मध्य प्रदेश डायरी: दुबले और दो आषाढ़ की स्थिति में बीजेपी
दुबले और दो आषाढ़ की स्थिति क्या होती है, यह मध्य प्रदेश में बीजेपी से पूछा जा सकता है. पार्टी जहां कई सीटों पर बगावत और भीतरघात के संकट से जूझ रही हैं वहीं भोपाल की बहुचर्चित सीट पर प्रत्याशी घोषित होने के दो दिन बाद ही पूरी की पूरी पार्टी को बैकफुट पर आना पड़ा. मुद्दे बदलने में माहिर बीजेपी को सूझ नहीं रहा कि वह कैसे भोपाल की अपनी प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर द्वारा दिए बयान से हुए डेमेज को कंट्रोल करे.
भोपाल में कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव लड़वाने का फैसला पार्टी हाइकमान और संघ का था. बीजेपी इसे भगवा आतंकवाद का जवाब और प्रतीक मानकर लड़ाई लड़ रही थी, लेकिन जिस तरह शहीद करकरे पर टिप्पणी कर साध्वी ने बीजेपी को ही राष्ट्रीयता के मुद्दे पर उलझाया है, वह पार्टी पर भारी पड़ता दिख रहा है.
जनता में ही नहीं स्वयं बीजेपी में बड़ा वर्ग है जो मानता है कि प्रज्ञा ठाकुर के राजनीतिक बर्ताव को परिष्कृत करने की आवश्यकता है. बीजेपी नेता मानते हैं कि शहीद करकरे के लिए की गई टिप्पणी से आम मतदाता में तो गलत संदेश जाएगा ही बीजेपी के महाराष्ट्रीयन वोट बैंक पर भी इसका नकारात्मक असर होगा.
इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, उज्जैन, धार जैसे क्षेत्रों में मराठी भाषी मतदाताओं पर प्रभाव की चिंता गहरा गई है. यही कारण है कि प्रज्ञा ठाकुर की सहायता के लिए बीजेपी ने अपने पूर्व मीडिया समन्वयक डॉ. हितैष वाजपेयी को तैनात कर दिया है ताकि बयानों और कार्यक्रम को अधिक संतुलित किया जा सके.
तब शिवराज पर बरसीं थी, अब पार्टी की बारी?
बीजेपी शुभचिंतकों का मानना है कि प्रज्ञा ठाकुर का बर्ताव पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती की तरह है. मगर यह बेबाक अंदाज अकसर पार्टी पर भारी पड़ता है. प्रज्ञा भारती ने सिंहस्थ 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था. तब वे जेल में थीं और सुरक्षा का हवाला देते हुए शिवराज सरकार ने उन्हें उज्जैन सिंहस्थ में स्नान की अनुमति नहीं दी थी. उस वक्त साध्वी प्रज्ञा ने कुपित होते हुए अपने हालात के लिए शिवराज को ही जिम्मेदार बताया था.
साध्वी ने कहा था जिन लोगों ने उन्हें परेशान किया, उनके नेता शिवराज हैं, यह कहते हुए उन्हें अंजाम भुगतने की चेतावनी तक दे डाली थी. बाद में मामला अदालत पहुंचा और अदालत की अनुमति के बाद प्रज्ञा ठाकुर ने सिंहस्थ में शिप्रा स्नान किया था. बीजेपी में यह राय आम होती जा रही है कि गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि और अनुभव न होने के कारण प्रज्ञा ठाकुर पार्टी के लिए ऐसे मुश्किल मौके खड़े करती रहेंगी.
शिवराज को दायित्व तो मिला मगर सुनवाई नहीं हो रही
मध्य प्रदेश में बीजेपी के टिकट वितरण से नाराज नेताओं ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पार्टी हाईकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘डैमेज कंट्रोल’ करने का जिम्मा जरूर दिया है मगर बगावत कम होने का नाम नहीं ले रही.
तमाम प्रयासों के बाद जब बालाघाट से मौजूदा सांसद बोध सिंह भगत नहीं माने तो पार्टी ने उनकी प्राथमिक सदस्यता खत्म कर दी. भगत टिकट कटने से नाराज हैं और बीजेपी का खेल बिगाड़ने की गरज से निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं.
उम्मीद की जा रही थी कि इस एक कठोर कदम का अन्य क्षेत्रों में सख्त संदेश जाएगा मगर ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा. खजुराहो में भी बीजेपी के प्रत्याशी वीडी शर्मा का विरोध करते हुए दो पूर्व विधायकों समेत चार बीजेपी नेताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन फार्म जमा का दिया. पन्ना में बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष जयप्रकाश चतुर्वेदी और छतरपुर से पूर्व जिला उपाध्यक्ष सुधीर शर्मा ने भी फार्म भरा है.
दूसरे नेताओं के साथ शिवराज भी इन्हें मनाने की कोशिशें कर चुके हैं मगर इस बार बात बन ही नहीं रही है. जो नेता पहले शिवराज के एक संदेश से जुट जाते थे वे स्वयं शिवराज की बात सुन ही नहीं रहे हैं.