बिहार: ‘अपनों’ की नाराजगी दूर करने में जुटी बीजेपी


ec filed case against giriraj singh for controversial statement

 

बीजेपी का मूल आधार वर्ग माने जाना वाला समाज का सवर्ण तबका बिहार में पार्टी से नाराज चल रहा है. इस बात को 17 अप्रैल के दोपहर तब और बल मिला जब पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद डॉ. सीपी ठाकुर ने मीडिया में बयान जारी कर कहा कि भूमिहार समाज को बीजेपी के द्वारा सिर्फ एक टिकट दिए जाने पर भूमिहारों में नाराजगी है. गौरतलब है कि सीपी ठाकुर भी खुद इसी जाति से आते हैं.

हालांकि उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि केंद्रीय नेतृत्व ने बातचीत में इस नाराजगी को दूर करने का आश्वासन दिया है. साथ ही उन्होंने नरेंद्र मोदी को वोट देकर उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की अपील भी की.

17 अप्रैल को ही एक और घटना को सवर्ण तबके की नाराजगी को दूर करने की बीजेपी की पहल के रूप में देखा जा रहा है. 17 अप्रैल की देर शाम पार्टी के बिहार प्रभारी और राष्ट्रीय महामंत्री भूपेन्द्र यादव बाल्मीकिनगर से सांसद सतीश चन्द्र दूबे के साथ-साथ पार्टी विधानपार्षद सच्चिदानंद राय को लेकर स्पेशल चार्टर प्लेन से अमित शाह से मिलने गए. ब्राह्मण जाति के सतीश चन्द्र दूबे ने वाल्मीकिनगर और भूमिहार जाति के सच्चिदानंद राय ने महाराजगंज से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने का एलान कर पार्टी को सांसत में डाल रखा है. 17 अप्रैल की ‘हवाई क़वायद’ को उन्हें मनाने की केन्द्रीय नेतृत्व की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

क्यों नाराज हैं भूमिहार?

बिहार में सवर्ण जातियों में भूमिहार जाति सबसे मुखर मानी जाती है. बिहार एनडीए के सीट बंटवारे में बीजेपी के खाते में जो 17 सीटें आई हैं उनमें से पार्टी ने भूमिहार जाति से आने वाले बस एक उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को बेगूसराय से उम्मीदवार बनाया है जबकि बीते आम चुनाव में पार्टी ने भूमिहार जाति से तीन उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि इस बार बीजेपी ने अपने कोटे की सत्रह सीटों में से करीब आधे यानी की आठ सीटों पर सवर्ण जाति से आने वाले उम्मीदवार उतारे हैं. उसने राजपूत जाति से पांच, दो ब्राह्मण और बस एक उम्मीदवार भूमिहार जाति से उतारा है. ऐसे में ज़मीनी हालात बताते हैं कि अभी भूमिहार बीजेपी से थोड़े नाराज चल रहे हैं जो 17 अप्रैल को सीपी ठाकुर के बयान के रूप में भी सामने आया.

इस बार भूमिहार जाति से जिस एक व्यक्ति गिरिराज सिंह को उम्मीदवार बनाया गया उन्हें भी अपना लोकसभा बदलने के लिए मजबूर किया गया जो कि उनकी नाराज़गी के रूप में सामने भी आया था. गिरिराज सिंह ने बेगूसराय से चुनाव लड़ने में शुरुआती अनिच्छा भी दिखाई थी. तब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि उनकी अनिच्छा का एक कारण प्रत्याशी चयन को लेकर उनके समुदाय में बीजेपी को लेकर पैदा हुई नाराजगी भी थी.

एक चर्चा यह भी है कि पहले चरण के मतदान के बाद बीजेपी के पास क्षेत्र से जो खबरें पहुंची उससे पार्टी को सवर्णों की नाराजगी का अहसास हुआ है. ऐसे में अब वह अपने इस बहुत ही अहम आधार वर्ग और इसके नेताओं को मनाने में जुट गई है.

मनाने की कवायद

बेशक, बिहार में महागठबंधन में भी भारी बगावत है लेकिन भाजपा जैसी पार्टी में ऐसा होना थोड़ा चौकाने वाला है. बीजेपी के लिए परेशान करने वाली एक बात और भी है कि चुनाव के मौसम में जितने भी बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी या बगावत की है उनमें से ज्यादातर सवर्ण तबके से आते हैं. इनमें सच्चिदानंद राय और सतीशचंद्र दूबे के आलावा शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आज़ाद, पप्पू सिंह, पुतुल कुमारी जैसे नाम शामिल हैं. भाजपा में बगावत की शुरुआत पुतुल सिंह (बांका) और विधान पार्षद अशोक कुमार अग्रवाल (कटिहार) ने शुरु की. अशोक तो मान गए मगर पुतुल, बांका के मैदान में मजबूती से डटी रहीं और उनकी मौजूदगी ने बांका का मुकाबला त्रिकोणात्मक बना दिया.

इन सबको देखते हुए पार्टी सवर्ण जाति के नेताओं को अपने पाले में करने और उन्हें पार्टी में उचित स्थान देने की कोशिशों में भी जुट गई है. इसीलिए पिछले दिनों आनन-फानन में चार्टर प्लेन से आकर भूपेन्द्र यादव ने हम (सेक्युलर) पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री महाचन्द्र सिंह और कांग्रेस नेता विनोद शर्मा को पार्टी में शामिल करवाया था. इस समारोह में शामिल होने के लिए प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय हेलीकॉप्टर से पटना आए थे. पार्टी ने मृत्युंजय झा को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर भी नाराजगी दूर करने की कोशिश की है.

बीजेपी के बागी सच्चिदानंद राय और सतीशचंद्र दूबे मानते हैं या नहीं? यह तो आने वालों चंद दिनों में सामने आ जायेगा. मगर सवर्ण तबके की नाराजगी कितनी दूर हुई इसका अनुमान लगाने के लिए 23 मई तक का इंतज़ार करना पड़ेगा जिस दिन नतीज़े आयेंगे. बिहार में करीब आधी सीटों पर जीत-हार में सवर्ण जाति के मतदाताओं की अहम भूमिका मानी जाती है. इन सीटों में औरंगाबाद, नवादा, बांका, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी, जहानाबाद, सारण, मुजफ्फरपुर, महाराजगंज, बाल्मिकीनगर, पटना साहिब, आरा, बक्सर, बेगूसराय और मुंगेर जैसी सीटें शामिल हैं. इनमें से पूर्णिया, महाराजगंज, पटना साहिब, बक्सर, मुंगेर, बेगूसराय जैसी सीटों पर बीजेपी या एनडीए को खास चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, जहां या तो महागठबंधन ने सवर्ण जाति के उम्मीदवार दिए हैं या फिर एनडीए और महागठबंधन (अन्य विपक्ष सहित) दोनों के ही उम्मीदवार सवर्ण जाति से हैं.


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