नागरिकता संशोधन विधेयक राज्यसभा में भी पारित


citizenship amendment bill also passed in rajyasabha

 

नागरिकता संशोधन विधेयक 105 के मुकाबले 125 मत से राज्यसभा में पारित हो गया. यह नौ दिसंबर को लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है. इस विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए उन गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो.

विधेयक में संशोधन को लेकर विपक्ष के सारे प्रस्ताव गिर गए.

इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा कि इसके तहत भारत की आजादी के बाद तीन देशों से आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी. उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमान देश के नागरिक थे, हैं और बने रहेंगे, उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

उन्होंने आगे कहा कि भारत दुनिया भर से आए मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता नहीं दे सकता, यह विधेयक तीन देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है.

गृह मंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में पेश विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार की यह दलील तर्कसंगत नहीं है कि पिछले 70 सालों में अन्य देशों से भारत आने वाले प्रताड़ित लोगों को नागरिकता नहीं दी गई.

शर्मा ने कहा कि इससे पहले पड़ोसी देशों से ही नहीं बल्कि श्रीलंका, केन्या और युगांडा सहित अन्य देशों से भी भारत आने वाले शरणार्थियों को शरण दी गई. इसके लिए नागरिकता कानून में नौ बार संशोधन किया गया लेकिन एक बार भी धार्मिक आधार पर नागरिकता नहीं दी गई.

उन्होंने कहा, ”भारतीय संविधान धार्मिक आधार पर भेदभाव का स्पष्ट निषेध करता है. संविधान की इस मूल भावना का पालन करते हुए मानवीय आधार पर नागरिकता दी गई. इसलिए हम धार्मिक आधार पर नागरिकता देने को संविधान के विरूद्ध मानते हुए इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं.”

शर्मा ने लोकसभा में इस विधेयक पर जवाब के दौरान गृह मंत्री द्वारा धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के लिए कांग्रेस के नेताओं को जिम्मेदार ठहराने को गलत बताते हुए कहा, ”1943 में सावरकर जी ने औपचारिक रूप से घोषणा कर दी थी कि मुझे जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत के प्रस्ताव से कोई आपत्ति नहीं है.” उन्होंने इसके लिए कांग्रेस को दोष दिए जाने को गलत बताया.

शर्मा ने एनआरसी को पूरे देश में लागू करने के सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि पूरे देश में हिरासत शिविर बनाने के लिये जगह ले ली गई है.

उन्होंने स्वामी विवेकानंद के एक मशहूर भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत एक ऐसा देश है जिसमें हर धर्म के प्रताड़ित व्यक्ति को शरण दी गई है.

शर्मा ने मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने प्रचार अभियानों में उपयोग किये जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार को गांधी के चश्मे ही नहीं उनके नजरिये को भी अपनाना चाहिए.

वहीं बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने विपक्ष को राजनीतिक हितों के बजाय राष्ट्र के हित साधने की नसीहत दी और दावा किया कि इससे पूर्वोत्तर की ”सांस्कृतिक पहचान” को कोई खतरा नहीं पहुंचेगा.

नड्डा ने राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 18 दिसंबर 2003 में दिए गए एक बयान का हवाला दिया. उस समय सिंह ने तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को सलाह देते हुए कहा कि ऐसे प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के मामले में सरकार को अपने ”रवैये को उदार बनाना चाहिए और नागरिकता कानून में बदलाव करने चाहिए. नड्डा ने दावा किया कि मनमोहन सिंह की बात को पूरा करते हुए हमारी सरकार इस विधेयक का लेकर आई है.

चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने नरेंद्र मोदी नीत सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि यह भारत और बंगाल विरोधी है. उन्होंने कहा कि बंगालियों को राष्ट्रभक्ति सिखाने की जरूरत नहीं है और अंडमान के जेलों में बंद कैदियों में 70 प्रतिशत बंगाली थे.

उन्होंने बंगाल के कई स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेज भी भारतीय लोगों की मनोस्थिति को नहीं तोड़ पाए. उन्होंने कहा कि आज कुछ लोग बंगाल के हितैषी बन रहे हैं. उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी जाएगा.

ब्रायन ने आरोप लगाया कि यह सरकार ”’नाजियों” की तरह कदम उठा रही है. उन्होंने कहा कि सरकार देश के नागरिकों को आश्वासन देने के लिहाज से काफी अच्छी है लेकिन अपने वादों को तोड़ने के लिहाज से और भी अच्छी है.

