बचपन में हुए दुर्व्यवहार का दिमाग पर ताउम्र रहता है असर


Childhood abuse harms remains lifelong

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्लूएचओ) के मुताबिक बचपन में बच्चों के साथ हुई हिंसा का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दूरगामी प्रभाव पर पड़ता है.  बचपन की स्मृतियां, समझ और उनके साथ हुए व्यवहार उनके व्यक्तित्व की पटकथा लिखते हैं. बचपन में हुए खराब अनुभव का पूरे जीवन में प्रभाव बना रह सकता है. यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं.

बच्चों के दुर्व्यवहार में शारीरिक, भावनात्मक और यौन व्यवहार को लेकर लापरवाही शामिल हैं. बच्चों के संवेदनशील दिमाग पर चिढ़ाने, माता-पिता के बीच कलह, परिवार के बिखराव, मादक द्रव्यों का सेवन, सहकर्मियों का दबाव का बुरा प्रभाव पड़ता है. शोध के मुताबिक चार में से एक लोग बचपन में इस तरह के भेदभाव और हिंसा के शिकार होते हैं.

खुद को गलतियों के लिए जिम्मेदार मानने से स्वयं के प्रति नकारात्मक छवि, आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान की कमी और खुद के वजूद के खत्म होने का अहसास होता है.

शर्म, अपराध और विश्वासघात से जुड़े बचपन के खराब अनुभव का प्रभाव सामाज से कटने, लोगों पर अविश्वास और लंबे रिलेशन के अभाव के रूप में देखने को मिल सकते हैं.

ऐसे मामलों में कई बार युवा अवस्था में तनाव को झेलने की क्षमता खत्म हो जाती है जिसकी वजह से शराबबंदी, खुदकुशी, असामाजिक व्यवहार और खुद अलग-थलग करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है.

ऐसे व्यक्तियों में मनोवैज्ञानिक विकारों जैसे कि अवसाद, चिंता, अभिघातजन्य तनाव विकार (PTSD) और पर्सनालिटी डिसजॉर्डर की संभावना अधिक होती है.

कई बार देखने को मिलता है कि जिनके बचपन में गलत व्यवहार होता है वह आगे चलकर अपने परिवार और चाहनेवालों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार रखते हैं.

बचपन में हुए दुर्व्यवहार को पीड़ित के पूरी उम्र चुपचाप ढ़ोते रहने की संभावना होती है. इस परिस्थिति में मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि पीड़ित को यह समझना होगा कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ है वह उसके लिए बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं हैं और एक खुशहाल जीवन उनका अधिकार है.

विशेषज्ञों के मुताबिक पीड़ित को रचनात्मक कामों में अपनी नकारात्मक उर्जा को लगाने के साथ अपने भीतर के गुस्से को सामाजिक रूप से स्वीकार तरीके से जाहिर करने के उपाय खोजने चाहिए.

बचपन में हुए दुर्व्यवहार के प्रभाव से निकलने के लिए विशेषज्ञ की मदद ली जा सकती है.


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