‘जय श्रीराम’ बंगाली संस्कृति का हिस्सा नहीं, हो रहा है लोगों को पीटने में इस्तेमाल: अमर्त्य सेन


London School of Economics announces Amartya Sen Chair

 

मशहूर अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमृत्य सेन ने कहा है कि ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष पारंपरिक बंगाली संस्कृति का हिस्सा नहीं है. उन्होंने कहा कि ये यहां हाल ही में लाया गया है और लोगों को पीटने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सेन जादवपुर विश्वविद्यालय में बोल रहे थे.

टेलीग्राफ के मुताबिक गांधी भवन का हॉल छात्रों, अध्यापकों और अन्य श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था. जब सेन ने बंगाल के वर्तमान हालात पर अपने विचार रखे तो पूरा हॉल तालियों से गूंज गया.

अमृत्य सेन ने जादवपुर विश्वविद्यालय से ही अपना करियर शुरू किया था. 23 साल की उम्र में उन्होंने यहां अर्थशास्त्र विभाग की शुरुआत की थी.

अपने संबोधन के दौरान सेन ने कई मुद्दों पर अपने विचार रखे, हम यहां उनके विचारों की मूल बातों को प्रकाशित कर रहे हैं.

अपने भाषण के दौरान सेन ने बंगाल में आजादी से पहले और आजादी के बाद हुई हिंसा पर अपने विचार रखे. इस दौरान उन्होंने 1946 में कोलकाता (तब कलकत्ता) में हुई व्यापक हिंसा पर भी बात की.

सेन के संबोधन के बाद जब सवालों का दौर शुरू हुआ तो एक रिपोर्टर ने उनसे सवाल किया कि ‘जय श्रीराम’ के नारे की शुरुआत और उसके जवाब में बोले जा रहे ‘जय बांग्ला’ पर आपके क्या विचार हैं. एक दूसरे रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या वे 1940-50 के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और आजकल के हालात में कोई समानता देखते हैं.

सेन ने इसका जवाब बंगाली में दिया. इस दौरान उन्होंने कहा, “सबसे पहले, मेरी समझ के हिसाब से ‘जय श्रीराम’ पारंपरिक बंगाली उद्घोष नहीं है. इसे हाल में ही लाया गया है. लोगों को पीटते समय इसे बोलने के लिए कहा जा रहा है. इसका बंगाली संस्कृति से इस तरह का संबंध नहीं रहा है. मैंने सुना है कि इन दिनों राम नवमी पूरे कोलकाता में बड़े पैमाने पर मनाई जा रही है. इससे पहले मैंने इस तरह का कुछ नहीं सुना था. एक दिन मैंने अपनी चार साल की पोती से पूछा कि उसने अब तक जितने भगवान देखें हैं उसमें से उसे कौन से पसंद हैं. थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा, दुर्गा माता. इसलिए जिस पैमाने पर यहां मां दुर्गा को पूजा जाता है उसकी तुलना राम नवमी से नहीं की जा सकती… ये तनाव के ईंधन के तौर पर हाल में आयात किया गया है.”

उन्होंने कहा, “1940 में हुए दंगों में भी बाहरी तत्व शामिल थे. लेकिन मुझे नहीं लगता कि तब के नारों और अब के नारों में कोई समानता है. लेकिन उत्तेजना में समानता जरूर है.”

आजकल बंगाल के हालात के अलावा अन्य मुद्दों पर भी उन्होंने अपनी बात रखी और सवालों के जवाब भी दिया. इसमें उनके व्यक्तिगत जीवन, करियर और विचारधारा के बारे में भी बात की.

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने करियर के तौर पर अर्थशास्त्र ही क्यों चुना, तो उन्होंने इसे अपने राजनीति रुझान और मित्र सुखमॉय चटर्जी से प्रभावित बताया. उन्होंने कहा कि उनके मन में एक अलग तरह के भारत का विचार था. जहां अन्याय और गरीबी ना हो.

सेन ने खुद को लिबरल वामपंथी विचारधारा से प्रभावित बताया. उन्होंने कहा कि कॉलेज के दिनों में वे राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थे, लेकिन किसी राजनीतिक दल से जुड़ाव की गहरी इच्छा उन्हें कभी नहीं हुई.

उन्होंने बताया कि उनके मित्रों ने इसको लेकर काफी प्रयास भी किए. सेन के मुताबिक वामपंथी विचारधारा ने उन्हें काफी प्रभावित किया. वो खुद को प्राकृतिक रूप से इससे जुड़ा हुआ पाते थे, लेकिन उसी समय वे खुलकर इसकी हठधर्मिता का विरोध भी करते थे. उन्होंने वामपंथियों के उस विचार का विरोध किया, जिसमें वे संसदीय लोकतंत्र को सही नहीं मानते थे.


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