सीमांत किसानों को नहीं मिला न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ


Central government’s minimum support price failed marginal farmers

 

केंद्रीय सरकार ने छोटे और सीमांत और लघु किसानों  को न्यूनतम इनकम देने की तैयारी में है. हालांकि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के अपने पुराने वादे पर गंभीरता से कोई कदम उठाया होता तो इसकी नौबत नहीं आती.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) वह मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों से 25 तरह के अनाजों को खरीदती है, भले ही उनकी तत्कालीन बाजार कीमत कुछ भी हो.

उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2018-2019 में 3.3 करोड़ किसानों में से महज 12 फीसदी गेहूं उगाने वाले किसानों को सरकार के एमएसपी का लाभ मिला. बाकी अनाज मंडियों में बेचा गया, जिनकी पहुंच आमतौर पर बिचौलियों से नियंत्रित की जाती है और जहां बाजार की कीमतें अक्सर एमएसपी से नीचे होती हैं.

लाइव मिंट अखबार ने  यह देखने के लिए जनवरी 2019 के मंडी आंकड़ों का विश्लेषण किया है कि बाजार की कीमतें एमएसपी से अधिक हैं या नहीं. इसी से पता चलता है कि सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य का तंत्र काम कर रहा है या नहीं.

अखबार के देश के ऐसे 3,355 बाजारों के आंकड़ें इकट्ठे किए अनाज का थोक लेन-देन करते हैं.  इनमें  से 1,374 बाजारों यानी 41 फीसदी वस्तुओं पर एमएसपी की कीमतों में गिरावट देखने को मिली.

इसी महीने में 18 राज्यों में 19,872 लेनदेन हुए,  जहां बेचे गए अनाज की कीमत एमएसपी से कम थी.

कुल मिलाकर इन 19,872 लेन-देन के माध्यम से 4.01 मिलियन टन अनाज का व्यापार किया गया. अगर किसानों को यह 240 रुपय प्रति क्विंटल मिलता तो उन्हें अतिरिक्त 965 करोड़ की कमाई होती.

अखबार की रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि एमएसपी में गिरावट अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर की थी. एमएसपी में सबसे कम गिरावट पश्चिम बंगाल (183 प्रति क्विंटल) और सबसे अधिक छत्तीसगढ़ (415) में थी.

पिछले रबी सीजन में अप्रैल से जून 2018 तक फसल बाजार में आ गई थी. उत्तर प्रदेश में 99 फीसदी  दिनों, राजस्थान में 84 फीसदी और मध्य प्रदेश में 69 फीसदी दिनों में मंडियों में बाजार मूल्य नीचे देखे गए.


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