उन्होंने जर्मनी के यातना केंद्रों की तुलना हिरासत केंद्रों से की और एनआरसी का संदर्भ देते हुए कहा कि शिविरों में बंद 60 प्रतिशत लोग बांग्लाभाषी हिन्दू हैं.

तृणमूल सदस्य डेरेक ने कहा कि हम तानाशाही की तरफ देख रहे हैं और 84-85 साल पहले जर्मनी में जिस प्रकार के कानून और कदम उठाए गए, वैसे ही कदम यहां उठाए जा रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि पूर्वी पाकिस्तान में 1970 के दशक में धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि भाषा के आधार पर उत्पीड़न किया गया था.

सपा के जावेद अली ने इस विधेयक में 31 दिसंबर 2014 की तय समयावधि को लेकर सवाल उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा कि 31 दिसंबर 2014 के बाद ऐसा क्या हो गया कि इन तीनों पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक प्रताड़ना बंद हो गई. उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि इस समय सीमा के लिए उसे ऐसा क्या ”इलहाम” हुआ है?

उन्होंने सुझाव दिया कि इस विधेयक में तीन देशों के बजाय पड़ोसी देश और धार्मिक अल्पसंख्यक लिखना चाहिए, इससे सारा विवाद खत्म हो जाएगा.

उन्होंने आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर के एक आलेख का हवाला देते हुए कहा कि यह सरकार अल्पसंख्यकों के विरूद्ध एक खास विचारधारा पर चल रही है.

जावेद अली ने कहा कि 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ख्वाब देखा था कि पाकिस्तान को हिन्दू मुक्त और भारत को मुस्लिम मुक्त किया जाए. सपा सदस्य ने दावा किया मौजूदा सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी लाकर जिन्ना के उस ख्वाब को पूरा कर रही है.

अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि तमिलनाडु में श्रीलंका से कई हिन्दू, बौद्ध, ईसाई एवं शरणार्थी आए हैं. वे वर्षों से नागरिकता पाने की उम्मीद लगाए हुए हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को भी नागरिकता दी जानी चाहिए.

अन्नाद्रमुक सदस्य ने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना से पहले पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ शरणार्थी भारत आए थे. इनमें हिन्दू, मुस्लिम सभी थे. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की स्थापना के बाद बहुत सारे शरणार्थी वापस चले गए. उन्होंने अधिकारियों से जानना चाहा कि ऐसे जो लोग देश में अभी तक रह रहे हैं, उनका भविष्य क्या होगा?

जद (यू) के रामचंद्र प्रसाद सिंह ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह सीधा विधेयक है लेकिन बात कुछ और ही हो रही है. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेदों की बात हो रही है लेकिन वह भारतीय नागरिकों के लिए है. लेकिन यहां तो बात लोगों को नागरिकता देने की ही हो रही है.

सिंह ने कहा कि इस विधेयक के बहाने लोगों के मन में भय पैदा किया जा रहा है. उन्होंने अपने संबोधन में तृणमूल नेता डेरेक पर तीखा हमला बोला और कहा कि विगत में जब हाजीपुर में रेलवे जोन बन रहा था, उस समय तृणमूल कांग्रेस नेता ने उसका भारी विरोध किया था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को मोदी सरकार का ”हिन्दुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने” वाला कदम करार देते हुए इस बात पर भरोसा जताया कि यह प्रस्तावित कानून न्यायालय के कानूनी परीक्षण में नहीं टिक पाएगा.

राज्यसभा में चिदंबरम ने विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिए संसद से एक ”असंवैधानिक काम” पर समर्थन लेना चाहती है. उन्होंने कहा कि संसद में निर्वाचित होकर आए सदस्यों का यह प्राथमिक दायित्व है कि वे कानून बनाते समय यह देखें कि यह संविधान के अनुरूप है कि नहीं.

उन्होंने कहा कि इस विधेयक के मामले में लोकसभा के बाद यदि राज्यसभा इसे पारित कर देती है तो वह अपने दायित्व को संविधान के तीन अन्य अंगों में से एक (न्यायालय) के लिए ”त्याग” रही है. उन्होंने कहा, ”आप इस मुद्दे को न्यायाधीशों की गोद (विचारार्थ) में डाल रहे हैं.”पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि यह मामला यही नहीं रूकेगा और यह न्यायाधीशों के पास जाएगा. उन्होंने कहा कि निर्वाचित नहीं होने वाले न्यायाधीश और निर्वाचित नहीं होने वाले वकील अंतत: इसके बारे में निर्धारण करेंगे. ”अत: यह संसद का अपमान होगा.”

