मप्र डायरी: पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री को फिर मिलने लगी पेंशन


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मध्य प्रदेश में 15 सालों बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कुर्सी संभालते ही बीजेपी सरकार के फैसलों की समीक्षा शुरू की थी. इस दौरान सरकार ने आपातकाल के दौरान जेल में रहे मीसा बंदियों की पेंशन रोक दी थी. तब बीजेपी ने विरोध करते हुए खूब हल्ला मचाया था. तब मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने तर्क दिया था कि शिवराज सरकार की इस पेंशन योजना में गड़बड़ी की आशंका है.

मीसा बंदियों के वेरीफिकेशन तक पेंशन पर रोक लगाई जा रही है. सरकार को अब कोई भी मीसाबंदी अपात्र नहीं मिला तो पेंशन के साथ सरकार ने मीसाबंदियों का एरियर भी जारी कर दिया है. इन बंदियों में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत, पूर्व सांसद कैलाश सारंग, पूर्व मंत्री अजय विश्नोई जैसे नाम शामिल हैं.

इस कद के लोगों का पेंशन लेना कितना जायज इस बात कि बहस एकतरफ मगर इमरजेंसी में एक दिन भी जेल में रहे अपने नेताओं की पेंशन दोबारा शुरू होने पर बीजेपी ने कोई प्रतिक्रिया भी ना दी. पेंशन रोकने पर सरकार की ‘ईंट से ईंट बजाने’ की चेतावनी देने वाले बीजेपी नेताओं ने सरकार की प्रशंसा या आभार में एक शब्द भी ना कहा.

उमा की सक्रियता से खिले बुंदेलखंड नेताओं के चेहरे

साल 2003 में बुंदेलखंड की तेजतर्रार नेत्री उमा भारती के मुख्यमंत्री बनते ही मध्य प्रदेश की राजनीति, अफसरशाही से लेकर विविध क्षेत्रों में बुंदेलखंड के असर दिखाई देने लगा था. उनके कुर्सी से हटते ही यह वर्चस्व भी धीरे धीरे खत्म होता गया. अब उमा भारती की राज्य में सक्रियता फिर से बढ़ गई है. उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात से लेकर गंभीर मसलों पर चर्चा का दौर जारी है. वे पार्टी में हाशिये पर पड़े नेताओं से मेलजोल बढ़ा रही हैं. खासकर पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ वे पहले खड़ी दिखाई दीं. मिश्रा ई-टेंडरिंग घोटाले में उलझते नजर आ रहे हैं.

कभी शिवराज सरकार के संकट मोचक कहलाने वाले पूर्व मंत्री नरोत्तम की शिवराज से दूरी और उमा के साथ में नए राजनीतिक समीकरण देखे जाने लगे. इन दोनों नेताओं की पूर्व मुख्यमंत्री चौहान से दूरी भी है. अरसे बाद यह पहला मौका है, जब उमा भारती इस तरह से सक्रिय हैं. उमा भारती को लगता है कि वह बीजेपी में आ रहे नेतृत्व के संकट का समाधान हो सकती हैं. प्रदेश में उमा की सक्रियता से रजनीति में अलग थलग पड़े बुंदेलखंड के उनके समर्थकों के चेहरे खिले हुए हैं.

चेहरा चमकाने की राजनीति पर 23 लाख का जुर्माना

बगैर अनुमति राजधानी में विरोध प्रदर्शन करने वाले बीजेपी के पूर्व विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह पर 23 लाख 76 हजार रुपए का जुर्माना लगाए जाने की अनुशंसा की गई है. सिंह ने गुमटी व्यापारियों के समर्थन में बिना अनुमति सीएम हाउस से लेकर वल्लभ भवन और डीजीपी-कमिश्नर के बंगलों का घेराव किया था. पुलिस का कहना है कि पूर्व विधायक ने अपने समर्थकों के साथ सीएम हाउस समेत 12 जगहों पर विरोध प्रदर्शन किया था.

जिससे पुलिस को प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए अतिरिक्त बल लगाना पड़ा. इसका खर्च जोड़ते हुए पुलिस ने उनसे 23 लाख 76 हज़ार 280 रुपए की वसूली का प्रस्ताव भोपाल कलेक्टर को भेज दिया है. सिंह अपने एक प्रदर्शन के दौरान मुख्यमंत्री कमल नाथ का खून सड़कों पर बहाने जैसा विवादास्पद बयान भी दे चुके हैं. शहर के व्यावसायिक और पाश इलाकों में गुमटियों का अतिक्रमण करवा कर अपनी राजनीति चमकाने के जतन कर रहे सुरेंद्र नाथ सिंह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज के कॉलेज जमाने के मित्र हैं और उन्हीं के दम पर राजनीति में टिके हैं.

अब भी उनके बचाव में केवल शिवराज ही आगे आए हैं जिन्होंने लोगों से अपील की है कि वह सरकार के इस काले कदमका विरोध करें. पूर्व विधायक सिंह को जनता तो दूर बीजेपी के अंदर भी साथ नहीं मिल रहा है.


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