मप्र डायरी: विधानसभा में लगातार कमजोर होती बीजेपी


amit shah accused shivsena of opportunism

 

सदन और सदन के बाहर मजबूत विपक्ष की ताकत वाली बीजेपी मैदानी पकड़ बनाने का प्रयास जरूर कर रही है, मगर सदन के अंदर तो वह लगातार कमजोर होती जा रही है. 10 दिन पहले झाबुआ विधानसभा उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद बीजेपी को एक और झटका तब लगा जब तहसीलदार से मारपीट और बलवे के मामले में राजधानी की विशेष अदालत ने पन्ना जिले की पवई सीट से बीजेपी विधायक प्रह्लाद लोधी को दोषी ठहराया और विधानसभा ने उनकी सदस्यता तुरंत रद्द कर केंद्रीय चुनाव आयोग को पवई सीट रिक्त होने की सूचना भी भेज दी. लोधी की सदस्यता शून्य हो जाने से विधानसभा में बीजेपी विधायकों की संख्या घटकर अब 107 रह गई है. अब पवई में उपचुनाव करवाए जाएंगे. पवई विधानसभा सीट पर से 2013 में कांग्रेस के मुकेश नायक विधायक चुने गए थे. उन्‍हें प्रह्लाद लोधी ने 2018 में हराया. करीब 2.5 लाख वोटरों वाली इस सीट पर समाजवादी पार्टी से लेकर बीजेपी और निर्दलीय तक का कब्जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस को उम्‍मीद बंधी है कि यहां उपचुनाव हुआ तो उसका प्रत्‍याशी सदन में पहुंच जाएगा. फिर चुनाव होने पर 214 सीट जीत कर बहुमत से दो सीट दूर रही कांग्रेस झाबुआ के बाद एक और उप चुनाव जीत बहुमत हासिल कर लेगी. बीजेपी के लिए यही बड़ी चुनौती है कि वह विधानसभा के फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई तो लड़े ही, मैदान में भी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा मजबूत कर अपनी सीट बकरार रखे. अन्‍यथा सरकार के अल्‍पमत में होने और उसके खुद की गिर जाने जैसे बीजेपी नेताओं के बयान मनोरंजक ही साबित होंगे.

निकाय फैसले के विरोध में नहीं दिखा जन समर्थन

बीजेपी की मुश्किल यह है कि झाबुआ विधानसभा उप चुनाव में पूरी ताकत लगा देने के बाद भी पार्टी अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई. वहां जीत का अंतर 27 हजार से अधिक मत का रहा, जबकि उम्‍मीद की जा रही थी कि बीजेपी कड़ी टक्‍कर तो देगी ही. मैदान में अपनी उपस्थित दर्शाने के लिए बीजेपी नए-नए तरीके आजामा रही है. वह एक तरफ 4 नवंबर को किसानों के हक में सरकार का विरोध करते हुए प्रदेश भर में प्रदर्शन कर रही है, दूसरी तरफ नगरीय निकायों में अध्‍यक्ष और महापौर का चुनाव सीधे न करवाने के फैसले के खिलाफ जनता के बीच जा चुकी है. भोपाल नगर निगम बंटवारे के खिलाफ भी बीजेपी ने हल्ला बोल जारी रखा. मगर, उसे जनता का उतना साथ नहीं मिला जितना सत्‍ता में होते हुए उसके नेता भीड़ जुटा लेते थे. भोपाल में बीजेपी नेता विरोध स्वरूप कमलनाथ सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सड़क पर उतरे और प्रदेश भर में हस्‍ताक्षर अभियान चलाया मगर कार्यकर्ता ही इन अभियानों में पूरे मन से संलग्‍न न हुए. तमाम तर्क गिनाने के बाद भी जनता ने बंटवारे पर अपनी चुप्‍पी नहीं तोड़ी है. बीजेपी को उम्‍मीद है कि जनता चुनाव के वक्‍त बोलेगी जबकि कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि बीजेपी का यह मुद्दा भी टांय टांय फिस्‍स ही होगा.

भाजपा की कथनी-कीनी में वाकई अंतर है…?

मध्य प्रदेश में विधान परिषद के गठन का मुद्दा छाया हुआ है. कांग्रेस ने विधान परिषद के गठन को अपने वचन पत्र का हिस्‍सा बनाया था और सरकार बहुत गंभीरता से इस दिशा में काम कर रही है. इसके लिए प्रस्ताव जल्द ही कैबिनेट में मंजूर कर सीधे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. मगर बीजेपी इसके विरोध में आ गई है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का कहना है कि इससे बड़े दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि किसान रो रहा है और कांग्रेस जनता को विधान परिषद का सपना दिखा रही है. बीजेपी ने तय किया है कि आगामी 4 नवंबर को हम किसान आक्रोश आंदोलन करेंगे. बीजेपी के इस रूख पर संसदीय कार्यमंत्री गोविंद सिंह सरकार का पक्ष रख चुके हैं. उन्‍होंने कहा है कि 3 महीने पहले विधान परिषद के गठन को लेकर खुद संसदीय कार्यमंत्री गोविंद सिंह ने शिवराज और गोपाल भार्गव से मुलाकात कर सरकार की पहल पर सहमति ली थी, लेकिन अब बीजेपी नेता ही विधान परिषद के गठन पर आपत्ति उठा रहे हैं. बकौल सिंह यह तो बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर है. सिंह तर्क दे रहे हैं कि सरकार इस पहल से सत्ता में भागीदारी से बचे लोगों को विधान परिषद में जगह मिल पाएगी और सरकार की कोशिश है कि सत्ता में हर वर्ग को भागीदार बनाया जाए.


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