शिवसेना सांसद संजय राउत ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर कहा, लोकसभा में आंकड़े अलग, राज्यसभा की स्थिति अलग है. सरकार को हमारे सवालों का जवाब देना होगा.

राउत ने कैब पर कहा, वोटबैंक की राजनीति सही नहीं. आप देश में एक बार फिर हिंदू-मुसलमान को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसा ना करें.

टीआरएस सदस्य के केशव राव ने कहा ”गृह मंत्री ने कहा कि उन्हें शासन के लिए चुना गया है और दोबारा जनादेश मिला है. यह ठीक है. लेकिन वह संविधान को तोड़ नहीं सकते. ”

उन्होंने कहा ”आप 40 फीसदी की बात करते हैं लेकिन बात तो 100 फीसदी की होनी चाहिए. हमारे यहां वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा रही है, यह हमें नहीं भूलना चाहिए.”

विधेयक को न्याय से परे बताते हुए केशव राव ने कहा ”गृह मंत्री ने धर्म के आधार पर देश के विभाजन की बात कही है. मैं ऐसा नहीं मानता. हम धर्म की बात क्यों करते हैं? धर्म निरपेक्षता हमारे देश की मूल धारणा रही है.”

उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है जिसकी वजह से वह इसका विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा ”इसे एनआरसी से अलग नहीं किया जा सकता, यह एनआरसी की छाया है. विधेयक के कानून बनने के बाद किसी को नागरिकता मिलेगी, किसी को नहीं. नागरिकता के लिए अलग अलग आधार बनाए जा रहे हैं जो नहीं होना चाहिए.”

केशव राव ने कहा ”मैं धार्मिक आधार पर उत्पीड़न से सहमत हूं और ऐसे लोगों को राहत दिए जाने की बात से भी इत्तेफाक रखता हूं. लेकिन इसकी आड़ में विभाजन नहीं होना चाहिए. मैं अपील करता हूं कि देश को धार्मिक आधार पर ना बांटा जाए.”

सीपीएम सदस्य टी के रंगराजन ने विधेयक को संविधान विरोधी बताते हुए कहा ”यह विधेयक भारत के बहुलतावाद पर चोट करता है. इसके जरिए मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है. इसके लिए जो औचित्य दिया जा रहा है वह सही नहीं है.”

उन्होंने सवाल किया, ”क्या मुस्लिम धार्मिक आधार पर प्रताड़ित नहीं हो सकते? पाकिस्तान में अहमदिया, म्यामां में रोहिंग्या और श्रीलंका में तमिल लोग धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं.”

रंगराजन ने हर किसी के लिए नागरिकता की मांग करते हुए कहा ”धर्म कभी भी, किसी भी राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता.”

उन्होंने कहा ”क्या सरकार ने इस बात पर विचार किया है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?’

द्रमुक सदस्य तिरुचि शिवा ने कहा ”बहुलतावाद और लोकतांत्रिक भारत में विश्वास करने वालों के लिए धर्म कभी कोई बाधा नहीं रहा. मुझे पूरा विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर यह विधेयक खरा नहीं उतरेगा.”

शिवा ने कहा ”नागरिकता के लिए केवल तीन देशों को ही क्यों चुना गया? अफगानिस्तान अविभाजित भारत का हिस्सा नहीं था. अगर अफगानिस्तान को चुना गया तो भूटान, म्यामां और श्रीलंका को क्यों छोड़ दिया गया? भूटान में ईसाई आज भी अपने घर पर ही प्रार्थना करते हैं. वह जब चर्च जाना चाहते हैं तो भारत आते हैं.”

सरकार पर ध्रुवीकरण और धर्म निरपेक्षता पर चोट करने का आरोप लगाते हुए शिवा ने कहा, ”यह पहलू क्यों नजरअंदाज किया गया कि भाषा, संस्कृति और अलग अलग आधार पर भी अत्याचार हो रहे हैं.”

बीपीएफ के विश्वजीत दैमारी ने नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के मन में अपनी पहचान खोने और हाशिये पर डाले जाने सहित अन्य आशंकाएं होने का दावा करते हुए कहा ”सरकार को पहले वहां के लोगों को विश्वास में लेना चाहिए.”

