महाराष्ट्र: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को वैध ठहराया
मराठा आरक्षण को चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार का फैसला बरकरार रखा है. जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस भारती डांगरे की डिवीजन बेंच ने मराठा आरक्षण के खिलाफ डाली गई याचिकाओं को खारिज कर दिया.
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में आरक्षण 52 प्रतिशत से बढ़कर 68 फीसदी हो गया है. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीमा 50 प्रतिशत से बहुत अधिक है.
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि 50 प्रतिशत की निर्धारित सीमा अपवाद और असाधारण परिस्थितियों में बढ़ाई जा सकती है और मराठा आरक्षण गायक्वाड कमीशन द्वारा दिए गए न्यायोचित डेटा के आधार पर दिया गया है.
इससे पहले पिछले साल 30 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार ने नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत 16 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर विधानमंडल में विधेयक पारित किया था. सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं.
बीती 6 फरवरी से जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी. मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा इसके समर्थन में भी कुछ याचिकाएं कोर्ट में डाली गई थीं.
लंबे समय से मराठाओं द्वारा आरक्षण की मांग को मानते हुए राज्य सरकार ने विधानसभा में आरक्षण संबंधी विधेयक को पेश किया, जिसे दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया था.
महाराष्ट्र सरकार ने लगातार यह तर्क दिया है कि उसने मराठा समुदाय को आरक्षण देने का निर्णय महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) के सिफारिशों के आधार पर किया है. आयोग के मुताबिक़, उसने मराठा समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर रिपोर्ट सौंपने से पहले 43,629 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया था. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठा समुदाय के लोग सरकारी और अर्ध सरकारी सेवाओं में कम प्रतिनिधित्व के साथ ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिक हैं.’ इस मामले में पूर्व एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी कोर्ट में बहस के दौरान ये कह चुके हैं कि राज्य सरकार के पास ये दिखाने का पर्याप्त संख्यात्मक आधार है कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है और इसी कारण से सरकार को 50 फीसदी आरक्षण कोटे की सीमा से आगे बढ़ना पड़ा है.
वहीं, मराठा आरक्षण के विरोध में यह दलील दी जाती रही है कि नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण देने से 50 फीसदी आरक्षण कोटे की सीमा का उल्लंघन होता है, इसलिए यह असंवैधानिक है. पूर्व वकील श्रीहरी अणे कह चुके हैं कि चूंकि राज्य सरकार मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों के समान अवसर देने में नाकाम रही है, इसलिए वह समुदाय को आज आरक्षण प्रदान कर रही है. उसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है.