भीमा-कोरेगांव और मराठा आंदोलन से जुड़े 700 मामले वापस लेने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राजी


uddhav thackarey will lead the new government in maharashtra says sharad pawar

 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भीमा-कोरेगांव और मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े 700 से अधिक मामले वापस लेने पर करीब-करीब राजी हो गए हैं. पांच दिसंबर को राज्य गृह विभाग ने मुख्यमंत्री ठाकरे को स्टेटस रिपोर्ट सौंपी है. रिपोर्ट में दो अधिकृत कमिटी के द्वारा छांटे गए मामले को वापस लेने की अनुशंसा की गई है.

अंग्रेजी अखबार द हिन्दू ने अधिकारियों के हवाले से कहा है कि मामले को निपटाने में एक साल का वक्त लग सकता है.

मुख्यमंत्री को सौंपे गए स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक मराठा आरक्षण से जुड़े 323 और भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े 386 मामले वापस लेने के लिए छांटे गए हैं.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक एनसीपी के एक प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त करते हुए ठाकरे ने कहा कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को जल्द से जल्द वापस लिया जाएगा.

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों– एनसीपी और कांग्रेस ने 2018 के कोरेगांव-भीमा हिंसा से संबंधित मामले वापस लेने की मांग की है जबकि बीजेपी ने इस मांग को ‘ नक्सलवाद का खुला समर्थन’ करार दिया है.

मंत्री जयंत पाटिल ने कहा कि शिवसेना-कांग्रेस -राकांपा सरकार गलत तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत देने के पक्ष में है.

एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे ने तीन दिसंबर को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था और कोरेगांव-भीमा हिंसा से संबंधित मामलों को वापस लेने की मांग की थी. उन्होंने दावा किया था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत कई लोगों के खिलाफ ”गलत” मामले लगाए थे और उन्हें ‘शहरी नक्सली’ करार दिया था.

चार दिसंबर को कांग्रेस नेता नसीम खान ने कोरेगांव भीमा हिंसा का विरोध करने वाले दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की मांग की. उन्होंने मराठा आरक्षण आंदोलन के प्रदर्शनकारियों को भी ऐसी ही राहत देने की मांग की.

ठाकरे को पत्र लिखकर कांग्रेस नेता नसीम खान ने कहा कि दोनों आंदोलन ‘प्राकृतिक न्याय’ की मांग के लिए थे.

कोरेगांव भीमा दंगे के सिलसिले में मामलों से जूझ रहे लोगों को राहत की मांग पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.

महाराष्ट्र भाजपा के प्रवक्ता माधव भंडारी ने कहा, ”एनसीपी का मामलों को वापस लेने की मांग नक्सलवाद का खुला समर्थन है। यहां तक कि अदालत ने माना है कि प्रथमदृष्टया आरोपियों के खिलाफ सबूत हैं जिसकी वजह से अदालत ने उनकी जमानत अर्जी स्वीकार नहीं की.”

उन्होंने सवाल किया, ”आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है. ऐसे में कोई कैसे मामलों को वापस ले सकते हैं?”

एनसीपी नेता पाटिल ने यहां पत्रकारों से कहा, ”हमें कई लोगों से ज्ञापन मिले हैं जिनमें दावा किया गया है कि उन्हें कोरेगांव-भीमा (हिंसा) मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। (मामले वापस लेने के) ऐसे कदम पहले भी उठाए गए थे.”

उन्होंने कहा, ”सरकार चाहती है कि किसी के साथ अन्याय नहीं हो… सरकार किसी को परेशान नहीं करना चाहती… सरकार का मकसद मामलों में गलत तरीके से फंसाए गए लोगों को राहत देना है.’

पाटिल ने कहा कि हिंसा मामले में अगर किसी ने जानबूझकर भूमिका निभायी है तो सरकार उसका समर्थन नहीं करेगी.

एक जनवरी, 2018 को पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी जिससे एक दिन पहले ही ‘एल्गार परिषद’ ने पेशवाओं और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ाई के 200 साल पूरा होने के अवसर पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था. ईस्ट इंडिया की सेना में दलित सैनिक थे.

हिंसा के खिलाफ दलित संगठनों ने बंद बुलाया था और पुलिस के कथित मनमानेपन से हिंसक घटनाएं सामने आयीं.

दलित 1818 की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत का उत्सव मनाते हैं. वे उसे ऊंची जाति प्रतिष्ठान पर अपनी जीत के रूप में देखते हैं.

संयोगवश, एलगार परिषद-कोरेगांव भीमा मामले में पुणे पुलिस की ओर से गिरफ्तार कुछ कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) सहित नक्सली संगठनों से संबंध का आरोप हैं.

इन वामपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ सख्त गैरकानूनी गतिविधि निषेध कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है.


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