असम गण परिषद के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने कहा, ”असम अतिरिक्त बोझ को स्वीकार नहीं कर सकता. यहां आने वाले शरणार्थियों और प्रवासियों को अन्य राज्यों में भी भेजा जाना चाहिए.”

वैश्य ने असमी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिए जाने, असम में इनर लैंड परमिट योजना लागू करने तथा असम समझौते के उपबंध छह का कार्यान्वयन किए जाने की मांग भी की.

विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने कहा कि वीर सावरकर और जिन्ना, दोनों द्विराष्ट्र सिद्धान्त में विश्वास करते थे जबकि कांग्रेस एक राष्ट्र में विश्वास करती है. उन्होंने कहा कि इसलिए गृह मंत्री अमित शाह को लोकसभा में दिया गया उनका यह बयान वापस लेना चाहिए कि देश का विभाजन धार्मिक आधार पर कांग्रेस ने करवाया था इसलिए उनकी सरकार को अब यह विधेयक लाने की आवश्यकता पड़ी.

उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने यह सही कहा है कि यह एक ऐतिहासिक विधेयक है क्योंकि ”आप संविधान की बुनियाद को बदलने जा रहे हैं, इसलिए यह ऐतिहासिक विधेयक है. आप हमारे इतिहास को बदलने जा रहे हैं.”

सिब्बल ने कहा कि यह विधेयक द्विराष्ट्र सिद्धान्त को कानूनी रंग दे रहा है.

बसपा के सतीश मिश्रा ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे संविधान की भावना के विपरीत बताया. उन्होंने जानना चाहा कि नागरिकता के लिए 31 दिसंबर 2014 की ‘कट-ऑफ’ तिथि किस आधार पर तय की गई है, सरकार को स्पष्ट करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिए संविधान की आत्मा ‘धर्म-निरपेक्षता’ को नष्ट किया जा रहा है. उन्होंने इस संदर्भ में सरकार से पुनर्विचार करने और विधेयक को प्रवर समिति को भेजने की मांग की.

राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि गृहमंत्री इस विधेयक के जरिये एक भारी भूल करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि विधेयक में नास्तिकों के बारे में ध्यान नहीं दिया गया है. यह संविधान के नैतिक मानदंड के प्रतिकूल है.

उन्होंने कहा कि नागरिकता के संबंध में मामले की पुष्टि करने पर होने वाले भारी भरकम व्यय को सरकार शिक्षा जैसे किसी आवश्यक क्षेत्र पर खर्च कर उसे बेहतर कर सकती है.

एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर भारत और देश के अन्य स्थानों पर विरोध हो रहे हैं, उसे देखते हुए सरकार को इस पर गौर करना चाहिये और विधेयक को प्रवर समिति में भेजना चाहिए.

उन्होंने कहा कि विधेयक में कई खामियां हैं जिन्हें अदालत में चुनौती दी जा सकती है.

आईयूएमएल के अब्दुल बहाव ने इसे दमनकारी कानून बताते हुए इसे वापस लिए जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि इसमें श्रीलंकाई हिन्दुओं और तमिल मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

पीडीएफ के मुहम्मद फैज ने कहा कि जब से सरकार सत्ता में आई है तब से तीन तलाक, धारा 370, नागरिकता विधेयक जैसे कदमों के जरिए मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि मौजूदा विधेयक में उन मुस्लिमों को दरकिनार किया जा रहा है जिन्होंने मुल्क के बंटवारे के वक्त स्वेच्छा से धर्मनिरपेक्ष देश भारत में रहने का फैसला किया था.

शिरोमणि अकाली दल के बलविन्दर सिंह भुंडर ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को बहुत पहले लाने की आवश्यकता थी. उन्होंने कहा कि इससे दूसरे मुल्कों में अन्याय होने की वजह से यहां आए लोगों को राहत मिलेगी. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस विधेयक में सभी पड़ोसी देशों और वहां के अल्संख्यकों को जोड़े जाने की जरूरत है.

बीजेपी की सरोज पांडे ने कहा कि गृहमंत्री ने विधेयक के जरिये पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने की पहल की है. उन्होंने कहा कि यह विधेयक मानवता के आधार पर लाया गया है.

चर्चा में एसडीएफ के हिषे लाचुंगपा ने हिस्सा लेते हुए कहा कि विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए.


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