एनआरसी पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार


assam govt published new additional exclusion list on nrc

 

सुप्रीम कोर्ट ने पांच जनवरी को असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसा मालूम होता है कि सरकार इस कवायद को आगे नहीं बढ़ने देने पर तुली हुई है.

सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी का काम रोकने के लिए गृह मंत्रालय की याचिका पर सरकार को फटकार लगायी है. गृह मंत्रालय ने याचिका में कहा है कि चुनाव ड्यूटी में केन्द्रीय सशस्त्र बलों (सीआरपीएफ) की भूमिका को देखते हुए सरकार दो हफ्ते तक एनआरसी का काम रोकना चाहती है.

चीफ जस्टीस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह दोहराया कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 31 जुलाई की तय समय सीमा आगे नहीं बढ़ायी जायेगी. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एनआरसी प्रक्रिया में सहयोग नहीं कर रही है. और ऐसा मालूम होता है कि गृह मंत्रालय का यह पूरी कोशिश एनआरसी की प्रक्रिया को बर्बाद करने के लिए है.

अदालत ने निर्वाचन आयोग को चुनाव डयूटी से राज्य के कुछ अधिकारियों को अलग रखने पर विचार करने के लिए कहा है. ताकि यह सुनिश्चित हो कि एनआरसी की प्रक्रिया जारी रहे.

अदालत ने 24 जनवरी को कहा था कि एनआरसी को अंतिम रूप देने की 31 जुलाई, 2019 की समय सीमा को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.

कोर्ट ने राज्य सरकार, एनआरसी समन्वयक और निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि आगामी आम चुनावों से एनआरसी कवायद धीमी नहीं पड़े.

असम के लिए एनआरसी मसौदा 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित हुआ था. इसमें राज्य के 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के ही नाम शामिल थे. सूची में 40,70,707 लोगों के नाम नहीं थे. इनमें से 37,59,630 नामों को अस्वीकार कर दिया गया है. जबकि बाकी 2,48,077 नामों को रोक लिया गया था.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने असम में एनआरसी के मसौदा में जिन लोगों के नाम छूट गये थे उनके नामों को शामिल करने के दावों और आपत्तियों को दायर करने की अंतिम समय सीमा 31 दिसंबर, 2018 तक बढ़ा दी थी.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एनआरसी में नामों को शामिल करने के लिए दावों के सत्यापन की अंतिम तारीख एक फरवरी के बजाय 15 फरवरी, 2019 होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने असम एनआरसी मसौदा के लिए दावेदारों की ओर से पांच और दस्तावेजों के इस्तेमाल की इजाजत दी थी. तब अदालत ने कहा था, “गलत व्यक्ति को शामिल करने के बजाय उचित व्यक्ति को बाहर करना बेहतर होगा” इस आधार को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.


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