नाज़िम हिकमत की कविताओं में विद्रोह की इबारत


birth anniversary of turkey poet nazim hikmat

 

आज तुर्की के महान क्रांतिकारी कवि नाज़िम हिकमत की 117वीं जन्मतिथि है. उनका जन्म 15 जनवरी, 1902 को तत्कालीन ऑटोमन साम्राज्य के सालोनिका में हुआ था और 3 जून, 1963 को मास्को में उनकी मृत्यु हो गई थी. उन्होंने अपनी ज़िंदगी का लंबा अर्सा जेल में बिताया. जेल में रहते हुए उन्होंने कई कवितायें लिखी थीं. नाज़िम को रूमानी विद्रोही कहा जाता था. क्योंकि वो कहीं रूमानी तो कहीं विद्रोही और कहीं दार्शनिक नज़र आते हैं. नाज़िम की कविताओं में ज़िंदगी और विद्रोह एक साथ दिखता है. यहां पेश हैं उनकी ये तीन कविताएं जिसमें उनके तेवर और ज़िंदगी का फलसफा नज़र आता है.

जीने के लिए मरना

जीने के लिए मरना
ये कैसी स‍आदत है
मरने के लिए जीना
ये कैसी हिमाक़त है

अकेले जीओ
एक शमशाद तन की तरह
अओर मिलकर जीओ
एक बन की तरह

हमने उम्मीद के सहारे
टूटकर यूँ ही ज़िन्दगी जी है
जिस तरह तुमसे आशिक़ी की है.

तुम्हारे हाथ और उनके झूठ के बारे में

तुम्हारे हाथ
पत्थरों की तरह संगीन
जेल में गाए गए तमाम गीतों की तरह मनहूस,
बोझ ढोनेवाले जानवरों की तरह अनाड़ी, सख़्त
और भूखे बच्चों के चेहरों की तरह नाराज़ हैं.

मधुमक्खियों की तरह कुशल और सहनशील,
दूध से भरी छातियों की तरह भरपूर,
कुदरत की तरह दिलेर,
और अपनी खुरदरी खाल में दोस्ताना अहसास छुपाए
तुम्हारे हाथ.

यह दुनिया बैल के सींग पर नहीं टिकी है,
तुम्हारे हाथों ने सम्हाल रखी है यह दुनिया.

और लोगो, मेरे लोगों,
वे तुम्हें झूठ परोसते रहते हैं,
जबकि तुम भूख से मर रहे हो,
तुम्हें गोस्त और रोटी खिलाने की ज़रूरत है
और सफ़ेद कपड़े से ढकी मेज़ पर एक बार भी
भर पेट खाए बिना ही
तुम छोड़ देते हो यह दुनिया
जिसकी हर डाली पर लदे हुए हैं
बेशुमार फल

लोगों, मेरे लोगों,
खासकर एशिया के लोगो, अफ़्रीका के लोगों,
पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया, प्रशान्त द्वीप के लोगों,
यानी धरती के सत्तर फ़ीसदी लोगों,

अपने हाथों की तरह तुम बूढ़े और भुलक्कड़ हो,
बेकल, अनोखे और जवान हो अपने हाथों की तरह.

लोगों, मेरे लोगों,
मेरे अमरीकी लोगों, मेरे यूरोपीय लोगों,
तुम फुरतीले, साहसी और लापरवाह हो अपने हाथों की तरह,
अपने हाथों की तरह ज़ल्दी राजी हो जानेवाले,
आसान है तुमसे पीछा छुड़ाना….

लोगों, मेरे लोगों,
अगर टीवी और रेडियो झूठ बोलते हैं,
अगर किताबें झूठ बोलती हैं,
अगर दीवार के पोस्टर और अख़बारों के इश्तहार झूठ बोलते हैं,
अगर परदे पर लड़कियों की नंगी टाँगे झूठ बोलती हैं,
अगर प्रार्थनाएँ झूठ बोलती हैं,
अगर लोरियाँ झूठ बोलती हैं,
अगर सपने झूठ बोलते हैं,
अगर शराबख़ाने का साज़िन्दा झूठ बोलता है,
अगर मायूसी भरी रात में चाँदनी झूठ बोलती है,
अगर अल्फाज़ झूठ बोलते हैं
अगर रंग झूठ बोलते हैं,
अगर आवाज़ें झूठ बोलती हैं,
अगर तुम्हारे हाथों को छोड़कर,
तुम्हारे हाथों के सिवा
हर चीज़ और हर शख़्स झूठ बोलता है,
तो यह सारी कवायद तुम्हारे हाथों को
मिट्टी के लोंदे की तरह फ़रमाबरदार,
अंधेरे की तरह अंधा,
और कुत्ते की तरह भोंदू बना देने के लिए है,
ताकि तुम्हारे हाथ घूँसों में,
बगावत में तब्दील न हो जाएँ,
और इसलिए कि इस नाशवान, मगर जीने लायक दुनिया में
जहाँ हम मेहमान हैं इतने कम समय के,
सौदागरों की यह हुकूमत,
यह ज़ुल्म कहीं ख़त्म न हो जाए…

भूख हड़ताल के पांचवे दिन

मैं जो बात कर रहा हूं
ख़ुद जाकर तुमसे जो न कह सकूं
भाई! तुम मुझे दोष मत देना
मेरे बाल सफ़ेद हो चले हैं
सिर थोड़ा-थोड़ा कांपता है
नशे की वजह से नहीं
ये इतनी…. इतनी-सी, ज़रा-सी भूख से.

भाई,
तुम लोग जो यूरोप के हो
जो एशिया के
जो लोग अमेरिका के हो…
मैं जेल में भी नहीं
भूख हड़ताली भी मैं नहीं
आज इस मई के महीने में

लेटा हूं घास पर
अब रात है
मेरे सिरहाने तुम लोगों की आंखें
नक्षत्रों की तरह जल रही हैं.

मेरे हाथ में हैं तुम्हारे हाथ
जैसे मेरी जननी का
जैसे मेरी प्रियतमा का
जैसे जीवन का.

मेरे भाई
दूर रहकर भी तुम लोग
मुझे छोड़कर कभी नहीं गए,
न मुझे, न मेरे देश को
न ही मेरे देश के लोगों को.
जैसे मैं तुम लोगों से प्यार करता हूँ

वैसे ही तुम लोग — जो कुछ मेरा ख़ुद का है —
उससे प्यार करते हो.
मेरा धन्यवाद स्वीकार करो भाई
धन्यवाद

मैं मरना नहीं चाहता
अगर मेरी हत्या होती है
तो भी तुम्हारे बीच बचा रहूंगा
मैं जानता हूं.

अरागाँ की कविता में मैं रहूँगा —
जिस कविता में है मधुमय आगामी दिन की स्तवगाथा.
पिकासो के सफ़ेद कबूतरों में रहूंगा मैं
रॉब्सन के गीतों में
मैं रहूंगा और भी रमणीय होकर
फैल जाऊंगा समूची पृथ्वी पर
साथी योद्धा की हंसी में रहूंगा
रहूंगा मर्साई के डॉक-मज़दूरों के सीनों में.

बिना किसी कपट के कह रहा हूँ, भाई
मैं सुखी हूं
नववधू की तरह सुखी.

सभी कविताएं कविता कोश से साभार


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