सरकार की नीतियों के कारण टूटा सामाजिक ताना-बाना आर्थिक सुस्ती की वजह: मनमोहन सिंह


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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि मौजूदा सरकार के दौरान देश का सामाजिक ताना-बाना टूटने की वजह से हम लंबे समय से आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहे हैं.

अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित अपने लेख में मनमोहन सिंह ने सुस्ती के पीछे संस्थानों पर नागरिकों के घटते भरोसे और सरकार के विश्वास में कमी को वजह बताया है.

उन्होंने लिखा कि घटते-बढ़ते आंकड़े अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति के गवाह हैं और गहरी हो चुकी अव्यवस्था को दर्शाते हैं. मनमोहन सिंह ने कहा, ‘किसी देश के लोगों और संस्थाओं के बीच आपसी संपर्क से ही अर्थव्यवस्था चलती है. ये आपसी भरोसा और आत्मविश्वास इस सामाजिक संपर्क की नींव होता है, जिसके बलबूते पर अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है. इसी आत्मविश्वास में कमी के चलते आज हमारा सामाजिक ताना-बाना टूट गया है.’

वो लिखते हैं कि ‘उद्योगपतियों में सरकार का डर है, बैंक नए कर्ज देने से घबरा रहे हैं, साथ ही व्यवसायी लगातार प्रोजेक्ट्स की विफलताओं के बीच नए प्रोजेक्ट्स शुरू नहीं कर रहे हैं. वहीं आर्थिक विकास में एजेंट का काम करने वाले नागरिकों में डर बढ़ा है और भरोसा घटा है.’ सिंह ने कहा कि जब इस तरह का माहौल होता है तो आर्थिक लेन-देन प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है.

सिंह ने सामाजिक विश्वास को ही आर्थिक विकास का आधार बताया. उन्होंने लिखा है कि आर्थिक विकास की पटरी पर दौड़ने के लिए इस सामाजिक ताने-बाने का बना रहना जरूरी है.

उन्होंने लिखा कि ‘लोगों में निराशा है. मीडिया, न्यायपालिका, नियामक और स्वतंत्र संस्थाओं में लोगों का विश्वास काफी कम हो गया है.’ लेख में उन्होंने नोटबंदी और नीति निर्माण पर सरकार के रवैये पर सवाल उठाया. साथ ही घटती विकास दर और बढ़ती बेरोजगारी पर भी चिंता जाहिर की.

सिंह ने कहा कि हर किसी को खराब रोशनी में दर्शाना और ‘अच्छा-बनाम-बुरा शासन’ सिद्धांत स्वस्थ आर्थिक विकास के लिए एक नुस्खा नहीं हो सकता है.

उन्होंने ग्राणीम खपत में आई चार दशकों की सबसे बढ़ी गिरावट पर कहा कि ‘वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था एक अनिश्चित स्थिति में है. परिणाम नहीं दिख रहे हैं. घरेलू खपत धीमी हो रही है. खपत के समान स्तर को बनाए रखने के लिए लोग अपनी बचत में कमी कर रहे हैं. जीडीपी वृद्धि का पूरा लाभ केवल क्रीमी लेयर को मिल रहा है.’

उन्होंने लिखा कि- राजकोषीय नीति और सामाजिक नीति- दोनों स्तरों पर काम करके अर्थव्यवस्था में इन सभी भागीदारों में विश्वास और भरोसे को एक बार फिर कायम किया जा सकता है.

सिंह ने लिखा कि ये दुर्भाग्य है कि अर्थव्यवस्था को ऐसे समय में आघात लगा है जब भारत के पास अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का बेहतरीन मौका है.

लेख के आखिर में उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की कि वे उद्योगपतियों पर संहेद छोड़ उनपर भरोसा करें और हमें एक आत्मविश्वास और भरोसे पर आधारित अर्थव्यवस्था दें.


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