगों का हिंसात्मक दमन कर रहा है और क्षेत्र में कट्टरतावादी ताकतों को बढ़ावा दे रहा है. हम ऐसा ही अपने पुराने सहयोगी सऊदी अरब के बारे में भी कह सकते हैं.

वे कहते हैं हमें मध्य-पूर्व को लेकर सोच समझकर नीतियां बनानी चाहिए ना कि क्षेत्रीय संघर्ष में एक के विरोध में दूसरे की मदद करनी चाहिए.

ऐसे मामलों से निपटने के लिए अमेरिका के पास पर्याप्त कूटनीतिक ताकत है, हम अपने वैश्विक सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसा कर सकते हैं, और हमें ऐसा ही करना चाहिए. हमें निश्चित तौर पर एक और गैर-जरूरी युद्ध नहीं लड़ना चाहिए.


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