किसानों की आमदनी मापने का तरीका ही बदलना चाहती है सरकार


Centre finding wider method to measure farmers income to get it doubled by 2022

 

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखने वाली मोदी सरकार किसानों की आय का मूल्यांकन करते समय अन्य व्यापक विधियों को शामिल करने पर विचार कर रही है.

सरकार की ओर से प्रस्तावित एक ड्राफ्ट के मुताबिक 2022-23 में सरकार कृषि सकल घरेलू उत्पाद के लिए किसान परिवारों की आय का मूल्यांकन करते समय और अधिक आय के स्रोतों को शामिल करेगी.

हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि दोगुनी आय करने के लक्ष्य से केवल तीन साल दूर सरकार ने आंकड़ों में तोड़मोड़, अन्य नीति उपायों और मूल्यांकन की प्रक्रिया में बदलाव पर विचार शुरू कर दिया है.

बीते चार से पांच वर्षों में कृषि आय में कमी आई है. ऐसे में अगले तीन साल में कृषि आय दोगुनी करने के लिए आवश्यक विकास रफ्तार से कृषि क्षेत्र अभी भी काफी दूर है.

मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा, “सरकार किसान परिवारों की कुल सकल कमाई का मूल्यांकन 2016-17 आधार वर्ष के अनुरूप करेगी.”

जानकारी के मुताबिक आय मूल्यांकन करते समय पीएम-किसान योजना के तहत सालाना दिए जाने वाले 6000 रुपये को भी शामिल किया जाएगा.

हालांकि जानकारों का कहना है कि किसान परिवारों को गैर-कृषि स्रोतों से होने वाली आय को भी शामिल किया जाता है तो भी 2016-22 के बीच कृषि आय दोगुनी करने के लिए कृषि उत्पादकता में वृद्धि होना अनिवार्य है.

नौकरशाहों की एक टीम के पास प्रस्तावित ड्राफ्ट के मुताबिक सरकार ने कृषि आय के अनुपात में गैर-कृषि आय को 70:30 से 60:40 करने का लक्ष्य रखा है.

मूल्यांकन के लिए सरकार अगस्त 2018 में हुए नाबार्ड के अखिल भारतीय वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण की पहली रिपोर्ट में सामने आए आंकड़ों का इस्तेमाल करेगी. सर्वेक्षण के मुताबिक 2015-16 में किसान परिवारों (48 फीसदी ग्रामीण किसान परिवार) ने कृषि, पशुधन, गैर-कृषि क्षेत्र, वेतन और मेहताना से 1,07,172 रुपये कमाए.

सरकार ने 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने पर एक समिति का गठन किया था. समिति ने पाया कि 2016-17 से 2022-23 के बीच आय दोगुनी करने लिए जरूरी है कि कृषि सकल घरेलू उत्पाद सालाना 10.4 फीसदी की रफ्तार से बढ़े. जबकि मोदी सरकार के बीते पांच साल में कृषि क्षेत्र 2.9 फीसदी की मामूली रफ्तार से आगे बढ़ा है.

इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा कि “अब आगे इस कमी को पूरा करने कि लिए जरूरी है कि कृषि क्षेत्र 15 फीसदी की रफ्तार से बढ़े.”


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