प्राचीन मंदिर के ऊपर बाबरी मस्जिद बनाए जाने का सबूत पेश करें: सुप्रीम कोर्ट


sunni waqf board accept land given for construction of mosque

 

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्षकारों से कहा है कि वे इस बात का सबूत पेश करें कि बाबरी मस्जिद को किसी प्राचीन मंदिर अथवा हिंदू धार्मिक संरचना के ऊपर बनाया गया था.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन से पूछा, “हमने पिछली दो सहशताब्दियों में नदियों के किनारे सभ्यताओं को बसते और दोबारा बसते हुए देखा है. वे पहले से उपस्थित संरचनाओं पर बसाई गईं. लेकिन इस बात का सबूत क्या है कि बाबरी मस्जिद जिस ढांचे पर बनाई गई, वो धार्मिक था.”

संवैधानिक पीठ के एक और सदस्य जस्टिस एसए बोबडे ने वैद्यनाथन से कहा कि वे इस बात के पक्ष में अपने मत गढ़ें कि बाबरी मस्जिद जिस ढांचे पर बनी, वो ना केवल मंदिर था बल्कि भगवान राम को समर्पित मंदिर था.

वैद्यनाथन ने अपने जवाब में एएसआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “विवादित स्थल की खुदाई से मिले पुरातात्विक अवशेषों ये साफ पता चलता है कि ये किसी उत्तर भारतीय मंदिरों के स्थापत्य शैली वाले ही हैं. ये सिर्फ एक संरचना ही नहीं बल्कि अनेक स्तंभों वाला विशाल मंदिर था. इस रिपोर्ट में जो तथ्य दिए गए हैं, उसके मुताबिक यहां दशवीं शताब्दी का एक भव्य मंदिर था, जिसको बाबरी मस्जिद में तब्दील किया गया. मस्जिद को किसी खाली जगह या खेतीबाड़ी वाली जगह पर नहीं बनाया गया था बल्कि दो ईसा पूर्व में बनाई गई एक संरचना पर बनाया गया था.”

वैद्यनाथन ने यह स्वीकार किया कि इस बात के सबूत मौजूद नहीं है कि ढांचा भगवान राम को समर्पित मंदिर था, लेकिन लोगों की अपार आस्था यह बताती है कि वास्तव में वह भगवान राम का ही मंदिर था.

वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद के खंबों पर नहीं, बल्कि मंदिरों के स्तंभों पर भी देवी देवताओं की आकृतियां मिलती हैं. उन्होंने 1950 की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ स्तंभों पर उकेरी गईं आकृतियों के वर्णन के साथ अयोध्या में मिला एक नक्शा भी पीठ को सौंपा.

उन्होने कहा कि इन तथ्यों से पता चलता है कि यह हिंदुओं के लिए धार्मिक रूप से एक पवित्र स्थल था.

वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवताओं की तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं.

वैद्यनाथन ने आगे कहा कि सिर्फ इस बात से कि मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद में नमाज अदा की, उन्हें इसके ऊपर मालिकाना हक नहीं मिलता है.

उन्होंने कहा कि सड़कों पर भी नमाज पढ़ी जाती है, लेकिन इससे सड़कें नमाज पढ़ने वालों की नहीं हो जातीं.

लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने ने पूछा कि खुदाई में मिलीं जानवरों और मनुष्यों की आकृतियां किस तरह दिव्य कही जा सकती हैं, जरूरी नहीं कि इनमें कुछ दिव्य या धार्मिक हो.

इसपर वैद्यनाथन ने कहा कि आकृतियां केवल किसी मनुष्य या जानवरों की आकृतियां नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “पुरातत्व विशेषज्ञों ने इनकी वाख्या की है. इन व्याख्याओं को कोर्ट को स्वीकार करना चाहिए.”


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