पर्याप्त रक्षा बजट ना मिलने से सेना में चिंता


budget shortfall for indias defence sector

 

अंतरिम बजट 2019-20 को समावेशी बताकर सरकार भले ही अपनी पीठ ठोंक रही हो, लेकिन विशेषज्ञ बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए किए आवंटन को नाकाफी बता रहे हैं.

दि हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जो बजट तीनों सेनाओं के हिस्से में आया है वो जरुरत से बहुत कम है. ये बजट इतना कम है कि सेना के नवीनीकरण के लिए नई योजनाएं शुरू करना तो दूर की बात, चालू प्रोजेक्ट के लिए भी पर्याप्त नहीं है.

ये बजट ऐसे समय में आया है जब एशिया की पड़ोसी ताकतें अपनी सैन्य क्षमता में लगातार विस्तार कर रही हैं. इनमें चीन सबसे ऊपर है जो लगातार अपनी सेना को एडवांस कर रही है. ऐसे में सरकार के इस तरह के रवैये से भारतीय सेना काफी पीछे छूट सकती है.

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो सेना के बजट में काफी कमी नजर आती है. जो धन सेना को आवंटित किया गया है उसमें सेना अपना उधार चुकाने में भी सक्षम नहीं है. ये देयता उन प्रोजेक्ट को लेकर है जिन पर पहले से हस्ताक्षर हो चुके हैं. इनका कुछ हिस्सा सेना दे चुकी है और कुछ खरीददारी हो भी चुकी है. अब पैसा कम पड़ जाने से ये खरीददारी रुक सकती है, जिससे प्रोजेक्ट अधर में लटक जाएंगे.

सबसे पहले वायु सेना के लिए आयुध खरीदारी के प्रोजेक्ट पर नजर डालते हैं. भारतीय वायुसेना ने बीते दो साल में कुछ बड़े खरीददारी समझौते किए हैं. इनमें 36 राफेल विमान, एस-400 रक्षा प्रणाली, चिनूक हेवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर और एएच-64 अपाचे हेलीकॉप्टर के लिए कुल देयता 47 हजार 400 करोड़ रुपये है.

इसके विपरीत वायु सेना को कुल 39 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया है. जबकि इन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए लगभग 74 हजार करोड़ रुपये की जरुरत है. साफ है कि ये धन इसकी देयता को ही पूरा करने में सक्षम नहीं है.

यही हाल नेवी का भी है. नेवी को अपने जारी प्रोजेक्ट के लिए 25 हजार करोड़ से भी ज्यादा चुकाने हैं, जबकि बजट में उसके लिए केवल 22 हजार 227 करोड़ का ही आवंटन किया गया है.

इस मामले पर टिप्पणी करते हुए एक रक्षा अधिकारी ने बताया, “रक्षा मंत्रालय को इन चिंताओं से अवगत कराया जा चुका है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण इस मामले को देख रही हैं.”

इस अंतरिम बजट में अगर पूरे रक्षा क्षेत्र के लिए किए गए आवंटन पर नजर डाले तो ये 3.18 लाख करोड़ है. इस क्षेत्र में पेंसन 1.12 लाख करोड़ है. इस आवंटन में राजस्व खर्च 2.01 लाख करोड़ है, जबकि पूजींगत खर्च 1.08 लाख करोड़ है. इनमें से थल सेना का 54 फीसदी, नेवी का 14 फीसदी और वायु सेना का 22 फीसदी हिस्सा है.

इनमें थल सेना का राजस्व खर्च सबसे ज्यादा होता है, क्योंकि थल सेना में कर्मचारियों की संख्या बाकी सेनाओं से काफी ज्यादा होती है. इस वजह से इसका एक बड़ा हिस्सा वेतन देने में निकल जाता है.

इसमें समय-समय पर होने वाली ट्रेनिंग और मरम्मत कार्यों के लिए अलग से कोई आवंटन नहीं किया गया है. इन सबके बीच सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि सेना के पास अभी उपलब्ध हथियार काफी पुराने हो चुके हैं. पिछले साल एक संसदीय समिति को सेना की ओर से बताया गया था कि उसके 68 फीसदी हथियार बहुत अधिक पुराने हैं.


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